सामाजिक समरसता की पक्षधर रहे भारत की संत परम्परा-डॉ. शर्मा
सुखी, समृद्ध एवं विशाल राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता एवं सद्भाव आवश्यक है। महर्षि व्याल्मिकी, संत रविदास, गुरूनानक, कबीर आदि ने अपनी वाणियों में इसका संदेश दिया है। अखंड भारत एवं विश्व गुरू की पहचान के लिये संतो की सामाजिक समरसता में भारत की संत परम्परा का महत्वपूर्ण योगदान है।
उक्त सारगर्भित उद्बोधन विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक एवं आचाय्र डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने संत रविदास जयंती पर आयोजित समारोह में व्यक्त किये। समारोह की अध्यक्षता राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने वक्तव्य में कहा कि आज इस बात की आवश्यकता है कि संतो की अमर वाणियों एवं उपदेशो एवं बताए मार्ग पर चले तथा सामाजिक समरसता को आत्मसात करें।
समारोह के मुख्य अतिथि पुणे के डॉ. शहाबुद्दीन शेख, अहमदनगर के डॉ. मिलिन्द कसबे एवं डॉ. रजिया शेख, डॉ. मुक्ता कौशिक, डॉ. सुजाता पाटील, श्रीमती सुवर्णा जाधव, डॉ. दत्तात्रय गंधारे, डॉ. भरत शेणकर, सुंदरलाल जोशी सूरज, प्रभा बैरागी, डॉ. सुजाता पाटील आदि ने भी सम्बोधित किया। संचालन डॉ. रोहिणी डावरे ने एवं आभार पूर्णिमा कौशिक ने माना।
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