अंतर्बाह्य बन्धनों से मुक्त करते हैं श्रीकृष्ण – प्रो शर्मा
भगवान श्रीकृष्ण : भारतीय साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन सम्पन्न
प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा श्रीकृष्ण भगवान : भारतीय साहित्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई थीं। कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा थे। आयोजन की अध्यक्षता नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल ने की। कार्यक्रम में शिक्षाविद श्री ब्रजकिशोर शर्मा, उज्जैन, श्री बाला साहब तोरस्कर, मुंबई, डॉ मंजू रूस्तगी, चेन्नई आदि ने विचार व्यक्त किए।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कृष्ण अंतर्बाह्य समस्त प्रकार के बंधनों से मुक्त करते हैं। कृष्ण रसावतार और आनन्दनिधान होने के साथ साहस और शौर्य के प्रतीक हैं। वे एक साथ मुरलीधर भी हैं और चक्रधर भी हैं। उन्होंने सदियों पहले सामाजिक भेदभाव को मिटाने का प्रयास किया, वर्तमान संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक है। भारतीय साहित्य, सभ्यता और संस्कृति पर उनका गहरा प्रभाव है। उन्होंने कृष्ण की मुरली पर विस्तार से चर्चा की।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉक्टर हरिसिंह पाल ने कहा कि श्रीकृष्ण ने मानव मानव में भेद को समाप्त किया। उन्होंने कहा कि आज सभी का जन्मदिन है क्योंकि हम उसी परमात्मा श्रीकृष्ण के अंश हैं। इसलिए हम सभी को अपना जन्मदिन आज मनाना चाहिए। उन्होंने श्रीकृष्ण पर रचित साहित्य की विस्तार से चर्चा की।
स्वर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि लोकनायक कृष्ण का प्रबंधन कौशल बहुत ही अच्छा था। वे बनी बनाई लीक पर नहीं चले। वे कहते हैं कि क्यों व्यर्थ चिंता करते हो किससे डरते हो। हमें दूरदर्शी होना चाहिए, परिस्थितियों का आकलन करना चाहिए। हार की वजहों को जानकर आगे बढ़ना चाहिए।
संस्था के अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि हमें अर्जुन की तरह योगेश्वर कृष्ण के अनुयायी होने के लिए गीता को समझना पड़ेगा, तभी हम जीवन की महाभारत जीत सकेंगे।
बालासाहेब तोरस्कर, मुंबई ने कहा कि हमें कृष्ण के संदेश को साथ में लेकर चलना चाहिए। उन्होंने उनके जन्म के बारे में विस्तार से चर्चा की। डॉ दिग्विजय शर्मा, आगरा ने कहा कि जब जब धर्म की हानि होती है, तब- तब ईश्वर जन्म लेते हैं।
डॉ मंजू रूस्तगी, चेन्नई ने कहा कि श्री कृष्ण ने कर्म को सर्वोपरि माना है। डॉ सविता इंगले ने मराठी में भजन सुनाया। भुवनेश्वरी जायसवाल, कोरबा ने कहा कि योगेश्वर कृष्ण कलानिधि के रूप में हैं।
कार्यक्रम का शुभारंभ श्रीमती पूर्णिमा कौशिक जी की सरस्वती वंदना से हुआ और स्वागत भाषण डॉ स्वाति श्रीवास्तव ने दिया। डॉ सुरेखा मंत्री, यवतमाल ने कार्यक्रम की प्रस्तावना प्रस्तुत की और कहा कि जो भक्त जिस भावना से भजता है वे उसे उसी रूप में मिलते हैं।
कार्यक्रम का सुंदर संचालन मुख्य राष्ट्रीय महासचिव महिला इकाई डॉ रश्मि चौबे गाजियाबाद ने किया और आभार राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी जी ने माना। कार्यक्रम में बांसुरी वाले श्रीकृष्ण, योगेश्वर श्रीकृष्ण, जगद्गुरु श्रीकृष्ण, यशोदा और नंद के लाल, रास रचैया - सभी रूपों पर चर्चा हुई।
कार्यक्रम में रमेश पाल, महिला इकाई अध्यक्ष श्रीमती शिवा लोहारिया, जयपुर, श्रीमती गरिमा गर्ग, पंचकूला एवं अन्य अनेक गणमान्य उपस्थित रहे। अन्त में डॉ सुरेखा मंत्री ने भजन सुनाया।
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