Skip to main content

एसएनबीएनसीबीएस ने कोविड-19 सहित वायरल संक्रमणों के उपचार के लिए बेहतर प्रतिरक्षी शक्ति हेतु ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बदलने के लिए नैनोमेडिसिन का विकास किया

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय


 



 एस.एन. बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साईंसेज, कोलकाता (एसएनबीएनसीबीएस) के वैज्ञानिकों ने एक सुरक्षित एवं किफायती नैनोमेडिसिन विकसित की है जिसमें शरीर में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बदलने के द्वारा कई प्रकार की बीमारियों के उपचार की संभावना है। यह अनुसंधान कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में उम्मीद की किरण प्रदान कर सकता है क्योंकि नैनोमेडिसिन स्थिति के अनुसार हमारे शरीर में रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पेसीज (आरओएस) को घटा या बढ़ा सकती है और रोग का उपचार कर सकती है।

स्तनपायियों में आरओएस की नियंत्रित वृद्धि के लिए इस अनुसंधान की क्षमता कोविड-19 सहित वायरस संक्रमणों को नियंत्रित करने में नैनोमेडिसिन के अनुप्रयोग के लिए नई संभावना की उम्मीदें बढ़ाती है। कई रोगों के रिडक्शन एंड ऑक्सीडेशन प्रोसेसेज (रेडॉक्स) के लिए पशु परीक्षण पूर्ण हो चुका है और अब संस्थान मानवों पर नैदानिक परीक्षण करने के लिए प्रायोजकों की खोज कर रहा है।
 


यह मेडिसिन नींबू जैसे नींबू वर्गीय अर्क के साथ मैगनीज सॉल्ट से निकाले गए नैनोपार्टिकल्स को जोड़ती है। नैनोटेक्नोलॉजी की तरकीबों का उपयोग करते हुए मैगनीज और साइट्रेट का महत्वपूर्ण मिश्रण नैनोमेडिसिन का उत्पादन करता है। कृत्रिम रूप से निर्मित्त नैनोमेडिसिन हमारे शरीर के उत्तकों में रिडक्शन एंड ऑक्सीडेशन प्रोसेसेज (रेडॉक्स) के संतुलन को बनाये रखने के लिए महत्वपूर्ण पाया गया। कोशिकाओं में रेडॉक्स प्रतिक्रियाएं ऑक्सीजन जोड़ती या हटाती हैं और कोशिकाओं में ऊर्जा पैदा करने जैसी कई प्रक्रियाओं के लिए अनिवार्य हैं। रेडॉक्स प्रतिक्रियाएं रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पेसीज (आरओएस) नामक कोशिकाओं के लिए हानिकारक उत्पादनों का भी निर्माण कर सकती हैं जो परिपक्वन प्रक्रिया में तेजी लाते हुए तत्काल लिपिड (वसा), प्रोटीन एवं न्यूक्लिएक एसिड का ऑक्सीडाइज कर सकती हैं। तथापि, इसे नोट किया जाना चाहिए कि हमारी प्रतिरक्षी कोशिकाएं प्राकृतिक रूप से वायरस या बैक्टिरिया या हमारे शरीर की संक्रमित कोशिकाओं को मारने के लिए आरओएस का उत्पादन या ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस का सृजन कर सकती है। इस प्रकार, आरओएस या ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस की नियंत्रित वृद्धि हमारी प्रतिरक्षी कोशिकाओं को अपना प्राकृतिक कार्य अधिक प्रभावी ढंग से करने में सहायता करता है।


