Skip to main content

सीबीसीएस परीक्षाओं के आवेदन पत्र सम्बन्धित अध्ययनशाला में एम.पी. ऑनलाईन के माध्यम से बिना विलम्ब शुल्क सहित 07 जून तक जमा करवाये जा सकेंगे, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा अधिसूचना जारी

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने दिनांक 26 मई 2022 को सीबीसीएस द्वितीय, चतुर्थ सेमेस्टर तथा द्वितीय, चतुर्थ षष्टम सेमेस्टर (नियमित / स्वाध्यायी / पूर्व / एटीकेटी) परीक्षाओं के आवेदन पत्र सम्बन्धित अध्ययनशाला में एम.पी. ऑनलाईन के माध्यम से जमा करवाये जाने संबंध में, आदेशानुसार सहायक कुलसचिव (परीक्षा) एवं परीक्षा नियंत्रक  द्वारा अधिसूचना क्र./परीक्षा/2022/10457  जारी की ।

उज्जैन : विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा जारी अधिसूचना में लिखा है कि, विश्वविद्यालय द्वारा संचालित सत्र 2021-22 के पाठ्यक्रमों के एम.ए./एम.कॉम / एम.एस.सी./ एम.एच.एससी. / एम.एस. डब्ल्यू / एम.बी.ए./ पी.जी. डिप्लोमा इन योगा (सीबीसीएस द्वितीय, चतुर्थ सेमेस्टर) तथा इसी प्रकार बी.ए. ऑनर्स / बी.कॉम ऑनर्स / बी. एससी ऑनर्स/ बी.बी.ए.आनर्स / एम.सी.ए. की द्वितीय, चतुर्थ षष्टम सेमेस्टर (नियमित / स्वाध्यायी / पूर्व / एटीकेटी) परीक्षाओं के आवेदन पत्र सम्बन्धित अध्ययनशाला में एम.पी. ऑनलाईन के माध्यम से जमा करवाये जाने हेतु तिथियाँ निम्नानुसार घोषित की जाती है -

1) बिना विलम्ब शुल्क परीक्षा आवेदन पत्र जमा करने की तिथि

“30 मई, 2022 से 07 जून 2022 तक "

(2) विलम्ब शुल्क रूपये 100/- के साथ परीक्षा आवेदन पत्र जमा करने की तिथि

"08 जून 2022 से 10 जून 2022 तक"

(3) विलम्ब शुल्क रू. 750/- के साथ परीक्षा आवेदन पत्र जमा करने की तिथि

"11 जून 2022 से 12 जून 2022 तक"

(4) विशेष विलम्ब शुल्क रू. 2000/- के साथ परीक्षा आवेदन पत्र जमा करने की तिथि 

"13 जून 2022 से से परीक्षा प्रारंभ होने के एक दिवस पूर्व तक"



परीक्षा आवेदन पत्र जमा करने संबंधी दिशा-निर्देश -

01) प्राचार्य / केन्द्राध्यक्ष, संबंधित महाविद्यालय की ओर भेजकर निवेदन है कि परीक्षा आवेदन पत्र मय नॉमिनल रोल लिस्ट के 02 प्रतियों में अग्रेषित कर विश्वविद्यालय को अनिवार्य रूप से भेजें यथा घोषित तिथि पर परीक्षा आवेदन पत्र प्रस्तुत न करने पर अगर कोई छात्र परीक्षा से वंचित रहता है तो उसका समस्त उत्तरदायित्व संबंधित महाविद्यालय का होगा। 

02) प्राचार्य / केन्द्राध्यक्ष, संबंधित महाविद्यालय परीक्षा आवेदन पत्र अग्रेषित करते समय परीक्षार्थी से आर्हतादायक परीक्षा की समस्त अंकतालिकाओं की सत्यापित प्रति अनिवार्य रूप से संलग्न करवाएँ एवं अग्रेषण शुल्क (Forwarding fee) रू. 50/- प्रति परीक्षार्थी संबंधित महाविद्यालय संग्रहित करेगा। इस राशि में से वि. वि. का अंश रू. 10/- प्रति परीक्षार्थी की दर से कुल राशि का भुगतान अविलम्ब वि.वि. को करेंगे।

03) विज्ञान संकाय के परीक्षार्थी परीक्षा आवेदन पत्र के साथ परीक्षा संचालन शुल्क रूपये 100/- तथा अन्य संकाय के परीक्षार्थी परीक्षा संचालन शुल्क रुपये 75/- संबंधित महाविद्यालय में जमा करेंगे।

04) परीक्षार्थी एम.पी. ऑनलाईन के माध्यम से परीक्षा शुल्क अधिकृत क्योस्क सेन्टरों में जमा करेंगे। मुद्रित परीक्षा आवेदन पत्र केवल पी.जी. डिप्लोमा इन योगा के आवेदन जमा करने वाले विद्यार्थी परीक्षा शुल्क चालान के द्वारा निर्धारित बैंक में जमा करेंगे। 

05) संबंधित प्राचार्य परीक्षार्थी के परीक्षा शुल्क सत्यापन की सूची परीक्षा आवेदन पत्र भेजते समय दो प्रतियों में अनिवार्य रूप से भेजें।

06) आवेदन पत्र जमा करने की अंतिम तिथि के पश्चात तीन (03) दिवस के अंदर परीक्षा आवेदन विश्वविद्यालय में जमा करायें। समय सीमा में जमा न कराने के पश्चात प्रति छात्र 10 /- (दस रुपये) विलम्ब शुल्क महाविद्यालय को जमा कराना होगा। 

07) समस्त महाविद्यालय विश्वविद्यालय से प्राप्त सम्बद्धता / निरंतरता प्रमाण पत्र की प्रति अनिवार्य रूप से संलग्न करें इसके अभाव में परीक्षा आवेदनपत्र स्वीकार्य नहीं किये जायेगें।



परीक्षा नियंत्रक

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...