विश्व अर्श दिवस - आलेख , इस अवसर पर शा. धन्वन्तरि आयुर्वेद महाविद्यालय, उज्जैन में शिविर आयोजित किया जाएगा
उज्जैन : आधुनिक समय में अनियमित जीवनशैली (आहार विहार) से उत्पन्न होने वाले रोगों में अर्श रोग (बवासीर) प्रमुख रोग हैं जो कि मल मार्ग में होता है। आयुर्वेद के ग्रंथों में इसका वर्णन सभी संहिताओं में मिलता है। अष्टांग आयुर्वेद में शल्य तंत्र के जनक आचार्य सुश्रुत ने अर्श रोग का वर्णन प्रमुखता से किया है। आचार्य ने अर्श रोग को शत्रु के समान कष्ट देने वाला बताया है। अर्श रोग को गुदामांसाकुर गुदकिलक के नाम से भी जाना जाता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में इसको पाईल्स या हेमोरॉयड्स कहा जाता है। अर्श रोग को उत्पन्न करने वाले कारणों में गरिष्ठ भोजन करना, बासी भोजन, अधिक मद्यपान, एक जगह ज्यादा बैठना, समय पर भोजन ना करना, अपच होने पर भी भोजन करना गर्भावस्था में आनुवांशिक कारण आदि हैं।
अर्श के प्रमुख लक्षणों में गुदमार्ग में दर्द होना, मलत्याग में कठिनाई होना, कठिन मल होने पर रक्त आना, पेट फूलना, कब्ज रहना, खट्टी डकार आना, सिर दर्द बने रहना, भूख ना लगना मुख्य है।
आचार्य ने आयुर्वेद में अर्श रोग की चिकित्सा चार प्रकार से बताई है, जिसमें औषध क्षारकर्म, अग्निकर्म शस्त्र द्वारा चिकित्सा की जाती है। अर्श रोग के अल्प लक्षण होने पर आयुर्वेद चिकित्सा परामर्श अनुसार औषध चिकित्सा सफल होती है। जब अर्श मलमार्ग के बाहरी त्वचा में स्थित हो तब अग्निकर्म चिकित्सा की जाती है। जब अर्श रोग में मांसाकुर मलत्याग के समय मल मार्ग से बाहर आए और उनमें रक्त स्त्राव हो तब क्षारसूत्र चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ होती है। क्षारसूत्र में धागे पर स्नुही क्षीर, अपामार्ग क्षार एवं हल्दी चूर्ण का लेप किया जाता है और इस औषध सिद्ध क्षारसूत्र से मांसान्कुर को बांध दिया जाता है, जिससे वह 7 दिन में स्वत: ही सूख कर गिर जाते हैं।
क्षारसूत्र चिकित्सा पद्धति में से होने वाले व्रण या घाव जल्दी ही भर जाते हैं और मल मार्ग में किसी प्रकार की क्षति नहीं होती आयुर्वेद की यह पद्धति एक निरापद चिकित्सा है।
अर्श रोग से बचाव हेतु दूध, छाछ, मठ्ठा , पुराना गेहूं व अन्न, गाय का घी हरी सब्जियां समय पर आहार एवं उचित निद्रा का सेवन करना चाहिए एवं भारी भोजन, अधिक तला हुआ मिर्च मसाले युक्त एवं मांसाहार, मैदा और बेसन से बने उत्पादों की सेवन नहीं करना चाहिए।
इस अवसर पर शा. धन्वन्तरि आयुर्वेद महाविद्यालय, उज्जैन में शिविर आयोजित किया जाएगा।
आयुर्वेद अपनाएं व स्वस्थ रहें।
यह जानकारी प्राचार्य डॉ. जे. पी. चौरसिया एवं डॉ. दिवाकर पटेल विभागाध्यक्ष ने दी। उक्त शिविर कक्ष क्रमाक 17 एवं 25 में आयोजित होगा । सेवाए डॉ. दिवाकर पटेल एवं डॉ. दीपक नायक देंगे।
डॉ. दीपक नायक (एम.एस.)
शल्य चिकित्सक
शा. धन्वन्तरि आयुर्वेद महाविद्यालय उज्जैन
मो. 7898574236
डॉ. प्रकाश जोशी
मो. 9406606067
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