प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया तथा वृक्षमित्र सेवा समिति के सहयोग से वृक्षारोपण किया गया। इस कार्यक्रम के अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय, कुलपति विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन ने कहा कि जनरल रावत जी का असामयिक निधन देश की बहुत बड़ी क्षति है। जनरल श्री विपिन रावत जी के सेवाकाल में अनेक अविस्मरणीय कार्य हुए, जिनमें मुख्य हैं- म्यांमार मे 2015 की सीमा पार ऑपरेशन, 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक, तथा 2020 में गलवान घाटी पर भारत चीन सीमा विवाद में भारत की सफलता आदि। ऐसे वीर सपूत सदैव याद किये जाते रहेंगे। उनके स्मरण में पौधारोपण किया जाना हम सभी के लिए गौरव की बात है।
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रशांत पुराणिक ने कहा कि जनरल विपिन रावत ने देश की सुरक्षा में अपनी अहम भूमिका निभाई है, देश के सभी नागरिक इनके ऋणी है।
प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन ने कहा कि जनरल विपिन रावत जी का देश की सेना को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में सराहनीय योगदान सदैव याद किया जाता रहेगा। प्रणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के विभागाध्यका डा. सलिल सिह ने बताया कि जनरल रावत जी का चोपर केश हादसे में आचनक मृत हो जाना हर भारत प्रेमी के लिए अविस्मरणीय क्षति है।
इस कार्यक्रम के संयोजक, डॉ अरविंद शुक्ला एवं डॉ.शिवी भसीन थीं। इस अवसर पर वृक्षमित्र सेवा समिति उज्जैन की ओर से श्री प्रवीण साठे, श्री रविंद्र सुलेर, श्री आशुतोष पंडित, श्रीकांत जोशी, श्री मिलन लेले, श्रीमती मीरा यादव, श्रीमती ज्योति पोरवाल, श्री दीपक शाहपुरकर एवं श्री अजय भातखण्डे उपस्थित थे। विक्रम विश्वविद्यालय से डॉ. मुकेश वाणी, अधिकारीगण, कर्मचारीगण तथा विद्यार्थी उपस्थित थे।
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आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ | Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी - आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं। उनके उपन्यास और कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं। उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है। मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...
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