Skip to main content

आत्मनिर्भर विक्रम विश्वविद्यालय के अन्तर्गत एसओईटी के छात्रों द्वारा बनाये गए वायरलेस डिजिटल डिस्प्ले बोर्ड का उद्घाटन


उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडे एवं विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. प्रशान्त पुराणिक एवं स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एण्ड टेक्नोलॉजी के निदेशक डॉ. गणपत अहिरवार की उपस्थिति में प्रोजेक्ट कार्य के तहत एवं आत्मनिर्भर विक्रम विश्वविद्यालय के अन्तर्गत बनाये गये वायरलेस डिजिटल डिस्प्ले बोर्ड एवं वायरलेस स्टेटिक डिस्प्ले बोर्ड का उद्घाटन सम्पन्न हुआ।  कुलपति प्रो पांडेय एवं  कुलसचिव डॉ पुराणिक द्वारा मोबाईल ऐप्लीकेशन के माध्यम से दोनों यंत्रों को चालू कर शुभारंभ किया गया।

स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एण्ड टेक्नोलॉजी के इलेक्ट्रिकल विभाग के अंतिम वर्ष के छात्र अंकित कुमार सिंह, सौरव बिसाई, पवन कुमार बैस, प्रवेश पटेल एवं विभाग के अंतिम वर्ष के छात्र - छात्राओं द्वारा भारत के माननीय प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना के अंतर्गत आत्मनिर्भर विक्रम विश्वविद्यालय के तहत कॉलेज प्रोजेक्ट के अन्तर्गत वायरलेस डिजिटल डिस्प्ले बोर्ड एवं वायरलेस स्टेटिक डिस्प्ले बोर्ड का निर्माण इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्राध्यापक श्री रघुनन्दन सिंह बघेल, श्रीमती नेहा सिंह, श्री रितेश नागर एवं गरिमा सोलंकी के मार्गदर्शन में  किया गया। विद्यार्थियों द्वारा इन यंत्रों को बनाने में जो भी कच्चा माल लगा है, वह मेड इन इंडिया मटेरियल का उपयोग किया गया है। चलित डिस्प्ले बोर्ड में आर्डुइनो प्रोग्रामिंग एवं मोबाईल वायरलेस नेटवर्क का प्रयोग किया गया है। इस प्रोग्रामिंग के तहत चलित बोर्ड को दुनिया के किसी भी कोने से नियंत्रित किया जा सकता है। विद्यार्थियों ने इस प्रोजेक्ट में इस बात का विशेष ध्यान रखा कि जो भी वस्तु इस यंत्र में उपयोग में आ रहीं हे उसका निर्माण भारत में ही हो रहा हो तथा ऐसा करने से विद्यार्थियों ने इस प्रोजेक्ट के व्यय पर 40 प्रतिशत की कटोत्री की है। मार्केट में जो बोर्ड तीस से चालीस हजार में उपलब्ध है, वह विद्यार्थियों ने मात्र बीस से बाईस हजार में बनाकर तैयार कर दिया है।

 उद्घाटन कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्रो. एच.पी. सिंह, कुलानुशासक प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा, संकायाध्यक्ष डॉ. एस.के. मिश्रा, डॉ. डी.डी. बेदिया, डॉ. अजय शर्मा, संजीव सिंह, एवं  संस्थान के प्राध्यापक श्री आशीष सूर्यवंशी, श्री राजेश चौहान, श्री चेतन गुर्जर, श्री सचिन सिरोनिया, श्री योगेश पाटिदार, श्री डी.पी. जायसवाल, श्री अमित मरमट एवं संस्थान के कर्मचारीगण श्री संजय शर्मा, श्री अमित सक्सेना, श्री सहजाद पटेल आदि उपस्थित रहे एवं सभी ने विद्यार्थियों को इस उपलब्धि पर शुभकामनाएं दीं।     


Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...