कुलपति निवास के आसपास से हटाई गई गाजरघास ; विश्वविद्यालय परिसर में गाजरघास उन्मूलन के लिए जाएंगे प्रयास
कुलपति निवास के आसपास से हटाई गई गाजरघास
विश्वविद्यालय परिसर में गाजरघास उन्मूलन के लिए जाएंगे प्रयास
विक्रम विश्वविद्यालय परिसर स्थित कुलपति निवास और आसपास आज दिनांक 26 जुलाई 2021 को गाजरघास की सफाई की गई। कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय के निर्देशन में कुलपति निवास के अन्दर एवं उसके चारों तरफ गाजरघास की साफ-सफाई निवास पर कार्यरत कर्मचारियों द्वारा की गई और स्वच्छता का संकल्प लिया गया। विश्वविद्यालय परिसर में गाजर घास के उन्मूलन के प्रयास निरंतर किए जाएंगे।
कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय के अनुसार गाजर घास एक वर्षीय शाकीय पौधा हैं, कहीं भी आसानी से फैल सकता हैं | इस पौधे की लम्बाई 1.0 से 1.5 मीटर तक हो सकती हैं | इसकी पत्तियां गाजर की पत्तियों की तरह होती हैं, जिन पर रोंयें लगे होते हैं | इसका अधिकतम अंकुरण 25 से 300C तापमान पर होता हैं | गाजरघास का प्रत्येक पौधा लगभग 15000 से 25000 अत्यन्त सूक्ष्म बीज पैदा करता हैं | इसके बीज हल्के होने के कारण यह दूर तक फैल सकते हैं | यह खरपतवार 3-4 महिने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता हैं | चूँकि ये पौधा प्रकाश एवं तापक्रम के प्रति उदासीन रहता हैं अत: यह वर्षभर उगता है एवं फलता फूलता रहता हैं | इस खरपतवार का बीज कभी- कभी दो तीन वर्ष मिट्टी में शांत रहने के बाद भी उग जाता हैं | यह खरपतवार हर प्रकार की मिट्टी चाहे वह अम्लीय हो या क्षारीय कहीं भी उग सकता हैं | यह किसी भी परिस्थिति में चाहे सिंचित हो या असिंचित उग सकता हैं |
गाजर घास या 'चटक चांदनी' एक घास है जो बड़े आक्रामक तरीके से फैलती है। यह हर तरह के वातावरण में तेजी से उगकर फसलों के साथ-साथ मनुष्य और पशुओं के लिए भी गंभीर समस्या बन जाता है। इस विनाशकारी खरपतवार को समय रहते नियंत्रण में किया जाना चाहिए। खरपतवार एक जगह से दूसरी जगह, एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश व एक देश से दूसरे देश का सफर बड़ी आसानी से तय कर लेता हैं, क्योंकि इस खरपतवार के बीज बहुत ही सूक्ष्म व हल्के होते हैं जो अपनी दो स्पंजी गद्दियों के सहारे से एक स्थान से दूसरे स्थान तक बड़ी आसानी से पहुँच जाते हैं | यातायात के साधनों, पशु पक्षियों, पैकेजिंग मेटेरियल, पानी, हवा आदि के साथ आसानी से फैल सकता हैं | गाजर घास के पौधे में पारथेनिन नामक जहरीला रसायन पदार्थ होता है, जो भी प्राणी इससे छू जाता है अर्थात यह घास उसके शरीर से लग जाती है तो उससे मानव एवं पशु के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा इससे एलर्जी एवं खुजली, आंखों में जलन, शरीर विशेषकर आंखों के आस-पास काले धब्बे व फफोले, बुखार, अस्थमा, जुकाम, दमा, चर्म व श्वास सम्बन्धी एलर्जी इत्यादि रोगों के साथ-साथ अनेकों बीमारियों के होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
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