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कृषि उद्यमिता लायेगी कृषि आधारित अर्थ-व्यवस्था में बड़ा परिवर्तन

विशेष लेख


कृषि उद्यमिता लायेगी कृषि आधारित अर्थ-व्यवस्था में बड़ा परिवर्तन


 


भोपाल : शनिवार, जनवरी 11, 2020, 21:09 IST


'वैसे तो गुजर-बसर करने के लिए खेती करने से काम चल जाता है, लेकिन कृषि उद्यमिता वास्तव में मध्य प्रदेश की कृषि आधारित अर्थ-व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव ला सकती है-'' यह कहना है प्रगतिशील किसान संतोष यादव का। वे खरगोन जिले के कसरावद ब्लॉक के अहीर धामनोद में रहते है। उन्होंने हाल ही में कर्नाटक के तुमकुर में प्रधान मंत्री के हाथों कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त किया। उन्हें 2016-17 के दौरान गेहूँ उत्पादन के लिए यह पुरस्कार मिला है।


संतोष यादव के खेत से गेहूँ का उत्पादन 44 क्विंटल प्रति एकड़ आंका गया था। धामनोद में उनकी खेती दस एकड़ में है। यह परिवार के चार सदस्यों के बीच विभाजित है। उनका बड़ा बेटा योगेश 10 वीं कक्षा में पढ़ता है जबकि बेटी तनुश्री 8 वीं कक्षा में है। वे बताते है कि , 'मेरे पास एक ट्यूबवेल और एक पारंपरिक कुआं है। मेरे खेत के लिए काफी है। इसके अलावा, तीन भैंस, दो बैल और एक गाय है। बैल अभी भी उपयोगी हैं क्योंकि बरसात में मशीनें काम नही कर पाती। इन्हीं से काम लेते हैं।'


खेती के विभिन्न आयामों के बारे में अपने विचार साझा करते हुए, संतोष यादव ने बताया कि- 'खेती में कुशल श्रमिक मिलना कम होते जा रहे हैं। मुझे खुद खेती के कई श्रम साध्य काम करना पड़ता है।'


संतोष आगे बताते है कि- 'मेरी मिट्टी की सेहत बिगड़ गई थी, लेकिन समय पर परीक्षण से बड़ी मदद हुई। पोटाश और जिंक की कमियों को समय रहते हटा दिया। मैंने कीटनाशकों का उपयोग नहीं करने ठान ली है जब तक बहुत ज्यादा जरूरी नहीं हो जाये। हालांकि यह आसान नहीं है, लेकिन धीरे-धीरे शून्य स्तर हासिल किया जा सकता है।' जय किसान फसल ऋण माफी योजना के बारे में वे कहते हैं कि- 'कसरावद में सभी कर्जदार किसान राहत महसूस कर रहे हैं। दो लाख रुपये तक के उनके फसली ऋण कमल नाथ सरकार ने माफ कर दिए हैं।''


वे आगे बताते हैं कि 'पिछले साल मैंने एक एकड़ से कम पर करेले की खेती की थी। मैंने 20 से 30 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से 1.10 लाख रुपये कमाए।''


महिला प्रगतिशील किसान श्रीमती शिवलता मेहतो के परिवार में उनके नाम पर कुल 10 एकड़ में से 4.5 एकड़ जमीन हैं। बाकी उसके पति और दो बेटों के नाम हैं। बड़े बेटे ऋषभ मेहतो आरकेडीएफ कॉलेज भोपाल में एग्रीकल्चर में एमएससी कर रहे हैं, जबकि छोटा बेटा अर्जुन महतो सरदार वल्लभभाई पटेल गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक भोपाल में कंप्यूटर साइंस पढ़ रहा है। वे बताती है कि- 'ऋषभ को फार्म मशीनरी में गहरी दिलचस्पी है और वह ट्रैक्टर इंजन की मरम्मत कर सकता है। हालांकि बच्चे अपनी पसन्द के करियर को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन अगर वे हमारे साथ हैं तो हमें कोई आपत्ति नहीं है।'


'मुझे 2017-18 के दौरान चने के उत्पादन के लिए पुरस्कार मिला। पैदावार का मूल्यांकन 18 क्विंटल प्रति एकड़ किया गया। बाजार में 4000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बड़ी राहत मिली। सबसे बड़ा फायदा यह है कि मेरा खेत पथरौटा गाँव में है। यह इटारसी तहसील मुख्यालय से सिर्फ 5 किलोमीटर दूर है। यह एक ग्राम पंचायत है जिसकी आबादी लगभग 3000 है। मेरे पति साहब लाल खेती की कई गतिविधियों के प्रबंधन में बहुत मदद करते हैं।''


इसी प्रकार श्रीमती कंचन वर्मा के परिवार के पास 70 एकड़ की एक बड़ी खेती है। वे होशंगाबाद के इटारसी में सोमलवाड़ा गाँव में रहती है। यह खेती दो परिवारों में बँटी है। वर्ष 2016-17 में गेहूँ के उत्पादन के लिए उन्हें पुरस्कार मिला है। गेहूँ के उत्पादन का मूल्यांकन 44 क्विंटल प्रति एकड़ रहा। श्रीमती वर्मा मिट्टी की जाँच के बारे में अन्य किसानों को सजग रहने की सलाह देती है। वे कहती है कि- 'मिट्टी का परीक्षण हर मौसम से पहले फलदायी होता है । एक ही प्रकार की फसल लेकर हमेशा मोनोकल्चर से बचना चाहिए।'' वे बताती है कि- 'मेरी मिट्टी का परीक्षण जब किया गया तो जिंक की कमी की सूचना मिली। इसलिए बुवाई शुरू होने से पहले इसका इलाज किया।' वे आगे बताती है कि- 'पिछले साल, हमने एक बड़े क्षेत्र में बल्लर फलियाँ लगाई थी। उन्हें सीजन से कम से कम एक महीने पहले बाजार में लाये। इस प्रकार हमें 70 रुपये से लेकर 80 रुपये प्रति किलो तक की अच्छी कीमत मिल गई और मिट्टी भी सुधर गई।' लाभदायक खेती के तरीकों को साझा करते श्रीमती कंचन वर्मा कहती हैं कि- 'खेती में हर पल सतर्कता की जरूरत है ताकि अग्रिम योजना बनाई जा सके। वे कहती हैं, ''साधारण बात यह है कि हमेशा ध्यान रखें कि आप खेत से दूर न रहें क्योंकि खेतों से आपके दूर रहने से कई चूक हो जाती है जो बड़ा नुकसान कर सकती है।' उनके परिवार में पाँच गाय और दो जोड़ी बैल के अलावा अलग-अलग गतिविधियों के लिए चार ट्रैक्टर हैं।


खेती की चुनौतियों के बारे में पूछे जाने पर श्रीमती कंचन ने बताया कि- 'प्रतिकूल मौसम सबसे बड़ा खतरा है। चुनौती समय-प्रबंधन की है। इसमें विफलता से बड़ा नुकसान होता है। 'वे मुख्यमंत्री कमल नाथ की कृषक समुदाय को कृषि उद्यमिता से जोड़ने की प्रशंसा करते हुए कहती हैं कि आय का आधार बढ़ाने के लिए यह एकमात्र विकल्प है।


 


अवनीश सोमकुवर

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