लेखकीय व्यक्तव्य में डॉ. प्रभु चौधरी ने लिखा है वह 2001 मे नागरी लिपि परिषद् के शिर्डी सम्मेलन में परिषद के आजीवन सदस्य बने थे। उनके अब तक 200 से अधिक नागरी लिपि विषयक लेख परिषद की मुख पत्रिका ‘नागरी संगम‘ और हिन्दी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे उनमें से चयन करके 18 लेखो की इस पुस्तक में स्थान दिया गया है। इस पुस्तक में नागरी लिपि के विभिन्न पक्षो यथा नागरी लिपि की उत्पत्ति ओर विकास, दक्षिण भारत में नागरी लिपि, नागरी लिपि के गुण एवं विशेषताएं, इसकी वैज्ञानिक प्रयोग, नागरी लिपि की शक्ति, सीमाएं और संभावनाएं आदि विषयो पर सारगर्भित विवेचन किया गया है। अध्यक्ष डॉ. प्रेमचन्द्र पांतजलि ने लेखक बधाई दी और नागरी लिपि के क्षेत्र में डॉ. प्रभु चौधरी के प्रयासो की सराहना की। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रंजीतकुमार(बेंगलुरू) ने प्रस्तुत किया।
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ | Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी - आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं। उनके उपन्यास और कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं। उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है। मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...
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