संयम, संयोग और समाधि की त्रिवेणी है योग – प्रो. शर्मा ; योग दर्शन : वैश्विक सभ्यता और संस्कृति को अवदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में जुड़े चार देशों के योग विशेषज्ञ
संयम, संयोग और समाधि की त्रिवेणी है योग – प्रो. शर्मा
योग दर्शन : वैश्विक सभ्यता और संस्कृति को अवदान पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में जुड़े चार देशों के योग विशेषज्ञ
मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि योग संयम, संयोग और समाधि की त्रिवेणी है। योग दर्शन विश्व सभ्यता को भारत की अनुपम देन है। यह हमें सत, चित और आनंद की अनुभूति तक ले जाता है। योग मनुष्य जीवन में समता का भाव लाता है। इससे हम स्थितप्रज्ञ होने की दिशा में आगे बढ़ते हैं और स्व के शुद्ध रूप में अवस्थित हो सकते हैं। सुख – दुख, लाभ – हानि, शत्रु - मित्र के द्वंद्व को समान भाव से लेने की शिक्षा इससे मिलती है। अष्टांग योग के साधकों को बहिरंग के साथ अंतरंग साधना की ओर भी प्रवृत्त होना चाहिए। यह ईश्वर से मनुष्य को जोड़ने का कार्य करता है। जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति इससे सम्भव है।
योगाचार्य डॉ निशा जोशी, इंदौर ने कहा कि योग के माध्यम से हम स्वयं को जान सकते हैं। यह शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपयोगी है। योग वर्तमान में संपूर्ण पैथी बन गया है। इसके माध्यम से परहित के बारे में सोचने की दिशा मिलती है।
न्यूयॉर्क के श्री चंद्रप्रकाश सुखवाल ने कहा कि योग एक विज्ञान है। योग से हमारा जीवन सरल और शांत हो जाता है। यह शरीर का कवच है, जिससे शरीर स्वस्थ और मन शांत होता है। अमेरिका में योग के अनेक केंद्र हैं, जिनमें बड़ी संख्या में लोग लाभान्वित हो रहे हैं। इससे विश्व में शांति की स्थापना हो सकती है। योग करने से जीवन बदल जाता है और घर मंदिर बन जाता है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि योग दर्शन में सर्व मंगल की कामना अंतर्निहित है। योग जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाता है। वसुधैव कुटुंबकम् की भावना को योग के माध्यम से सहज ही साकार किया जा सकता है।
डॉ. शिवा लोहारिया, जयपुर ने कहा कि योग का प्रमुख उद्देश्य है हम निरंतर आनंदमय बने रहें। इससे स्वास्थ्य लाभ तो होता ही है, वातावरण प्रेममय और शुद्ध हो जाता है।
टीना सुखवाल, न्यूयॉर्क ने कहा कि दुनिया के अनेक देशों में लोगों ने योग से लाभ प्राप्त किए हैं। अमेरिका के अनेक शहरों में योग केंद्र खुले हुए हैं। योग जीवन में एकाग्रता और रचनात्मकता लाता है। एक अनुशासन है। यह कोरोना काल में चिंता और अवसाद से मुक्त होने का महत्वपूर्ण माध्यम सिद्ध रहा है।
कार्यक्रम में डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे,ने कहा कि योग सम्पूर्ण जीवन के लिए उपादेय है। यह मन को स्थिर करने में योगदान देता है। यह हमारे जीवन में सार्थकता लाता है।
डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि योग अध्यात्म के लिए महत्वपूर्ण मार्ग है। भारत अनादि काल से विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित था। वह अब पुनः विश्व गुरु बनेगा। योग संसार के लोगों को जोड़ने का सशक्त माध्यम बन गया है।
श्रीमती मीनाक्षी देशमुख, दुबई ने कहा कि मन को शांत एवं प्रसन्नचित रखने का कार्य योग के माध्यम से संभव होता है। यह देश विदेश के सभी को जोड़ रहा है। योग शास्त्रोक्त विधि से हो, यह योगा न बन जाए, इस बात पर हमें ध्यान देना होगा।
डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, हरियाणा ने कहा कि योग ईश्वर का वरदान है। शरीर और मन को नियंत्रित करने के साथ योग हमारी दिनचर्या को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण सिद्ध होता है। प्राणायाम के माध्यम से उर्जा उत्पन्न होती है। वात रोग एवं अन्य व्याधियों से मुक्ति के लिए योग उपयोगी है।
श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि योग के माध्यम से अनेक प्रकार के रोगों का इलाज संभव है। योग को समुचित ढंग से करने पर ही उसका लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
कार्यक्रम में संस्थाओं द्वारा आयोजित सात दिवसीय योग शिविर में प्रशिक्षण देने वाले योग शिक्षकों - सिद्धार्थ शाह, इंदौर, डॉ सुनीता गर्ग, पंचकूला, पूजा शर्मा, इंदौर, दीपाली वर्मा, इंदौर, कृष्णा भोजावत, इंदौर, वरुण आहूजा, इंदौर एवं एकता डंग, अंबाला को सम्मान पत्र अर्पित कर उन्हें सम्मानित किया गया।
कँवलदीप कौर एवं अन्य सहभागियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
सरस्वती वंदना भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई ने की। स्वागत भाषण डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने प्रस्तुत किया। आयोजन की प्रस्तावना डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने प्रस्तुत की।
आयोजन में श्रीमती चंद्रा सुखवाल, न्यूयॉर्क, प्रो विमल चन्द्र जैन, डॉ ममता झा, मुंबई, मीनू लाकरा, अमिता, संगीता शर्मा, डॉ रोहिणी डाबरे, अहमदनगर, बालासाहेब तोरस्कर, मनीषा सिंह, मुंबई, मनीषा ठाकुर, शीतल वाही, भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई आदि सहित अनेक साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे।
संगोष्ठी का संचालन श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई ने किया।
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