पशु उत्तकों में नैनोमेडिसिन द्वारा ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस की बढोतरी भी सराहनीय है और नवजात शिशुओं में पीलिया सहित कई रोगों के उपचार में इसका अनुप्रयोग हो सकता है। अभी हाल में संस्थान ने प्रदर्शित किया है कि नैनोमेडिसिन दिए जाने के बाद सवंर्द्धित ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बिलरुबिन (पीलिया पैदा करने वाले टॉक्सिक मोलेक्यूल) को तोड़ सकते हैं और हाइपरबिलरुबिनेमिया (पीलिया) का उपचार कर सकते हैं। चूहों पर किए गए एक परीक्षण में, नैनोमेडिसिन सुरक्षित एवं त्वरित पाए गए और ढाई घंटों के भीतर बिलरुबिन के स्तर को नीचे ले आए। स्तनपायियों में रिएक्टिव आक्सीजन स्पेसीज (आरओएस) की नियंत्रित वृद्धि की यह क्षमता कोविड-19 सहित वायरस संक्रमणों को नियंत्रित करने में नैनोमेडिसिन के अनुप्रयोग की नई संभावनाओं का रास्ता प्रशस्त करता है। अभी हाल में, हाइड्रोजन पेरोक्साइड, जो आरओएस के वर्ग का है, की स्थानीय दवा की अनुशंसा कोविड-19 से बचने के एक तरीके के रूप में की गई है। एक नेबुलाइजर के जरिये श्वसन मार्ग में हाइड्रोजन पेरोक्साइड के उपयोग द्वारा अत्यधिक आरओएस अर्जित किया गया, जिसकी सलाह वायरल संरचना को तोड़ने के द्वारा कोविड-19 को निष्क्रिय करने के लिए दी जाती है। चूंकि हाइड्रोजन पेरोक्साइड का प्रत्यक्ष अनुप्रयोग सामान्य शरीर कोशिकाओं के प्रत्यक्ष आक्सीडेशन सहित कई प्रकार की जटिलताएं पैदा करता है, नैनोमेडिसिन द्वारा रसायन का विस्थापन इसके लिए लाभदायक सिद्ध होगा।


ये निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित किए गए हैं। पिछले वर्ष अक्तूबर में सभी विकास की ‘रोल ऑफ नैनोमेडिसिन इन रेडोक्स मेडिएटेड हीलिंग ऐट मोलेक्यूलर लेवल‘ नामक एक व्यापक समीक्षा जर्नल बाईमोलेक्यूलर कंसेप्ट्स में प्रकाशित की गई है। इस कंसेप्ट ने तत्काल इस क्षेत्र के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का ध्यान आकर्षित किया और इस वर्ष मार्च में नेचर जर्नल में इसे ‘ रेडोक्स मेडिसिन में एक नया मोर्चा, आरओएस विनियमित गुणों को शामिल करते हुए नैनो मैटेरियल से संबद्ध आरओएस आधारित नैनोमेडिसिन का उभरता क्षेत्र, आप्टीमाइज्ड थेराप्यूटिक प्रभावों हेतु भविष्य के लिए संभावना प्रकट करता है। चूहों में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (आरओएस) को सुतुलित करने में विकसित नैनोमेडिसिन की क्षमता का हाल ही में परीक्षण उच्चतर ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (आरओएस) और लीवर नुकसान पैदा करने के लिए लीड (पीबी) आयन इंजेक्ट करने के लिए किया गया था। ऐसा पाया गया कि नैनोमेडिसिन लीड-एक्सपोजर के कारण स्तनपायी के ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को घटा देती है और अंग के नुकसान को वापस पलटते हुए लीवर से विषैले आयन को हटाने में भी सहायता करती है। अभी हाल में, केममेडकेम ने अपने कवर पर इस कार्य को रेखांकित किया है।


(अधिक जानकारी के लिए कृपया डॉ समीर के पाल, सीनियर प्रोफेसर, skpal@bose.res.in से संपर्क करें।


संबंधित प्रकाशन लिंक


https://doi.org/10.2217/nnm.15.83


https://www.livetradingnews.com/surviving-the-coronavirus-disease-how-hydrogen-peroxide-works-172241.html


https://doi.org/10.1038/s41580-020-0230-3


https://doi.org/10.1002/cmdc.202000098


https://doi.org/10.1515/bmc-2019-0019).]



 


Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...