Skip to main content

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के प्रांगण में "आजादी का अमृत से स्वर्णिम भारत की ओर" तहत समाज सेवा प्रभाग और व्यापार एवं उद्योग प्रभाग का कार्यक्रम सम्पन्न

उज्जैन : ऋषिनगर स्थित प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के प्रांगण में "आजादी का अमृत से स्वर्णिम भारत की ओर" इसके तहत समाज सेवा प्रभाग और व्यापार एवं उद्योग प्रभाग का कार्यक्रम रखा गया । इस कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलित करके किया गया जिसमें शामिल हुए भ्राता रमेश सामधानी जी (संरक्षक सिंधु जागृत समाज, उज्जैन होटल एसोसिएशन के वाइस प्रेसिडेंट), रवि प्रकाश जी लंगर (गवर्नर रोटरी क्लब) , नलिनी लंगर (गवर्नर रोटरी क्लब) ,भ्राता श्याम माहेश्वरी जी (समाजसेवी एवं पेड़ वाले बाबा ) , भ्राता सुभाष चंद्र दुबे जी (लायंस क्लब डिस्टिक कोर्डिनेटर) , बहन सुरेखा दुबे जी (लायंस क्लब) वरिष्ठ राजयोग प्रशिक्षिका उषा दीदी जी , ब्रम्हाकुमारी मंजू दीदी, सम्मिलित हुए। कुमारी हिमाक्षी और कु. शानवी ने शिव अवतरण परआधारित नृत्य प्रस्तुत किया।

भ्राता श्याम माहेश्वरी जी (समाजसेवी एवं पेड़ वाले बाबा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इन्होंने उज्जैन शहर में लाखों पेड़ बांटे और लगवाए हैं। उन्होंने कहा परमपिता परमात्मा का आगमन हो चुका है तो हम अपने आपसे पूछे हैं हम क्या कर रहे हैं परमात्मा तो हमारे लिए आ चुका है हमारे हर लक्ष्य को प्राप्त करवाने में उसका सहयोग है लेकिन हमारा दायित्व क्या है हमारा कर्तव्य क्या है इसे जाने ।
भ्राता सुभाष चंद्र दुबे जी लायंस क्लब डिस्टिक कोर्डिनेटर रिटायर सीएसपी उन्होंने बताया कि शिवरात्रि महा महोत्सव मनाया जा रहा है शिव की महिमा बताई की वह विश्व कल्याणकारी है और हम उसके बच्चे हैं तो हमारा भी कर्तव्य होना चाहिए कि दूसरों का कल्याण कैसे करें परंतु हम अपने अच्छे कर्मों को भूल गए हैं और बुरे कर्म करने लग गए परंतु जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा फल भी मिलता है। अच्छे कर्म का अच्छा और बुरे कर्म का बुरा फल मिलता है।
भ्राता रवि प्रकाश लंगर जी गवर्नर रोटरी क्लब रिया ने बताया कि जो आनंद आपको अंदर से प्राप्त हो जिसमें दूसरों का भला हो वही सच्चे अर्थों में आनंद है । सभी धर्मों का एक ही लक्ष्य हो दूसरों का भला हो दूसरों के मददगार बने सन्यासी वह है जो बेहतरीन निस्वार्थ सेवा करता हूं उसको नहीं कहा जाएगा जो कर्मकांड करता हो स्वार्थी हो।
ब्रह्मा कुमारी मंजू दीदी जी प्रमुख वक्ता उन्होंने बताया कि टॉपिक क्या करता परमपिता परमात्मा विश्व कल्याणकारी है वह परमपिता परमात्मा इस धरा पर आकर हमें अमूल्य दो निधि प्राप्त कराता है, वह है मुक्ति और जीवन मुक्ति । मुक्ति अर्थात इन दुखों से और जन्म मरण के चक्र से मुक्त कर दे और घर वापस ले जाए दूसरा है जीवन मुक्ति जहां जीवन में होते भी कोई प्रकार का बंधन ना हो आज के समय में हर आत्मा जीवन बंद में है किसी को घर की चिंता, परिवार की चिंता, ऑफिस की चिंता हर व्यक्ति अपने आप को बंधनों में झगड़ा हुआ महसूस करता है। परमपिता परमात्मा हमें इन सब बंधनों से मुक्त कर देता है।
राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी उषा दीदी जी ने बताया कि परमात्मा शिव तो है ही कल्याणकारी करण करावन हार और हम कठपुतली की तरह है । हम परमात्मा के माध्यम है । शिव शब्द का अर्थ ही है कल्याणकारी वसदा कल्याण करता है । कल्याण सोच भी नहीं सकता परमात्मा शिव के महावाक्य जो हम प्रतिदिन सुनते हैं। उससे हमारे जीवन में परिवर्तन होता है । हम आत्माएं संपूर्ण नहीं है पांच विकारों के कारण बुराइयों का समावेश है। आरो परमेश्वर तो सब भावनाओं से ओतप्रोत है चाहे कोई कैसा भी हो ईश्वरीय महावाक्य सबके दिल में लगते हैं जिससे हर आत्मा स्व का कल्याण करती है परंतु अहंकार जहां आ जाता है वह सेवाभाव सेवा नहीं रह जाता महत्व सेवा का नहीं सेवा सेवाभाव का है । अंत में 21 फीट हाइट के शिवलिंग की सामूहिक महाआरती से कार्यक्रम को संपन्न किया गया।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...