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भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विकास में वेदव्यास की भूमिका अविस्मरणीय है - प्रो शर्मा वेदव्यास और भारतीय गुरु शिष्य परंपरा : अवदान और सम्भावनाएँ पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विकास में वेदव्यास की भूमिका अविस्मरणीय है - प्रो शर्मा

वेदव्यास और भारतीय गुरु शिष्य परंपरा : अवदान और सम्भावनाएँ पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न 


देश की प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी वेदव्यास और भारतीय गुरु शिष्य परंपरा : अवदान और सम्भावनाएँ पर केंद्रित थी। आयोजन के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ केशव प्रथमवीर, पुणे थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ लेखिका श्रीमती सुवर्णा जाधव, पुणे ने की। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर, ब्रजकिशोर शर्मा, डॉ सुनीता मंडल, कोलकाता, नरेंद्र मेहता, उज्जैन, श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे और संस्था महासचिव डॉ प्रभु चौधरी थे।

मुख्य अतिथि डॉक्टर केशव प्रथमवीर, पुणे ने कहा कि गुरु को परमात्मा का रूप माना गया है। गीता का संदेश है कि श्रद्धावान व्यक्ति को ही ज्ञान मिल सकता है। दुनिया के सभी देशों में गुरु शिष्य के संबंध को महत्व मिला है। गुरु प्रेय से श्रेय की ओर ले जाते हैं। गुरु ज्ञान प्रदान करता है, लेकिन शिष्य में भी पात्रता होनी चाहिए। 

मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के रूप में महिमा प्राप्त है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विकास में वेदव्यास जी की अविस्मरणीय भूमिका है। उन्हें साक्षात विष्णु रूप माना गया है।  भारतीय ज्ञान संपदा को उत्कर्ष देने का कार्य महर्षि वेदव्यास ने किया। व्यास जी द्वारा रचित महाभारत का उद्देश्य युद्ध नहीं, शांति का संदेश देना है। व्यास जी ने भारतीय मूल्य परंपरा को अनेक शास्त्रों के माध्यम से सामान्य जन तक पहुंचाया। उन्होंने वेदों को जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए उनका संपादन किया। वेदों में निहित ज्ञान और मूल्यों का विस्तार करते हुए अठारह पुराण, ब्रह्मसूत्र और महाभारत की रचना की। महाभारत का भारतीय साहित्य पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। व्यास जी द्वारा प्रस्तुत गीता के उपदेश लौकिक और अलौकिक दोनों रूपों में महिमावान हैं। 



प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि गुरु अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाला होते हैं। भारतीय परंपरा में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। शिक्षाविद श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि कबीर, तुलसी जैसे अनेक संत कवियों ने गुरु महिमा का वर्णन किया है। गुरु सत्य को जानने की ऊर्जा देते हैं।

वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने कहा कि कृष्ण की शिक्षा स्थली उज्जैन में विद्यारंभ संस्कार करने की परंपरा रही है।  भारतीय परंपरा में गुरु को सम्मान देने पर बल दिया गया है । जो गुरु पर आस्था - विश्वास नहीं रखता है उसे कभी सुख प्राप्त नहीं होता। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए श्रीमती सुवर्णा जाधव, पुणे ने कहा कि सामान्य व्यक्ति स्वयं ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। उनके लिए जीवन की राह दिखाने वाले गुरु की आवश्यकता होती है। गुरु ज्ञान का प्रकाश देने वाले दीपक के समान है।

विशेष वक्ता साहित्यकार श्री नरेंद्र मेहता ने गुरु के विभिन्न अर्थों की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि गुरु पूर्णिमा अनेक देशों में मनाई जाती है। कोलकाता की डॉ सुनीता मंडल ने कहा कि गुरु जीवन में प्रेरणा देने वाले होते हैं जो सही राह दिखाए, वह गुरु है। भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई ने गुरु की महिमा पर केंद्रित कविता सुनाई। 

कार्यक्रम की प्रस्तावना संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि किसी भी श्रेष्ठ कार्य को शुरू करने के लिए स्वयं पहल करना होती है। इसमें गुरु का आशीर्वाद सहायक सिद्ध होता है। प्रारंभ में सरस्वती वंदना डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने की। संगोष्ठी में श्री बालासाहब तोरस्कर, मुंबई, डॉ मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ रश्मि चौबे, गाजियाबाद, भुवनेश्वरी जायसवाल, भिलाई आदि सहित अनेक प्रबुद्ध जन एवं साहित्यकार उपस्थित थे।

कार्यक्रम का संचालन रायपुर से श्रीमती पूर्णिमा कौशिक ने किया। आभार मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर ने माना।


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