Skip to main content

मोती का उत्पादन सिखायेगा विक्रम विश्वविद्यालय का एक्वाकल्चर सेंटर

विश्वविद्यालय रखेगा आत्मनिर्भर भारत एवं कौशल विकास की नींव  

उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा आत्मनिर्भर भारत एवं कौशल विकास की दृष्टि से  एक्वाकल्चर सेंटर के माध्यम से मोती की खेती की शुरुआत की जा रही है। कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय के मार्गदर्शन में यह योजना वर्ष 2022 में ही क्रियान्वित होने जा रही है। रामायण काल में मोती का उपयोग काफी प्रचलित था। मोती की चर्चा बाइबल में भी की गई है। साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियन मोती को काफी महत्व देते थे। उनकी मान्यता थी कि मोती में जादुई शक्ति होती है। ईसा के बाद छठी शताब्दी में प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक वराहमिहिर ने बृहत्संहिता में मोतियों का विस्तृत विवरण दिया है। भारत में उत्तर प्रदेश के पिपरहवा नामक स्थान पर शाक्य मुनि के अवशेष मिले हैं, जिनमें मोती भी शामिल हैं। भारत में कई जगह पर मोती की खेती होती है, प्रायः यह खेती समुद्र में होती है। मानव मन ऊर्जा का स्रोत है, किसी कार्य के लिए अगर संकल्पित हो जाये तो उसे पूरा कर के ही दम लेते है। अन्तः मोती की खेती मानव द्वारा मीठे जल में प्रारम्भ करते हुए विभिन्न रंग एवं आकर के मोती वर्त्तमान समय में निर्मित किये जा रहे हैं, इसी संकल्पना को पूरा करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय का एक्वाकल्चर सेंटर मोती की खेती की शुरुआत करने जा रहा है। 

ऐसी रहेगी प्रक्रिया : 

मोती की खेती के लिए सर्वप्रथम उच्च कोटि की सीप ली जाएगी, जिसमें मुख्यतः समुद्री ऑयस्टर पिंकटाडा मैक्सिमा तथा पिकटाडा मर्गेरिटिफेरा, पिकटाडा बुल्गैरिस इत्यादि  प्रजातियां शामिल हैं। मोती की खेती हेतु सीप का चुनाव कर लेने के बाद प्रत्येक सीपी में छोटी सी शल्य क्रिया की जाएगी। इस शल्य क्रिया के बाद सीपी के भीतर एक छोटा सा नाभिक तथा मैटल ऊतक रखा जायेगा। इसके बाद सीप को इस प्रकार बन्द किया जायेगा कि उसकी सभी जैविक क्रियाएँ पूर्ववत चलती रहें। मेंटल ऊतक से निकलने वाला पदार्थ नाभिक के चारों ओर जमने लगेगा तथा इसे अन्त में मोती का रूप दिया जायेगा। कुछ दिनों के बाद सीप को चीर कर मोती को निकाल दिया जायेगा। 

ऐसे की जाएगी खेती :

एक्वाकल्चर सेण्टर के संचालक एवं सह-संचालक डॉ अरविन्द शुक्ल एवं डॉ शिवि भसीन ने बताया कि एक्वाकल्चर सेंटर में मोती का निर्माण करने में 12 से15 महीने लगेंगे एवं इस प्रक्रिया में जीवित सीपों में छोटी सी शल्य क्रिया करनी होती है, जिसके बाद सीपों को कोई भी रूप दिया जा सकता है। जैसे गणेश या फूल की आकृति जिससे मोती एक सुंदर आकार ले लेता है।

प्राणिकी  एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ सलिल सिंह ने बताया कि मोती उत्पादन का सर्वश्रेष्ठ समय शरद ऋतु है और वर्तमान परिस्थितियों में यह प्रयास किया जा रहा है कि सितम्बर-अक्टूबर तक एक्वाकल्चर सेंटर में मोती का निर्माण किया जा सके।

क्यों बनता है मोती :

जब सीप के शरीर के अंदर किसी माध्यम से बाहरी तत्त्व जैसे बालू या पत्थर के छोटे-छोटे कण अथवा जलीय पौधे के छोटे कण आदि प्रवेश कर जाते हैं तो उनके हानिकारक प्रभाव से शरीर को बचने के लिए सीप के मेंटल भाग से एपिथेलियल टिश्यू नेक्रे नामक तरल पदार्थ का स्रवण करते हैं जो धीरे-धीरे बाहरी कानों के चारों तरफ कई परतों में जमा हो जाता है और अंत में मोती का निर्माण होता है। यह प्रक्रिया पूर्णतः शरीर परिरक्षा तंत्र पर आधारित है।

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने बताया कि किसानों एवं स्वयं का उद्योग खोलने वाले नवयुवकों के लिए मोती की खेती एक अच्छा विकल्प है, मोतियों का उपयोग आभूषणों के अलावा औषधि-निर्माण में भी होता आया है। भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में मोती-भस्म का उपयोग कई प्रकार की औषधियों के निर्माण में किए जाने का उल्लेख मिलता है, एवं इससे स्वास्थ्यवर्धक  दवाओं का निर्माण किया जाता है। विक्रम विश्वविद्यालय प्रदेश एवं प्रदेश के बाहर के किसानों को भी इस क्षेत्र में प्रशिक्षित करने हेतु अग्रसर है।

मोती की खेती से आत्मनिर्भर भारत की नीव :

विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया कि एक्वाकल्चर सेंटर में मोती की खेती करने के साथ-साथ इसका प्रशिक्षण किसानों, विद्यार्थियों एवं नौजवानों को दिया जायेगा जो इसका उपयोग कर अपने स्वयं का रोजगार स्थापित कर सकेंगे एवं विक्रम विश्वविद्यालय अपने यशस्वी कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय के मार्गदर्शन में ऐसे रोजगारपरक पाठ्यक्रमों को निरंतर रूप से संचालित करता रहेगा, जिससे समाज की प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता रहे।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

तृतीय पुण्य स्मरण... सादर प्रणाम ।

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1003309866744766&id=395226780886414 Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर Bkk News Bekhabaron Ki Khabar, magazine in Hindi by Radheshyam Chourasiya / Bekhabaron Ki Khabar: Read on mobile & tablets -  http://www.readwhere.com/publication/6480/Bekhabaron-ki-khabar