अखिल विश्व के प्रति उत्कट अनुराग निहित है गुरु नानक की वाणी में – प्रो शर्मा, गुरु नानक देव जी : सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी संपन्न
देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा गुरु नानक देव जी : सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश - दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान वक्ताओं और साहित्यकारों ने भाग लिया। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि सरदार जसवंत सिंह अमन, लुधियाना, प्रो हरपालसिंह पन्नू, बठिंडा सरदार डॉ बलविंदरपाल सिंह, लुधियाना, पंजाब, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, पंजाब, डॉ शिवा लोहारिया जयपुर, डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉक्टर गरिमा गर्ग, चंडीगढ़, महासचिव डॉ प्रभु चौधरी एवं उपस्थित वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षाविद् डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की।
प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि गुरु नानक जी ने मानवीय जीवन से जुड़े अनेक व्यावहारिक सन्देश दिए हैं। उन्होंने गुरु नानक देव जी द्वारा दिए गए दस प्रमुख संदेशों का नॉर्वेजियन भाषा में अनुवाद प्रस्तुत किया।
मुख्य वक्ता प्रसिद्ध लेखक एवं संस्कृतिविद् प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि विश्व संस्कृति को गुरु नानक देव जी की देन अद्वितीय है। उनका सामाजिक और सांस्कृतिक चिंतन गहरी आध्यात्मिक दृष्टि पर टिका है। उनकी वाणी के केंद्र में परमात्मा की व्यापकता और अखिल विश्व के प्रति उत्कट अनुराग अंतर्निहित है। इस संसार में सत्य एक ही है, उसका विभिन्न रूप और विधियों के माध्यम से अलग-अलग दर्शन और अलग-अलग वर्णन सदियों से किया जा रहा है। गुरु नानक जी उन सब के मध्य समन्वय का मार्ग सुझाते हैं। वे सभी पंथियों का आह्वान करते हैं कि एक बार मन को जीत लें तो सारा संसार जीता जा सकता है। उन्होंने न केवल व्यापक लोक समुदाय को प्रभावित किया, वरन उसे नए ढंग से जीने और दुनिया को देखने का नजरिया दिया। उनका मुख्य सन्देश है कि परमात्मा एक है, उसी ने हम सबको बनाया है। सभी मत, पंथ और संप्रदायों के अनुयायी एक ही परमात्मा की संतानें हैं। गुरु नानक जी परमात्म तत्त्व के साक्षात्कार के लिए भटकते हुए लोगों को सही राह दिखाते हैं। उन्होंने सभी पंथों के लोगों से बाह्याडंबरों को त्याग कर मूल्यों पर दृढ़ रहने की प्रेरणा दी। उनका मार्ग पलायन और निष्कर्म से परे गहरे दायित्वबोध का मार्ग है। संन्यास लेने भर से मुक्ति नहीं मिलती, वह तो स्वभाव की प्राप्ति से सम्भव है। स्वयं को पहचाने बगैर भ्रम की काई नहीं मिटेगी।
विशिष्ट अतिथि सरदार डॉ बलविंदरपाल सिंह, लुधियाना, पंजाब ने गुरु नानक देव की वाणी में निहित आर्थिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज दुनिया भर में लंगर चल रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि गुरु नानक जी ने बीस रुपये से जो पहली बार लंगर करवाया था, उसकी एफ डी इस तरह हुई थी कि आज भी वह लंगर जारी है। गुरु नानक जी की मान्यता है कि समस्त प्रकार के भौतिक संसाधन और बौद्धिक क्षमता ईश्वर द्वारा दिया गया उपहार है। दुनिया में प्राप्त सभी पदार्थ सभी के लिए हैं। गुरु नानक जी मानते हैं कि जरूरतमंद लोगों को केवल दान देने से लाभ नहीं होगा, वरन उन्हें कौशल सिखाया जाए, जिससे वे स्वयं धन उपार्जन कर सकें। वास्तविक रत्न और जवाहर बुद्धि में है, गुरु नानक जी ने इस बात पर बल दिया है। नानकदेव जी ने करतारपुर में स्वयं अपने हाथों से खेती की थी। कितनी भी तरक्की हो जाए, किंतु हम ईश्वर को न भूलें, यह गुरु नानक जी का संदेश है। गुरु नानक जी निरपेक्ष गरीबी रखने वालों के साथ खड़े होने का आह्वान करते हैं। उन्होंने अनेक नए शहर बसाए, जो आर्थिक प्रगति में सहायक सिद्ध हुए।
