रामराज्य केवल राजनीतिक प्रादर्श नहीं, संपूर्ण जीवन दर्शन है – प्रो शर्मा ; रामकाव्य की परंपरा और रामराज्य : वैश्विक परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी
रामराज्य केवल राजनीतिक प्रादर्श नहीं, संपूर्ण जीवन दर्शन है – प्रो शर्मा
रामकाव्य की परंपरा और रामराज्य : वैश्विक परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज एवं राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी रामकाव्य की परंपरा और रामराज्य : वैश्विक परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं मीडिया विशेषज्ञ श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो नॉर्वे थे। प्रमुख वक्ता समालोचक एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकाय के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि प्राचार्य श्री शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉक्टर गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई, श्री ओमप्रकाश त्रिपाठी एवं संस्था के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉक्टर शैल चंद्रा, धमतरी, छत्तीसगढ़ ने की।
प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेश चन्द्र शुक्ल, ओस्लो, नार्वे ने उद्बबोधन में कहा कि राम की कथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आज भी सकारात्मक दिशा देती है। पर्यावरण प्रेम से जुड़े अनेक संदर्भ राम काव्य में मौजूद हैं। श्री शुक्ल द्वारा नॉर्वेजियन भाषा में तुलसी के रामचरितमानस के प्रमुख अंशों का अनुवाद किया गया है।
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि राम का चरित्र अपार है। स्वयं भगवान राम अलग अलग रूप में धरती पर जन्म लेते हैं। रामराज्य एक विशिष्ट प्रक्रिया के माध्यम से स्वरूप लेता है। रामराज्य केवल राजनीतिक प्रादर्श नहीं, संपूर्ण जीवन दर्शन है। रामराज्य का आना जीवन शैली और मूल्यों में आमूलचूल परिवर्तन होना हैं। महात्मा गांधी ने रामराज्य को स्वराज्य और धर्मराज्य के रूप में अंगीकार है। लौकिक और अलौकिक दोनों ही रूप में राम हमारे बीच हैं। देश दुनिया में रामकाव्य सदियों से विकासमान रहा है। वाल्मिकी रामायण, तुलसीकृत मानस एवं अन्य कृतियों में राम एक ऐसे नेतृत्वकर्ता के रूप में दिखाई देते हैं, जिनके संरक्षण में जनता चिरकाल तक रहना चाहती है।
विशिष्ट अतिथि विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे ने अपने उद्बबोधन मे कहा कि स्वयं राम और राम कथा के प्रमुख पात्रों ने मूल्य स्थापित किए हैं। वे धर्मानुकूल मार्ग पर चलने की दिशा देते हैं। उनका आचरण मर्यादित है, इसीलिए श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के सचिव एवं साहित्यकार डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने अपने उद्बबोधन में कहा कि रामकथा में राम के त्याग की भावना उत्कृष्ट साहस का परिणाम है। राम ने कदम कदम पर संयम, त्याग और साहस का प्रमाण दिया है। राम ने माता पिता का वचन आदरपूर्वक निभाया।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने कहा कि श्री राम का उदात्त चरित्र और गोस्वामी तुलसीदास की राम कथा आज भी प्रासंगिक है ।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने अपने उद्बबोधन में कहा कि सामाजिक जीवन में परस्पर वार्तालाप में जय श्रीराम, राम राम, जय सियाराम कहते की परिपाटी है। पूरे विश्व में राम की कीर्ति है। राम कथा हमें व्यापक ऊर्जा देती है।
विशिष्ट अतिथि श्री ओमप्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि राम नर और नारायण के समन्वय हैं। दुनिया में अनेक ग्रंथ हैं जिनमें रामकथा वर्णित है।
कार्यक्रम में वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ. पूर्णिमा मालवीय ने अपने उद्बबोधन में कहा कि रामकथा के चरित्र में हमें मनुष्यता के बीज दिखाई देते हैं। विश्व बंधुत्व की भावना रामायण से मिलती है।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना महिला इकाई छत्तीसगढ़ की अध्यक्ष डॉ. रिया तिवारी ने कहा कि राम शब्द नहीं, स्वरूप हैं, अहसास हैं, अनुभूति हैं।
वक्ता के रूप मे श्री लक्ष्मी कांत वैष्णव चांपा छत्तीसगढ़ ने कहा कि वचन निर्वाह, साहस और संयम की दृष्टि से रघुकुल सदियों से आदर्श रहा है। राम ने इन्हें अपने जीवन में निभाया।
अध्यक्षता कर रहीं राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. शैल चन्द्रा, धमतरी ने कहा कि एक मानव का श्रेष्ठतम होना ही राम है। एक नर से नारायण कैसे बनें, यह राम के व्यक्तित्व से हमें सीखना है।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान लखनऊ की हिन्दी सांसद डॉ. वंदना श्रीवास्तव ने प्रस्तावना में कहा कि राम में अद्भुत शक्ति थी। रामकाव्य की परंपरा के मूल स्रोत के रूप में वाल्मीकि रामायण है, जिन्होंने विभिन्न कांडों में रामकथा का सरस वर्णन किया है।
गोष्ठी का उत्तम नियंत्रण एवं संचालन विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान की हिंदी सांसद डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने किया। उन्होंने कहा कि प्रभु श्रीराम मंगल के निधान और अकल्याण के निवारण करने वाले हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम से सभी लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए।
इस आभासी गोष्ठी में श्री हरेराम बाजपेयी इंदौर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, रुली सिंह, मुबंई, डां. शिवा लोहारिया जयपुर आदि ने भी विचार व्यक्त किए।
आरंभ में राष्ट्रीय उपमहासचिव श्रीमती लता जोशी, मुबंई ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। अतिथि परिचय राष्ट्रीय महासचिव डां. प्रभु चौधरी ने दिया। कार्यक्रम में डॉ प्रवीण बाला, पटियाला, डॉ गरिमा गर्ग, पंचकूला, डॉ पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, सतीश शर्मा, संतोष शर्मा, धमतरी सहित अनेक शिक्षाविद, साहित्यकार, प्रतिभागियों ने उपस्थिति दर्शायी।
आयोजक राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के राष्ट्रीय उपसचिव डॉ. आशीष नायक छत्तीसगढ़ रहे।
डॉ. स्वाति श्रीवास्तव, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना सचिव, छत्तीसगढ़ ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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