वनोपज से संभव है रोजगार के नए क्षेत्रों का सृजन
वानिकी : शिक्षा, संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ विषय पर महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के जीवविज्ञान संकाय द्वारा वानिकी : शिक्षा, संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न संस्थानों से लगभग 500 विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं वैज्ञानिकों द्वारा सहभागिता की गई। इस कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों को वानिकी शिक्षा और अनुसंधान के महत्व से अवगत कराते हुए, वन संसाधन की उपयोगिता, रोजगार की संभावनाओं तथा सामने आने वाली चुनौतियाँ के समाधान के लिए जागृत करना एवं भविष्य के लिए वन संसाधन एवं संरक्षण हेतु वैज्ञानिक विधियों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराना था। वनों के महत्व एवं वर्तमान परिदृश्य में दिनों दिन घटते हुए वन परिक्षेत्र एवं जैवविविधिता के संरक्षण हेतु वानिकी : शिक्षा, संम्भावनाएँ एवं चुनोतियाँ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन, जीव विज्ञान संकाय विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा किया गया। आयोजन के मुख्य अतिथि डॉ. जी. राजेश्वरराव, निदेशक, ऊष्णकटिबन्धीय वन अनुसंधान संस्थान, जबलपुर थे। डॉ. राव ने अपने उद्बोधन में देश में उपस्थित विभिन्न वन अनुसंधान संस्थान का उल्लेख करते हुए भारत में पाए जाने वाले वनों के प्रकार एवं उनेक संरक्षण पर प्रकाश डाला। आपने स्पष्ट किया कि लघु वनोपज का संग्रहण एवं उनके द्वारा महत्वपूर्ण उत्पाद को तैयार कर रोजगार का सृजन किया जा सकता है। डॉ. राव ने स्पष्ट किया वानिकी विषय का अध्ययन करने वाले छात्रों को वन विभाग में नियुक्ति हेतु कुछ पद सरकार को आरक्षित करना चाहिए, जिससे वन एवं जैवविविधिता के संरक्षण हेतु कुशल मानव संसाधन उपलब्ध होगे।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के विशिष्ट वक्ता प्रो. एस.डी. उपाध्याय, डीन, मेडिकेप्स विश्वविद्यालय इन्दौर ने वानिकी शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट किया कि किया कि कृषि भारत कि रीढ़ के समान है। कृषि प्रधान होने के कारण कोविड-19 संकट कालीन समय में भारतीय अर्थव्यवस्था अन्य देशों की तुलना में कम प्रभावित हुई थी। भारत में कृषि क्षेत्र में 60 प्रतिशत रोजगार उपलब्ध है। यह क्षेत्र देश के जीडीपी में 14 प्रतिशत का योगदान देता है। भारत में अनाज, फल एवं सब्जी के उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही हैं। यदि पिछले कृषि इतिहास को देखे तो हरित क्रान्ति, सफेद क्रांति, गोल्डन क्रान्ति, पीली क्रांति सिल्वर एवं नीली क्रान्ति अधिक से अधिक भोज्य पदार्थों के उत्पादन हेतु समय-समय पर होती रही है। उनके द्वारा विभिन्न प्रकार के भेाज्य पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि भी दिखाई पड़ रही है। डॉ. उपाध्याय ने स्पष्ट किया कि देश में अगली क्रान्ति मालवा क्षेत्र से जैवीय खेती के लिए हो सकती है। आपने विद्यार्थियों को बताया कि कृषि क्षेत्र में रोजगार की अपार संम्भावनाएँ है। विद्यार्थियों को कृषि क्षेत्र, कृषि आधारित औद्योगिकी इकाइयों, अनुसंधान प्रयोगशालाओं आदि में रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त स्वयं की औद्योगिक इकाई स्थापित कर दूसरों को रोजगार उपलब्ध कराने में सहायक हो सकते हैं।
कार्यक्रम की तीसरी मुख्य वक्ता श्रीमती कामलिका मोहन्ते (आई.एफ.एस) मुख्य वन संरक्षक उज्जैन संभाग ने वन विभाग में विद्यार्थियों हेतु उपलब्ध रोजगार के अवसर पर प्रकाश डाला। वन विभाग के द्वारा संचालित सामाजिक वानिकी, वाइल्ड लाइफ, बंवो मिशन एवं जैव विविधिता संरक्षण आदि विषय पर जानकारी प्रदान की। आपने जैव विविधिता एवं लघुवनोपज द्वारा रोजगार की संम्भावनाओं पर विस्तृत व्याख्यान दिया।
