काव्य सृजन से जुड़े दायित्व को समझें रचनाकार – प्रो. शर्मा
राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर की जयंती पर अंतरराष्ट्रीय वेब काव्य गोष्ठी संपन्न
देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर अंतरराष्ट्रीय वेब काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, शैल चंद्रा, रायपुर, वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन, प्रियंका सोनी, जलगांव, शिवा लोहारिया, जयपुर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता डॉ शहाबुद्दीन नियाज़ मोहम्मद शेख, पुणे ने की।
मुख्य अतिथि लेखक एवं आलोचक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि सर्जना गहरे दायित्व बोध की अपेक्षा करती है। रचनाकारों को काव्य परंपरा का ज्ञान होना चाहिए। हम अपनी रचना परंपरा के श्रेष्ठ तत्वों को आत्मसात करते हुए काव्य सृजन के लिए प्रवृत्त हों। काव्य के तत्वों के सम्यक् ज्ञान के साथ निरंतर अभ्यास जरूरी है। श्रेष्ठ कवि वह है जो अलक्षित और अनदेखे को भी लक्षित करवा देता है।
संस्था के सचिव श्री प्रभु चौधरी ने राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर के बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि दिनकर ओज और शृंगार के कवि थे। उन्होंने अनेक रचनाकारों को प्रभावित किया। वर्तमान में उनकी कविताओं की प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है।
ओस्लो, नॉर्वे के प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने आकुल वसंत शीर्षक रचना का पाठ किया। उनकी काव्य पंक्ति धरा पर तुम रहो गगन हमारा है ने श्रोताओं को गहरे प्रभावित किया।
आर्यावर्ती सरोज आर्या, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ने नारी शीर्षक कविता सुनाई। उनकी काव्य पंक्तियां थीं, अब अबला ये नहीं रही, ना ही रही ये बेचारी घर-बाहर सब देख रही, निभा रही जिम्मेदारी। किसी से भी कमजोर नहीं, नवयुग की शक्ति है नारी। जब अड़ जाए खुद पर ये, बड़े-बड़ों पर पड़े ये भारी। चांद की छवि लगती जो ये, लगती सबको है ये प्यारी। चांद तक तो पहुंच चुकी, अब सूरज की है बारी।
कवयित्री डॉ. जयभारती चंद्राकर, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने उड़ चली, उड़ चली, उन्मुक्त गगन में उड़ चली गीत से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया। गीत की पंक्तियां थीं, बक पंक्ति ज्यों कमल श्वेत, पुष्प हार बन उड़ चली, सशक्त, स्वयं सिद्धा बन उड़ चली। उन्मुक्त गगन में उड़ चली। स्वयं मुग्धा, अनंत शौर्य, ज्योति बिंदु, बन उड़ चली, जग को अलौकिक आनंद दे उड़ चली। उन्मुक्त गगन में उड़ चली।
श्रीमती सुनीता चौहान, नवी मुंबई में हिंदी मेरी कविता प्रस्तुत की। हिंदी बहती नदी, समा कर स्वयं में भाषा कई, नित नई हुई पाकर बृहद आकार फिर सागर में समा गई हिंद सागर हुई, हिंदी मेरी। मां की कही, मां से सुनी, तुतलाई, इतराई, बहलाई गई। पाकर जुबां पर, यूं बड़ी हुई, हिंदी मेरी।
डॉक्टर ममता शशि झा, मुंबई ने बारंबार कविता सुनाई। कविता की पंक्तियां थीं, कहते हैं मानव अपनी अधूरी रही इच्छाओं के कारण इस धारा पर जनम लेता है बार – बार। मुझे भी तुम्हारे कारण जनम लेना पड़ेगा अगली बार, क्योंकि रोज तुम्हें पा कर, मेरी आत्मा तृप्त नहीं होती, भूख शांत नहीं होती। अधूरी रह जाती है तृप्ति की आस। किसी को भूख की, किसी को पद की, किसी को प्यार और स्नेह की कमी को बनाए रखता है ... ताकि मनुष्य जनम ले बार – बार। ताकि यह सृष्टि और संसार के चक्र में मनुष्य घूमता रहे। लगातार... अनवरत ... बार .. बार।
डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने कहर कोरोना का कविता सुनाई। कविता की पंक्तियाँ थीं, अपनी ही सांसों से, लगने लगा डर। जीवन में आ गया, ये कोरोना का कहर। इंसानी गलतियों से, विकृत प्रवृत्तियों से, विश्व में फ़ैल गया, हवाओं में ज़हर। अपनों से दूरी,दूरियों की मजबूरी, टुकड़ों में बांट गया, अपना ही घर।
उर्वशी उपाध्याय प्रेरणा, प्रयागराज ने नमामि गंगे रचना सुनाई। इसकी पँक्तियाँ थीं, नमामि गंगे, जय मां गंगे, पतिता परम पुनीता है, सब में बसती, कुछ ना कहती, वो ही दुर्गा है, सीता है। एक रूप में पूजा तुमने, दूजे में अपमान किया, कभी गिराया मैला -कचरा, नालों को विस्तार दिया। अपनी शीतलता देती है , निर्मलता भर देती है, पर जो जीवन हमको देती, खुद अब आहें भरती है।
रेखा अस्थाना ने मातृभाषा हमारी हिन्दी कविता सुनाई। कविता की पंक्तियाँ थीं, हिन्द देश के वासी तुम, मस्तक अपना ऊँचा रखो, ये मत भूलो हो हिन्दुस्तानी, हिन्दी की महिमा पहचानो। माँ के लोरी की वह भाषा, जीवन संगिनी की अभिलाषा, देव स्तुति की परिभाषा, वही तो है अपनी हिन्दी भाषा।
डॉ. शैल चन्द्रा, रायपुर ने बेटियों विकास के लिए आह्वान किया, बेटियों के लिए खोल दो सारे द्वार। बेटियाँ होतीं हैं खुशियों का त्यौहार। बेटियां होती हैं खुशियों का त्यौहार। कोख में साजिश रच कब तक इन्हें मारोगे? वह दिन दूर नहीं जब तुम खूब पछताओगे। बेटियां नहीं रहेंगी तो बहु कहाँ से लाओगे?
अनुराधा अच्छवान, प्रवीण बाला, पटियाला, निक्की शर्मा, अर्चना दुबे, ममता सिंह, रोहिणी डाबरे, अहमदनगर आदि ने अपनी प्रतिनिधि कविताओं से काव्य गोष्ठी में प्रभाव जमाया।
कवि गोष्ठी के प्रारंभ में प्रस्तावना संस्था के सचिव श्री प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। संस्था का प्रतिवेदन सुनीता चौहान ने प्रस्तुत किया।
सरस्वती वंदना संगीता पाल, कच्छ ने की। स्वागत भाषण रेणुका अरोरा ने दिया। परिचय डॉ रश्मि चौबे ने दिया।
संचालन रागिनी शर्मा ने किया एवं आभार ममता झा ने व्यक्त किया।
संगोष्ठी में डॉ लता जोशी, मुंबई, डॉ रेणुका अरोरा, डॉ वी के मिश्रा, इंदौर, श्रीमती राधा दुबे, लता प्रसार, श्वेता गुप्ता, डॉ भरत शेणकर, प्रभा बैरागी, डॉ शम्भू पंवार, झुंझुनूं, आर्यावर्ती जोशी, डॉ ज्योति सिंह, इंदौर, पुष्पा गरोठिया आदि सहित देश के विभिन्न भागों के साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं प्रतिभागी उपस्थित थे।
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