Skip to main content

शब्द शक्ति संबंधी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा तथा हिन्दी काव्यशास्त्र / प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा 


भूमिका के अंश : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा के इस ग्रंथ पर मूर्धन्य विद्वान-समालोचक गुरुवर आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी (4 जनवरी 1929 -30 मार्च 2009) ने विस्तृत भूमिका लिखी थी, जो हिन्दी आलोचना के सांप्रतिक परिदृश्य  में सार्थक प्रतिपक्ष रचती है। नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली से प्रकाशित इस पुस्तक की भूमिका के अंश प्रस्तुत हैं।



कुछ शोध-प्रबंध केवल उपाधि प्राप्त करने के लिए और उसके ब्याज से व्यक्तिगत रूप से लाभान्वित होने के लिए लिखे जाते हैं।फलतः इस अंधकार युग में भी कुछ प्रबंध नक्षत्रों की भाँति साहित्याकाश में अपना आलोकमय अस्तित्त्व बना लेते हैं। यह तभी होता है जब सारस्वत उपलब्धि के लिए गहरी निष्ठा और अपेक्षित श्रम तथा समर्पण हो। शोध ज्ञात से अज्ञात दिशा या क्षेत्र में मान्य अर्जित उपलब्धि और स्थापनाओं का दूसरा नाम है। ऐसे प्रयास सारस्वत यात्रा में कुछ जोड़ते हैं। ऐसे विरल प्रबंधों में डॉ शैलेन्द्रकुमार शर्मा का प्रबंध ‘शब्द शक्ति संबंधी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा तथा हिन्दी काव्यशास्त्र ’ एक उल्लेख्य प्रबंध है।



आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भारतीय रस पद्धति और शब्द-शक्ति विवेचन को व्यावहारिक आलोचना के लिए सर्वोच्च उपकरण माना है। डॉ शैलेन्द्रकुमार शर्मा का यह प्रबंध इसी शब्द शक्ति के क्षेत्र का एक सार्थक प्रयास है। इस चुनौती भरे क्षेत्र में शोध करने का संकल्प लेना अपने आप में उल्लेख्य है। शोध का विषय है- ‘शब्द शक्ति संबंधी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा तथा हिंदी काव्यशास्त्र’।  विषय अपने आप में पर्याप्त गुरु गंभीर है। विषय-विवेचन इन बिन्दुओं में विभाजित है- शक्ति और शब्द शक्ति विषयक भारतीय चिन्तन, भारतीय चिन्तन में अभिधा, लक्षणा, तात्पर्य तथा व्यंजना का विचार, साहित्यशास्त्र में शब्दशक्तिपरक विवेचन, पाश्चात्य भाषा विज्ञान और शब्द शक्ति, शैली विज्ञान और शब्द शक्ति, पौरस्त्य एवं पाश्चात्य चिन्तन में शब्दशक्तिपरक विवेचन का तुलनात्मक विश्लेषण, रचनाओं के संदर्भ में शब्दशक्ति संबंधी चिन्तन का उपयोग तथा उपसंहार। विवेचन के ये बिंदु विवेच्य की व्यापकता का आभास देते हैं। ..... छायावादोत्तर चिन्तन में तो काव्यशास्त्र की जरूरत पर ही प्रश्नवाचक चिह्न लगा दिया गया। शब्द शक्ति के संदर्भ में अज्ञान का विद्रूप विजृम्भण है। एक आलोचकम्मन्य सज्जन कहते हैं- “साहित्यशास्त्र आलोचना नहीं है।’’ उनका मतलब है कि वह कुछ है ही नहीं।  ऐसे लोगों को न तो भारतीय दर्शन का ज्ञान है और न साहित्यशास्त्र का। उन्हें इनसे नफरत है। वे पश्चिमी दर्शन और साहित्यचिन्तन के प्रेमी हैं- उसी की नाम माला जपते रहते हैं। व्यापक अर्थ में विश्वभर का साहित्यचिन्तन, यदि वह व्यवस्थित है तो साहित्य का शास्त्र ही है। वह रचना को देखने- परखने की चेतना देता है अथवा निसर्गजात आलोचनात्मक चेतना को निखारता है। ‘नहीं’ के साथ जो ‘है’ का पक्ष नहीं रखता वह मूलतः विध्वंसक वृत्ति का चिन्तक है। रामचन्द्र शुक्ल और नंददुलारे वाजपेयी की पंक्ति में रखे जाने का वे स्वप्न देखते हैं - पर हैं उद्वाहु वामन। मति अति रंक मनोरथ राऊ....... आगे पढ़ने के लिए लिंक पर जाएँ : 
http://drshailendrasharma.blogspot.in/2014/07/blog-post.html


http://www.hindibook.com/index.php?p=sr&Uc=HB-30496

शब्द शक्ति संबंधी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा तथा हिन्दी काव्यशास्त्र। 
- डॉ शैलेन्द्रकुमार शर्मा


ISBN 81-214-0313-8
Shabd Shakti Sambandhi Bhartiya Aur Pashchatya Avdharnatatha Evam Hindi Kavyashastra | Kumar Shailendra Sharma
Binding: HB | Language: hindi |ISBN 81-214-0313-8
List Price: 600.00  P 536 
Subjects: Criticism
प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली


विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर जाएँ :


http://drshailendrasharma.blogspot.com/2014/07/blog-post.html?m=0


 


Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...