Skip to main content

श्रीहरि सरलगीता कृति लोकार्पण समारोह सम्पन्न


♦आयोजक-म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति♦ एवं
🔷पब्लिक रिलेशन्स सोसायटी, भोपाल🔷
 द्वारा आयोजित किया गया।
✍कृतिकार-पं.कमल किशोर दुबे
सेवानिवृत्त वरिष्ठ जन सम्पर्क अधिकारी, (भा. रेल), भोपाल द्वारा रचित 
🌾🌹श्रीहरि सरलगीता🌹 ग्रंथ का  
 लोकार्पण समारोह आज
रविवार, 23 फरवरी 2020 को 
 🌷हिन्दीभवन के महादेवी वर्मा कक्ष🌷 श्यामला हिल्स, पॉलिटेक्निक चौराहा भोपाल में
🌹अध्यक्ष-श्री रघुनंदन शर्मा-पूर्व सांसद, राज्यसभा एवं उपाध्यक्ष म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, भोपाल
♦मुख्य अतिथि- प्रोफेसर रामदेव भारद्वाज- कुलपति, अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय, भोपाल♦
🌷विशिष्ट अतिथि- डॉ. राजकुमार तिवारी, "सुमित्र" जबलपुर🌷
🌷सारस्वत अतिथि-प्रो. कमल दीक्षित वरिष्ठ पत्रकार, लेखक🌷
🌻प्रमुख वक्ता-डॉ सुरेन्द्र बिहारी गोस्वामी
 और भी अनेक विद्वान, साहित्यकारों के सानिध्य में सम्पन्न हुआ।




पं. कमल किशोर दुबे द्वारा श्रीमद् भगवदगीता का रामचरित मानस की शैली में दोहे-चौपाई-छन्द में सरल एवं बोधगम्य पद्यानुवाद किया गया है।
भाल्व पब्लिशिंग कं. प्रायवेट लि., भोपाल द्वारा प्रकाशित यह ग्रंथ इंटरनेट संस्करण E-Book के रूप में chandralekha.com पर भी उपलब्ध है।



'श्री हरिसरल गीता" से जनमानस को कर्तव्यनिष्ठ बनाने में मदद मिलेगी : डॉ. सुरेंद्र बिहारी गोस्वामी
---------------
भोपाल 23/02/2020 । जो लोग संस्कृत पढ़ना नहीं जानते, उनके लिए रामचरित मानस की तरह दोहे, चौपाई, छंद में गीता का सरल, सहज एवं बोधगम्य अनुवाद 'श्रीहरि सरलगीता" जन-जन में लोकप्रिय होगा। इससे जनमानस को कर्तव्यनिष्ठ बनने तथा संस्कार ग्रहण करने की सहायता मिलेगी। उक्त विचार रविवार को हिंदी भवन के महादेवी वर्मा कक्ष में 'श्रीहरि सरलगीता" पुस्तक के लोकार्पण समारोह में मुख्य वक्ता डॉ. सुरेंद्र बिहारी गोस्वामी ने व्यक्त किए। समारोह के अध्यक्ष पूर्व राज्यसभा सांसद श्री रघुनंदन शर्मा ने कहा कि कमल किशोर दुबे द्वारा किया गया यह सहज, सरल एवं भावपूर्ण अनुवाद जनहितैषी साबित होगा। इससे जनमानस को सनातन संस्कारों के साथ-साथ नवउत्साह, ऊर्जा एवं कर्तव्य प्रेरणा की शिक्षा मिलेगी। समारोह के मुख्य अतिथि अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामदेव भारद्वाज ने इस पुस्तक को समाज में संस्कारों की स्थापना करने के लिए अत्यधिक उपयोगी बताया। श्रीहरि सरलगीता कृति के रचनाकार पं. कमलकिशोर दुबे ने गीता के विभिन्न् अध्यायों के लोकप्रिय श्लोकों का दोहे, चौपाईयों, छंद में काव्यानुवाद को उद्वत करते हुए कहा कि समाज व जनमानस में बढ़ रही संस्कारहीनता, उद्दंडता, निराशा को दूर करने विशेष रूप से युवाओं को कर्तव्यनिष्ठ बनने एवं अपना जीवन सफल बनाने में उपयोगी बताते हुए इसके जनमानस में लोकप्रिय होने का विश्वास व्यक्त किया। इससे पूर्व पब्लिक रिलेशन्स सोसायटी, भोपाल के अध्यक्ष श्री पुष्पेन्द्र पाल सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए इस कृति को महत्वपूर्ण एवं समाजोपयोगी बताया। 



इसके अलावा वरिष्ठ पत्रकार-लेखक प्रो. कमल दीक्षित, जबलपुर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राजकुमार तिवारी सुमित्र ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए। इस मौके पर राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के मंत्री-संचालक कैलाशंचद्र पंत, हिन्दीभवन के निदेशक डॉ. जवाहर कर्णावट, पीआरएसआई के पदाधिकारियों में डॉ संजीव गुप्ता, श्री मनोज द्विवेदी, श्री विजय बोन्द्रिया, योगेश पटेल, कलामंदिर साहित्यिक संस्था के अध्यक्ष डॉ. गौारीशंकर शर्मा 'गौरीश', सचिव गोकुल सोनी, तुलसी साहित्य समिति के अध्यक्ष डॉ. मोहन तिवारी 'आनंद' म.प्र.लेखक संघ के अध्यक्ष डॉ. रामवल्लभ आचार्य, अशोक चंद्र दुबे, डॉ. संजय सक्सेना, ऋषि श्रृंगारी, आनंद तिवारी, पं. श्यामलाल जी दुबे, दुबेजी के परिजन, सहपाठी मित्रगण श्री प्रमोद बरुआ, शिव कुमार शर्मा, श्रीराम शर्मा, के एल सिलावट सहित बड़ी संख्या में कवि, साहित्यकार, साहित्य प्रेमीजन और उपस्थित थे।



Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर


Bekhabaron Ki Khabar, magazine in Hindi by Radheshyam Chourasiya / Bekhabaron Ki Khabar: Read on mobile & tablets - http://www.readwhere.com/publication/6480/Bekhabaron-ki-khabar


Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...