कार्यक्रम का अध्यक्षीय उद्बोधन प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय कुलपति, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा दिया गया। उन्होंने स्पष्ट किया कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है। इसमें मालवा क्षेत्र की मुख्य भूमिका है। वैज्ञानिक विधियों द्वारा कृषि क्षेत्र में लगातार परिवर्तन हो रहे हैं। आज हमारे किसान भाइयों को कृषि क्षेत्र में प्रयोग किए जाने वाले विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की विधियों से अवगत कराया जाना जरूरी है। हमारे छात्र- छात्राएँ किसानों को नई नई तकनीकों की जानकारी प्रदान कर उन्हें लगातार उन्नत खेती की ओर अग्रसर करते हुए अधिक उत्पादन प्राप्त कराया जा सकता है। प्रो. पाण्डेय ने बताया कि हमारे जंगलों में कई प्रकार के औषधीय गुण वाले पौधे उपलब्ध हैं। उनका व्यावसायिक उपयोग करते हुए रोजगार का सृजन किया जा सकता है। आपने स्पष्ट किया कि वनों में मशरुम की कई प्रजातियों पाई जाती है। जिनके द्वारा औषधियों का निर्माण किया जाता है। मशरुम के द्वारा फर्नीचर, ईंट, लेदर, आदि का उत्पादन किया जा रहा है। आपने विद्यार्थियों को वन सम्पदा एवं जैवविविधिता के संरक्षण हेतु जनजागृति अभियान चलाने हेतु प्रेरित किया।
इस अवसर पर मेडिकेप विश्वविद्यालय, इन्दौर एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के मध्य द्विपक्षीय समझौता ( एमओयू) पर हस्ताक्षर किये गये।
वन एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, जो हमें प्रकृति के द्वारा प्रदान किया जाने वाला उपहार है। वन से हमें भोजन, लकडी, सांस लेने के लिए आक्सीजन, औषधियाँ एवं अन्य उपयोगी चीजें प्राप्त होती है। वन पृथ्वी की पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है। वही विभिन्न जन्तुओं के लिए आवास स्थल है। पृथ्वी में वन कुल भूमि का 31 प्रतिशत भाग को कवर करते है। भारत में कुल भूमि का 24.67 प्रतिशत वन क्षेत्र है। अतः स्पष्ट हैं कि वन बिना हम अपने जीवन और क्रिया कलापों की कल्पना भी नही कर सकते हैं। वनों के द्वारा रोजगार के अवसर निर्मित होते है। तथा देश की आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति पर वनों का योगदान प्रमुख है। ऐसे तमाम पहलुओं पर चर्चा के लिए यह संगोष्ठी उपलब्धिपूर्ण सिद्ध हुई।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक एवं फ्री प्रेस इन्दौर के जनरल मैनेजर श्री अनिल विश्वकर्मा थे। मीडिया पार्टनर फ्री प्रेस के वरिष्ठ पत्रकार श्री मनोहर लिम्बोदिया एवं श्री निरुक्त भार्गव फ्रीप्रेस उज्जैन उपस्थित थे।
स्वागत भाषण समन्वयक प्रो. डी. एम. कुमावत द्वारा तथा अतिथि परिचय सह समन्वयक प्रो. अलका व्यास एवं डॉ.सलिलसिंह द्वारा प्रस्तुत किया गया। आयोजन सह समन्वयक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, सचिव डॉ. राजेश टेलर विभागाध्यक्ष, कृषि विज्ञान अध्ययनशाला एवं डॉ. सलिल सिंह विभागाध्यक्ष, प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्यययनशाला थे। राष्ट्रीय संगोष्ठी के सह आयोजक सचिव डॉ. अरविन्द शुक्ल एवं डॉ. शिवी भसीन थी। इस अवसर पर प्रो. एच.पी.सिंह, प्रो. प्रेमलता चुटेल, डॉ. सुधीर कुमार जैन, डॉ.प्रीति दास, डॉ. चित्रलेखा कडेल, डॉ.निहालसिंह, डॉ.जगदीश शर्मा, डॉ.पराग दलाल, डॉ.मुकेश वाणी, डॉ. सन्तोष ठाकुर, डॉ.गरिमा शर्मा, डॉ. मकवाना, डॉ. पूर्णिमा त्रिपाठी, जीव विज्ञान संकाय एवं कृषि विज्ञान संकाय के विद्यार्थी एवं कर्मचारीगण बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन एवं रूपरेखा प्रस्तुति विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं कला संकायाध्यक्ष प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा द्वारा की गई। अतिथियों का आभार डॉ.राजेश टेलर द्वारा व्यक्त किया गया।
Comments