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स्वाधीनता आंदोलन के दौर में अनेक साहित्यकार - संपादकों ने अविस्मरणीय योगदान दिया ; भारतीय स्वाधीनता आंदोलन, हिंदी साहित्य और पत्रकारिता पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत

स्वाधीनता आंदोलन के दौर में अनेक साहित्यकार - संपादकों ने अविस्मरणीय योगदान दिया

भारतीय स्वाधीनता आंदोलन, हिंदी साहित्य और पत्रकारिता पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत



उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला एवं गांधी अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आजादी के अमृत महोत्सव एवं तुलसी जयंती के अवसर पर भारतीय स्वाधीनता आंदोलन, हिंदी साहित्य और पत्रकारिता पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। आयोजन के प्रमुख अतिथि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो के जी सुरेश थे। अध्यक्षता कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की। विशिष्ट अतिथि कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक एवं देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर की कला संकायाध्यक्ष डॉ वंदना अग्निहोत्री थीं। संगोष्ठी में हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रो प्रेमलता चुटैल, डॉ उमा वाजपेयी एवं डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने अपने विचार व्यक्त किए।

मुख्य अतिथि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो के जी सुरेश ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्य के साथ पत्रकारिता का गहरा संबंध रहा है। साहित्य के अभाव के कारण पत्रकारिता का क्षरण हो रहा है। स्वाधीनता आंदोलन के दौर में अनेक साहित्यकार - सम्पादकों ने अपना योगदान दिया। जो लोग इतिहास को भुलाने की गलती करते हैं वे खुद इतिहास को दोहराने की समस्या पैदा करते हैं। हम इतिहास में की गईं गलतियों को न दोहराने का संकल्प लें। पत्रकारिता से जुड़े लोगों के लिए साहित्य का अध्ययन आधारशिला बनना चाहिए।

कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि क्रांति की दृष्टि से अगस्त माह का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हमारे अनेक साहित्यकारों ने आजादी की अलख जगाई। गोस्वामी तुलसीदास ने सदियों पहले पर्यावरण, जल और वनस्पति के संरक्षण की प्रेरणा दी है। इको पोएट्री से जुड़कर विद्यार्थी पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करें। हैप्पीनेस इंडेक्स के साथ पत्रकारिता और साहित्य को जोड़ना होगा।

कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने कहा कि आजादी के आंदोलन को गति देने में मालवा क्षेत्र के समाचार पत्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इंदौर से हिंदी, उर्दू और मराठी में मालवा अखबार प्रकाशित किया जाता था। मालवा क्षेत्र में विद्यार्थी, चंद्रप्रभा, कल्पवृक्ष, वाणी, नीरव जैसे कई समाचार पत्र प्रकाशित होते थे। 1942 में पंडित सूर्यनारायण व्यास ने विक्रम पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया था। उस दौर के पत्र पत्रिकाओं ने राष्ट्रीय चेतना के प्रसार में योगदान दिया। हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय संदर्भ में स्थानीयता, राष्ट्रीयता और वैश्विकता के आयाम परस्पर पूरक भूमिका निभाते चलते हैं। राष्ट्रीयता के लिए जरूरी है बाहरी तौर पर दिखाई देने वाले अंतर के बावजूद आंतरिक समभावना और संगठन हो। बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ जैसे प्रखर कवि ने राष्ट्रीयता को एक गहरी भावना पर टिका हुआ माना है। टैगोर, सुब्रमण्यम भारती, मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी जैसे अनेक रचनाकारों ने भारतीयता की खरी पहचान के साथ राष्ट्र की मुक्ति के लिए प्रवृत्ति और प्रतिरोध के स्वर को मुखरित किया। स्वाधीनता आंदोलन के दौर में अग्निधर्मा पत्रकारिता ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अखबारों और साहित्य को प्रतिबंध भी झेलना पड़ा था, किंतु पत्रकारों और साहित्यकारों की आवाज को ब्रिटिश हुकूमत दबा न सकी। डॉ वंदना अग्निहोत्री, इंदौर ने कहा कि स्वतंत्रता अनमोल है, इसे बरकरार रखना हम सबका दायित्व है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने विदेशी शासकों की लूट खसोट के विरुद्ध व्यंग्य रचनाएं लिखी थीं। प्रसाद जी की कविताएँ राष्ट्र को निरंतर आगे बढ़ते रहने का आह्वान करती रहीं। राष्ट्रीय आंदोलन नवोन्मेष था, वह क्रांति की गर्जना था। राष्ट्रप्रेम के पौधे को सींचकर हमारे साहित्यकारों ने अविस्मरणीय योगदान दिया। प्रो प्रेमलता चुटैल ने कहा कि परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने का कार्य सेनानियों के साथ साहित्यकारों और पत्रकारों ने किया। तुलसीदास जी ने स्वयं अकबरकालीन परतंत्र भारत को देखा था, जिससे मुक्ति का आह्वान उन्होंने रामचरितमानस के माध्यम से किया। हम स्वतंत्र भारत में रहते हुए अपने भाग्य को सराहें। साथ ही विषम परिस्थिति रूपी शत्रुओं को समाप्त करने का कार्य निरंतर करें। डॉ उमा वाजपेयी ने कहा कि सुभद्राकुमारी चौहान ने देशभक्ति पूर्ण रचनाओं के माध्यम से हमारे मनोमस्तिष्क को उत्प्रेरित किया। गोस्वामी तुलसीदास और सुभद्रा जी की रचनाएं अपने जीवन को सार्थकता देने का आह्वान करती हैं। सुभद्रा जी ने वीरों का कैसा हो बसंत कविता के माध्यम से प्रेरणा के अनेक सूत्र दिए हैं। डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि जयशंकर प्रसाद की आकाशदीप जैसी कहानियों में राष्ट्रीयता और त्याग की भावना अभिव्यक्त हुई है। उनकी शरणागत कहानी परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़े भारत को मुक्ति का मार्ग सुझाती है। प्रसाद जी ने ममता कहानी के माध्यम से भोग के लिए सत्ता का वरण करने वाले लोगों को त्याग की प्रेरणा दी है। कार्यक्रम में प्रो गीता नायक, डीएसडब्ल्यू डॉ सत्येंद्र किशोर मिश्रा, डॉ शैलेन्द्र भारल, डॉ डीडी बेदिया, डॉ गणपत अहिरवार डॉ विश्वजीतसिंह परमार, डॉ संग्राम भूषण, श्रीमती हीना तिवारी आदि सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी एवं हिंदी एवं मास कम्यूनिकेशन के विद्यार्थी उपस्थित थे। अतिथियों ने महात्मा गांधी संग्रहालय, विश्व हिंदी संग्रहालय एवं अभिलेखन केंद्र के साथ मास कम्यूनिकेशन के विद्यार्थियों के लिए तैयार स्टूडियो, फोटोग्राफी एवं मीडिया प्रदर्शनी का उद्घाटन एवं अवलोकन किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित पुस्तकें महात्मा गांधी : विचार और नवाचार तथा सिंहस्थ विमर्श कुलपति प्रो के जी सुरेश को अर्पित की गईं। कार्यक्रम के पूर्व अतिथियों ने वाग्देवी सरस्वती, गोस्वामी तुलसीदास और महात्मा गांधी के चित्र एवं शिल्प पर पुष्पांजलि अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया आभार प्रदर्शन डॉ प्रेमलता चुटैल ने किया।

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