Skip to main content

शतकीय आभासी संगोष्ठी सम्मान। डॉ. प्रभु चौधरी सम्मानित हुए।




राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना जो शिक्षा, साहित्य संस्कृति के लिये संकल्पित संस्था द्वारा वैश्विक महामारी कोरोना में शिक्षक संचेतना द्वारा आभासी संगोष्ठियां के सफल संयोजन में राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी को शतकीय आभासी संगोष्ठी सम्मान किया जिसमें अभिनंदन पत्र स्वर्ण बेज दिया। जिसमें अभिनंदन पत्र(स्वर्ण पत्र) अतिथियों द्वारा आभासी प्रदान किया। आभासी पटल पर उपस्थित अतिथियों एवं पदाधिकारियों ने तालियां बजाकर स्वागत किया।

राष्ट्रीय संगोष्ठी श्री कबीरदास जयंती के अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. प्रकाश बरतुनियां(भोपाल), विशिष्ट अतिथि श्री संजीव निगम(मुम्बई), मुख्य वक्ता डॉ. संजय पटेल(इन्दौर), विशिष्ट वक्ता डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा(उज्जैन), श्री हरेराम वाजपेयी, सुवर्णा जाधव, डॉ. ममता झा, विशेष अतिथि डॉ. रश्मि चौबे, लता जोशी, डॉ. मनीषा शर्मा, सुनीता गर्ग, मनीषा सिंह, सुनीता चौहान, डॉ. मुक्ता कौशिक, दिव्या पाण्डेय, डॉ. उर्वशी उपाध्याय, रोहिणी डावरे, डॉ. शिवा लोहारिया, गरिमा गर्ग आदि ने डॉ. चौधरी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की सराहना करते हुए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी है। संगोष्ठी का संचालन प्रदेशाध्यक्ष पूर्णिमा कौशिक ने एवं आभार डॉ. उर्वशी उपाध्याय ने माना।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक होगी।

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की महत्वपूर्ण बैठक अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा के मुख्य आतिथ्य एवं मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष सुवर्णा जाधव की अध्यक्षता में होगी।

राष्ट्रीय बैठक में राष्ट्रीय पदाधिकारियों के पद परिवर्तन एवं कार्यकारिणी पुनर्गठन का विचार विमर्श करके निर्णय होंगे। आगामी जुलाई माह की आभासी संगोष्ठी एवं नूतन समाचार पत्र ‘संचेतना‘ के प्रवेशांक का विमोचन भी तय किया जावेगा। महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने पदाधिकारियों से उपस्थित होने की अपील की थी।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...