हिंदी परिवार,इंदौर के संस्थापक अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी ने कहा कि नागरी में जितना है,उतना रोमन या अन्य लिपियों में कदापि नहीं है।मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति का नागरी प्रकोष्ठ देवनागरी के प्रचार प्रसार में अमूल्य योगदान कर रहा है।
श्रीमती सुवर्णा जाधव,मुंबई ने कहा कि आचार्य विनोबा भावे जी देवनागरी लिपि को विश्वलिपि के रूप में देखना चाहते थे।नागरी में प्रत्येक वर्ण की सुनिश्चित ध्वनि है।
डाॅ.मुक्ता कान्हा कौशिक,रायपुर छ.ग. ने कहा कि नागरी एक आदर्श लिपि है।देवनागरी का सर्वप्रथम प्रयोग सातवी सदी में गुजरात के जयभट्ट के शिलालेख में पाया गया है।
डाॅ.सुरेखा मंत्री,यवतमाळ,महाराष्ट्र ने कहा कि नागरी लिपि के वर्णों की बनावट ही वैज्ञानिक ढंग से हुई है,जो निस्संदेह निर्दोष है।ब्राह्मी लिपि की उत्तराधिकारिणी होने से समस्त आधुनिक भारतीय लिपियों से नागरी की समानता है।
डाॅ.राजलक्ष्मी कृष्णन,चेन्नई ने कहा कि,लिपिविहीन बोलियों के लिए नागरी लिपि बहुत काम आ सकती है।राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से नागरी अत्यंत उत्तम लिपि है।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डाॅ.प्रभु चौधरी ने कहा कि देवनागरी लिपि भारतीय भाषाओं के मध्य सामंजस्य की भूमिका निभाती आ रही है।
इस अवसर पर सुरेशचन्द्र शुक्ल,ओस्लो,नाॅर्वे,बाळासाहेब तोरस्कर,ठाणे,महाराष्ट्र,श्रीम.
ज्योति तिवारी,इंदौर,श्री दिलिप चौधरी,नांदेड,श्रीम.दीप्ति शर्मा व विभा पाराशर,भोपाल और प्रभा वीरथरे,गुरूग्राम ने अपने विचार प्रस्तुत किये।गोष्ठी का शुभारंभ ज्योति तिवारी ने सरस्वती वंदना से किया।
डाॅ.प्रभु चौधरी,महासचिव ने स्वागत भाषण दिया।डाॅ.रश्मि चौबे,गाजियाबाद ने प्रस्तावना में नागरी लिपि की वैज्ञानिकता पर प्रकाश डाला।डाॅ.रश्मि चौबे के जन्मदिन की स्क्रीन श्रीमती पूर्णिमा कौशिक ने प्रस्तुत की।प्रस्तुत गोष्ठी में डाॅ.रश्मि चौबे को'नागरी सम्मान' से विभूषित किया गया।मंच संचालन श्रीमती पूर्णिमा कौशिक,रायपुर ने किया तथा डाॅ.शिवा लोहारिया,जयपुर ने सभी को धन्यवाद दिया।
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