लुधियाना, पंजाब के सरदार डॉ जसवंत सिंह अमन ने गुरु नानक देव जी के राजनीतिक विचारों पर व्याख्यान देते हुए कहा कि गुरु नानक जी के दौर में धर्म का स्वरूप विकृत हो गया था। नैतिकता के क्षरण के दौर में उन्होंने नई दिशा दिखाई। शासक और प्रशासक, प्रजा विरोधी रवैया अपनाए हुए थे। गुरु नानक जी परमेश्वर को सर्वोच्च शासक मानते हैं। उनके बिना संसार में कुछ भी नहीं है। वे शासकों में परमेश्वर के गुण चाहते हैं। वे प्रजा में भी ज्ञानयुक्त होने की अपेक्षा करते हैं। भ्रष्ट शासन व्यवस्था के लिए वे प्रजा को भी जिम्मेदार मानते हैं। गुरु नानक जी राजनीति को धर्म के अधीन रखते हैं, तभी अत्याचारों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद् डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि गुरु नानक जी के विचार अनेक संदर्भों में आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने सभी पंथों और धर्मों के लिए महत्वपूर्ण उपदेश दिए हैं। वे योगी, समाज सुधारक, उपदेशक और देशभक्त थे। उनकी दृष्टि में मानव मात्र की सेवा सबसे बड़ी ईश्वर भक्ति है। संसार की प्रमुख समस्याओं के निराकरण के लिए नानक वाणी में कई महत्वपूर्ण संदेश मिलते हैं।
डॉ प्रवीण बाला, लुधियाना में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गुरु नानक जी ने संपूर्ण समाज को बाह्य आडंबर और भेदभाव से मुक्त किया। उन्होंने बाल्यकाल से ही अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया था। उनके जीवन से जुड़ी अनेक चमत्कारिक घटनाएं आज भी याद की जाती हैं। उनके संदेश तीन आधारों पर टिके हैं कीरत करो, नाम जपो और लंगर छको।
समाजसेवी डॉ. शिवा लोहारिया, जयपुर ने कहा कि समाज की आत्मनिर्भरता और आध्यात्मिक उन्नति के लिए गुरु नानक के संदेश अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने तत्कालीन धर्म के उपदेशकों की सीमाएं बताईं और लोगों को सद्धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार श्री राकेश छोकर, नई दिल्ली एवं साहित्यकार डॉ हरेराम वाजपेयी ने भी विचार व्यक्त किए। श्री वाजपेयी ने इंदौर क्षेत्र में स्थित विभिन्न गुरुद्वारों का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि गुरुद्वारों के माध्यम से अपूर्व शांति प्राप्त होती है।
कार्यक्रम की संकल्पना और संस्था का प्रतिवेदन महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत किया।
प्रारंभ में संगीतमय गुरुवाणी अलका वर्मा ने प्रस्तुत की। स्वागत भाषण साहित्यकार डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर ने दिया। अतिथि परिचय वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राजेंद्र साहिल, पटियाला ने दिया।
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में संस्था की राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉक्टर सुवर्णा यादव, मुंबई, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ आशीष नायक, रायपुर, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ राकेश छोकर, नई दिल्ली, डॉ मधुकर देशमुख, नागपुर, डॉ रुपिंदर शर्मा, पटियाला, डॉ रिधिमा जोशी, डॉ राजेंद्र कुमार सेन, भटिंडा, डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ शिवा लोहारिया, जयपुर, डॉक्टर राजेंद्र साहिल, लुधियाना, डॉ राधा दुबे, जबलपुर, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, डॉ श्वेता पंड्या, उज्जैन, श्रीराम सौराष्ट्रीय आदि सहित अनेक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद एवं डॉ राजेंद्र साहिल, लुधियाना ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ राजेंद्र कुमार सेन, भटिंडा ने किया।
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