Skip to main content

पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में मनाया गया स्वतन्त्रता का अमृत महोत्सव और पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस


उज्जैन : पुस्तकालय विज्ञान के जनक पद्मश्री डॉ सियाली रामामृत रंगनाथन जी के जन्मदिवस पर राष्ट्रीय पुस्तकाध्यक्ष दिवस घोषित किया गया है l साथ ही ये स्वतन्त्रता दिवस का 75 वां वर्ष होने से दोनों पर्वों को सम्मिलित रूप से मनाया गया। इस अवसर पर स्वतन्त्रता पूर्व और पश्चात पुस्तकालय के योगदान विषय पर व्याख्यान आयोजित किए गए l कार्यक्रम के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही सुविधा उपलब्ध थी l

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध इतिहासविद डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित थेl अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की। कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक विशिष्ट अतिथि थे।
मुख्य अतिथि डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित ने पुस्तकालय के महत्व को बताया l कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय द्वारा ऑनलाइन रूप से अध्यक्ष के रूप में उद्बोधन देते हुए कार्यक्रम की सराहना की गई तथा पुस्तकालय की अनिवार्यता बताते हुए ऐसे अनेक कार्यक्रम किए जाने का सुझाव दिया l

अतिथि स्वागत के बाद डॉ अनिल जैन द्वारा स्वतंत्रता पूर्व के पुस्तकालय योगदान को बताया गया l डॉ राज बोरिया द्वारा रंगनाथन जी का जीवन परिचय दिया गयाl डॉ सोनल सिंह ने आधुनिक पुस्तकालय के योगदान पर अपने विचार प्रस्तुत किए l इस अवसर पर छात्रा माया शर्मा द्वारा Covid-19 के समय पुस्तकालय पर निर्मित फिल्म अपराजिता को भी दिखाया गया l शोधकर्ता विलास निम्भोरकर ने आधुनिक पुस्तकालय में रंगनाथन जी के दर्शन का अनुप्रयोग आईआईएम, इंदौर के पुस्तकालय से जोड़ कर ऑनलाइन रूप में प्रस्तुत किया l

कार्यक्रम का आरंभ कुलगान से हुआ। इसके पश्चात सरस्वती पूजन, दीप दीपन, श्री रंगनाथन जी के चित्र पर माल्यार्पण और अध्ययनशाला के विद्यार्थियों द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ। आभार पुस्तकालय प्रभारी डॉ संदीप तिवारी ने माना I इस अवसर पर डॉ स्वाति दुबे, डॉ आर शास्त्री मुसलगांवकर, डॉ एस के मिश्रा, डॉ कानिया मेड़ा, डॉ वीरेंद्र चावरे, डॉ संग्रामभूषण सहित विभिन्न विभाग के शिक्षक उपस्थित थे l
कार्यक्रम का संचालन डॉ अनिल जैन ने किया ।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...