राष्ट्रीय संगोष्ठी में हुआ इक्कीसवीं सदी में भारतीय भाषाएँ और देवनागरी लिपि पर मंथन हिंदी ने सम्पूर्ण विश्व में अपनी धाक जमा दी है। इसके बोलने वाले लोग दुनिया भर में आपको मिल जाएंगे। धीरे-धीरे कई लिपियां और भाषाएं लुप्त हो रही हैं क्योंकि समय रहते उनके संरक्षण पर हमने ध्यान नहीं दिया। अपनी भाषा को जीवित रखना हम सब की जवाबदारी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को प्रतिष्ठा दिलाने में अखिल भारतीय स्तर पर कार्य करने वाली संस्था नागरी लिपि परिषद की महत्वपूर्ण भूमिका है। स्वतंत्र रहने की एकमात्र कुंजी है कि हम अपनी मातृभाषा का विकास करें। तुलसी, सूर और मीरा ने अपनी मातृभाषा हिंदी के बल पर ही विश्व साहित्य में अपना स्थान बनाया। उक्त विचार राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा आयोजित राष्ट्रीय नागरी लिपि संगोष्ठी के शुभारंभ पर मुख्य अतिथि के रूप में हिंदी साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक डॉ विकास दवे में व्यक्त किए। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ अशोक कुमार भार्गव ने कहा कि बोलियों और भाषाओं का समृद्ध करना हमारी नैतिक जवाबदारी है। राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने का कार्य अखि...