Skip to main content

तकनीकी के प्रयोग से बढ़ेगा भारतीय भाषाओं का शब्द कोश - प्रो नागेश्वर राव

राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीय भाषाओं का भविष्य पर हुआ राष्ट्रीय परिसंवाद


उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीय भाषाओं का भविष्य विषय पर अभिकेंद्रित राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन 26 फरवरी को किया गया। आयोजन के प्रमुख अतिथि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के कुलपति एवं केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली के निदेशक प्रो नागेश्वर राव थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की। परिसंवाद में विशिष्ट अतिथि महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर सी जे विजयकुमार मेनन, विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक, कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो हरिमोहन बुधौलिया, प्रो गीता नायक, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने विचार व्यक्त किए।
इग्नू के कुलपति प्रो नागेश्वर राव ने कहा कि हमारे पास हिंदी और भारतीय भाषाओं का विशाल शब्द भंडार है। उसमें अभिवृद्धि के लिए दैनंदिन जीवन में प्रचलित और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों को भी समाहित करना होगा। इस दिशा में तकनीकी का प्रयोग करते हुए हम तेजी से कार्य कर सकेंगे। इग्नू और केंद्रीय हिंदी निदेशालय के सहयोग से हिंदी के शब्दकोश को बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।

अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि भारतवर्ष विविध भाषाओं और बोलियों का देश है। स्थानीय भाषाओं को अगर महत्व नहीं दिया जाएगा तो शिक्षा और समाज दो धाराओं में बंट जाएगा। जरूरी है कि स्थानीय भाषाओं में शिक्षण और अनुसंधान कार्य को गति मिले।

कुलपति प्रो सी जे विजय कुमार मेनन ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषा को महत्व मिला है। बहुभाषिकता इस देश की विशेषता है। इसमें भारतीय ज्ञान परंपरा को महत्त्व दिया गया है, जिसका संवहन भाषाओं के माध्यम से ही सम्भव है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संस्कृत को बचाने और विद्यार्थियों को उसके सहज रूप से जोड़ने की बात की गई है।
कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने कहा कि मैकाले की शिक्षा नीति भारतीय भाषाओं को बेदखल करने में प्रवृत्त थी। नई शिक्षा नीति क्षेत्रीय भाषाओं को भी महत्त्व दे रही है।
प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि विश्व पटल पर पारस्परिक संपर्क और सम्प्रेषण में भारतीय भाषाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान दिखाई दे रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति भाषा और क्षेत्र की दीवारों को तोड़ने में गतिशील है। इसके क्रियान्वयन से मातृभाषाओं के उन्नयन एवं विकास की नवीन सम्भावनाएँ साकार होंगी। हमें भारतीय भाषाओं के विकास और नियोजन के लिए तत्पर होना होगा।
प्रो प्रेमलता चुटैल ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सभी भाषाओं को महत्व मिला है। यह नीति जनजातीय समुदाय की भाषाओं के अध्ययन पर भी बल देती है। लोक भाषाओं के माध्यम से ज्ञान परंपरा का संरक्षण संभव है।
प्रो गीता नायक ने कहा कि किसी भी राष्ट्र को समाप्त करने के लिए उसकी भाषा पर प्रहार करने की कोशिशें की जाती रही हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन से विलुप्त होती हुई भाषाओं को बचाने के प्रयास साकार होंगे रवींद्रनाथ टैगोर ने इस बात की ओर संकेत किया है कि संपूर्ण राष्ट्र हिंदी में बोलता है। डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि भाषा का गहरा सम्बंध मनोविज्ञान से है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषाओं में शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया गया है।
कार्यक्रम में प्रो हरिमोहन बुधौलिया ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संस्कृत हमारी देव भाषा है। वह संपूर्ण देश की भाषाओं और साहित्य के लिए प्रेरणा स्रोत है।

इस अवसर पर कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय, कुलपति प्रो विजयकुमार मेनन, कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक, हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो हरिमोहन बुधौलिया, डॉ गीता नायक एवं डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने इग्नू के कुलपति प्रो नागेश्वर राव को शॉल, श्रीफल, साहित्य एवं सूत की माला अर्पित करते हुए उनके बहुआयामी विशिष्ट योगदान के लिए उनका सारस्वत सम्मान किया। संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ डी डी बेदिया ने किया।  

कार्यक्रम में इग्नू के सम कुलपति प्रो आर पी दास, इग्नू के व्यवसाय प्रबंध पीठ के निदेशक प्रो रवि कुमार, प्रो अलका व्यास, डॉ उर्मि शर्मा, डॉ शैलेंद्र भारल, डॉ अनिल जैन, डॉ संदीप तिवारी, डॉ डी डी बेदिया, डॉ कमलेश दशोरा, डॉ प्रीति दास, डॉ तुलसीदास परोहा, डॉ सुशील शर्मा, श्री संतोष सुपेकर, डॉ अजय शर्मा, श्रीमती हीना तिवारी सहित बड़ी संख्या में शिक्षक, शोधकर्ता एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। 

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...