पूर्णता की ओर ले जाता है भारतीय दर्शन – श्री एम मधुकरनाथ जी
प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु एवं शिक्षाविद् श्री एम मधुकरनाथ जी का विशिष्ट व्याख्यान हुआ
व्यक्तित्व विकास में शिक्षा की भूमिका पर केंद्रित राष्ट्रीय परिसंवाद सम्पन्न
उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा व्यक्तित्व विकास में शिक्षा की भूमिका पर केंद्रित राष्ट्रीय परिसंवाद में मुख्य अतिथि आध्यात्मिक गुरु, शिक्षाविद् और सत्संग फाउंडेशन, मदनपल्ली, आंध्र प्रदेश के चेयरमैन पद्मभूषण श्री एम मधुकरनाथ जी का सारस्वत व्याख्यान 23 दिसम्बर को विक्रम कीर्ति मंदिर में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय ने की। विशिष्ट अतिथि संस्कार भारती के मध्य क्षेत्र प्रमुख श्री श्रीपाद जोशी, कार्यपरिषद् सदस्य श्री सचिन दवे एवं श्री राजेश सिंह कुशवाह थे।
पद्मभूषण श्री एम मधुकरनाथ जी ने अपने व्याख्यान में कहा कि भारतीय दर्शन पूर्णता की ओर ले जाता है। हमारे अंदर ऊर्जा केंद्र है, उसे पहचानने की आवश्यकता है। श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञान की निधि है। गीता का प्रत्येक अध्याय योग के रूप में प्रस्तुत किया गया है। किसी भी कठिनाई से भागना उचित नहीं है, इस बात की शिक्षा गीता देती है। गीता को सभी क्षेत्र के पाठ्यक्रमों में स्थान मिलना चाहिए। भारत में संस्कृत शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए, क्योंकि संस्कृत के माध्यम से सभी मूल ग्रंथों में निहित ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। भारत में अध्यात्म और विज्ञान दोनों का व्यापक विकास हुआ है। वैमानिकी, औषधि विद्या, योगशास्त्र आदि को लेकर इस देश में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य हुए हैं। हमारे समस्त उपनिषद् वैज्ञानिक हैं। योग एवं वैदिक मैथमेटिक्स को लेकर इस देश ने महत्वपूर्ण उपलब्धियां अर्जित की हैं। भारत विश्व गुरु रहा है। आने वाले समय में पुनः ज्ञान प्राप्ति के लिए दुनिया भर के लोग भारत आएंगे। उन्होंने अपने वक्तव्य में प्राचीन भारतीय संस्कृति से जुड़ने, संस्कृत को सीखने, देश भर के पाठ्यक्रमों में संस्कृत को अनिवार्य रूप से जोड़ने, आईआईटी और आईआईएम के साथ देश के उच्च शैक्षणिक संस्थानों की पाठ्यचर्या में गीता, रामायण और महाभारत की शिक्षाओं को जोड़ने, नाथ पंथ के ग्रंथों, वेदों, उपनिषदों और संस्कृत के महान ग्रंथों के अध्ययन पर बल दिया।
राष्ट्रीय परिसंवाद की अध्यक्षता करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा संस्कृत विद्या के प्रसार के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। देश की समृद्धशाली ज्ञान परंपरा का संबंध संस्कृत से है। इंजीनियरिंग के विद्यार्थी भी संस्कृत सीखें। रामचरितमानस में विज्ञान को लेकर पाठ्यक्रम प्रारंभ किया गया है। आने वाले दौर में श्रीमद्भगवद्गीता को भी पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाएगा।
संस्कार भारती के मध्य क्षेत्र प्रमुख श्री श्रीपाद जोशी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि व्यक्तित्व का निर्माण बाल्यकाल से ही संभव होता है। भारत में दुनिया की सर्वाधिक समृद्ध शिक्षा व्यवस्था रही है। शिक्षा केवल रोजगार का साधन नहीं है, वह सही अर्थों में कल्याणकारी होती है। नैतिक आधार के बिना शिक्षा की सार्थकता नहीं है।
आयोजन के मुख्य अतिथि श्री एम मधुकरनाथ, अध्यक्ष कुलपति प्रो पांडेय एवं विशिष्ट अतिथि श्री जोशी, कार्यपरिषद् सदस्य श्री सचिन दवे और श्री राजेश सिंह कुशवाह को विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो प्रशांत पुराणिक, कुलानुशासक एवं कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, विद्यार्थी कल्याण संकायाध्यक्ष डॉ सत्येंद्र किशोर मिश्रा ने स्मृति चिन्ह अर्पित किए।
प्रारंभ में स्वागत भाषण कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने दिया। परिसंवाद की पीठिका कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम में श्री एम मधुकरनाथ जी को शिक्षा संकायाध्यक्ष डॉ स्मिता भवालकर ने अपनी पुस्तक आत्मनिर्भर अधिगम भेंट की। स्वस्तिवाचन एवं मंगलाचरण संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ राजेश्वर शास्त्री मुसलगांवकर ने किया।
इस महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम में विक्रम विश्वविद्यालय एवं रानी दुर्गावती, जबलपुर के पूर्व कुलपति प्रो रामराजेश मिश्र, प्रो गोपाल कृष्ण शर्मा, शिक्षाविद श्री दिवाकर नातू, डॉ सुभाषिणी पासी, श्री रूप पमनानी, डॉ राकेश ढंड, प्रो शैलेन्द्र पाराशर, श्री साकेत जी, श्री रोहित दुबे आदि सहित बड़ी संख्या में शिक्षाविदों, प्रबुद्धजनों, गणमान्य नागरिकों, शोधार्थी एवं छात्र - छात्राओं ने सहभागिता की। विक्रम कीर्ति मंदिर में आयोजित इस कार्यक्रम का जीवंत प्रसारण वयम् चैनल - वयम् एप द्वारा किया गया।
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