जनसंख्या के अनुपात से एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. को भी आरक्षण के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधित्व मिले, 23 फरवरी को भारत बंद का आह्वान
उज्जैन। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति विकास परिषद के प्रदेश मीडिया प्रभारी हरीश सिंह गुड़पलिया ने कहा कि भारत सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से अनुसूचित जाति-जनजाति व पिछड़ा वर्ग के हक अधिकार को खत्म किया जा रहा है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति विकास परिषद के प्रदेश मीडिया प्रभारी हरीशसिंह गुड़पलिया ने बताया कि बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के संविधान से छेड़छाड़ कर सी.ए.ए. लागू कर देश में संविधान को खत्म करने की साजिश रची है। इसलिए इस फैसले के विरोध में समस्त अनुसूचित जाति-जनजाति व पिछड़ा वर्ग के संगठनों को 23 फरवरी को भारत बंद का समर्थन करना होगा। कानून बनाने का कार्य तो संसद का है, फिर ये सुप्रीम कोर्ट कब से कानून बनाने लगी?
इतिहास गवाह है कि सुप्रीम कोर्ट के सवर्ण ब्राह्मण जजों ने अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़ा वर्गों के लोगों को सुप्रीम कोर्ट का जज बनने ही नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट में आज भी सवर्ण जजों का कब्जा है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का जज बनने के लिए कोई परीक्षा नहीं होती। मनुवादी सवर्ण आपस में ही तय कर लेते हैं कि कौन अगला जज बनेगा।
इस तरह उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था बना दी है, जिससे सभी सवर्ण जज मिलकर सिर्फ सवर्ण जज को चुनते हैं ताकि अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़ा वर्ग के लोगों को सुप्रीम कोर्ट का जज बनने से रोका जा सके। इसलिए सरकार से माँग उठानी है कि जनसंख्या के अनुपात से सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण मिलना चाहिए।
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