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पाश्चात्यीकरण की प्रवृत्ति पर विराम लगाएगी राष्ट्रीय शिक्षा नीति – कुलपति प्रो डहेरिया

राष्ट्रीय संगोष्ठी में हुआ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और भारतीय भाषाओं की संभावनाओं पर हुआ मंथन


उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला, पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला और गांधी अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और भारतीय भाषाओं की संभावनाओं पर अभिकेंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन  वाग्देवी भवन में किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की। मुख्य अतिथि अटलबिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो. खेमसिंह डहेरिया थे। संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, डीएसडब्ल्यू डॉ एस के मिश्रा, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ डी डी बेदिया आदि विशिष्ट वक्ताओं ने विषय के विविध पहलुओं पर विचार व्यक्त किए। 

कुलपति प्रो. खेमसिंह डहेरिया ने कहा कि  राष्ट्रीय शिक्षा नीति अब तक की निर्विरोध, सर्वोत्कृष्ट शिक्षा नीति है। इसे अमल में लाने का कार्य 2014 से शुरू हो गया था, जिसे 2020 में लागू किया गया। भारत में ब्रिटिश लोगों ने शासन से पहले हमारे देश की संस्कृति का अध्ययन किया था। उन्होंने अपने राज्य को सुदीर्घ काल तक स्थापित रखने के लिए मैकाले की शिक्षा प्रणाली लागू की थी, जिसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 चुनौती दे रही है। यह नीति अंग्रेजों द्वारा लादी गई पाश्चात्यीकरण की प्रवृत्ति पर विराम लगाएगी। इस नीति का मुख्य उद्देश्य मातृभाषा एवं हिंदी भाषा को महत्व देना है। भाषा के नाम पर राजनीति बंद होना चाहिए, जिससे भारत की भाषाओं का प्रसार - प्रचार बढ़ता रहे। हिंदी भाषा को विदेशी संपर्क की भाषा बनाना चाहिए। उन्होंने इस बात का  जिक्र किया कि अटलबिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल इसी राह पर चलते हुए महत्वपूर्ण चिकित्सा विज्ञान का कोर्स एमबीबीएस भी अब हिंदी माध्यम से चलाएगा। इससे हिंदी समेत अन्य भारतीय भाषाओं को महत्व मिलेगा एवं छात्रों को शिक्षा ग्रहण करने में आसानी होगी। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि हिंदी अंतरराष्ट्रीय भाषा बनने की ओर अग्रसर है। हिंदी संचार की भाषा ही नहीं, एक संस्कृति है। हिंदी पढ़ने वाले प्रत्येक छात्र का सामाजिक दायित्व होता है कि वह उसका प्रचार - प्रसार करे। देश के बड़े नेता जब विदेश में हिंदी में अपना भाषण देते हैं तो हिन्दी की छवि बढ़ती है। हिन्दी में सामाजिक सरोकारों का मिश्रण है। एक बच्चा जब बड़ा होता है तब वह अपनी मातृभाषा के व्यवहार के साथ बड़ा होता है। वह अपने मनोभाव को व्यक्त करने के लिए मातृभाषा के शब्दों का प्रयोग करता है। उन्होंने हर विद्यार्थी को विश्वविद्यालय परिसर में एक पौधा लगाने के लिए प्रेरित किया।

कुलानुशासक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने नई तकनीकों और ज्ञान की नई संभावनाओं से नई पीढ़ी को अवगत कराया है। यह युग सूचना, तथ्य और ज्ञान के अविरल प्रवाह का है, जिसके बीच यह शिक्षा नीति आई है। नई शिक्षा नीति विविध विषयों और अनुशासनों की हदबंदी को तोड़ती है।  इस नीति के जरिए अध्ययन की अभिरुचि एवं सीखने की प्रवृत्ति जागृत करने का दायित्व शैक्षिक संस्थानों को मिला है। इससे  भविष्य में नई तकनीकों का प्रसार बड़े पैमाने पर होगा। प्रचलित लोक एवं जनजातीय बोलियों में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्चतम पाठ्यक्रमों का निर्माण सम्भव होगा। सूचना क्रांति के जरिए नवीनतम ज्ञान विज्ञान का लाभ दूरस्थ क्षेत्रों के लोग भी ले सकेंगे। 

डीएसडब्ल्यू डॉ सत्येंद्र किशोर मिश्रा ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति मातृभाषा के उत्थान की बात करती है। इस पर सभी लोग सहमत हैं। नई नीति का उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से देना है। इसके जरिए आने वाले समय में भारतीय भाषाओं का विकास होगा।

डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि हिन्दी और भारतीय भाषाएं राष्ट्रीय एकता को मजबूत कर रही है। नई शिक्षा नीति में ऐसी अनेक शास्त्रीय और अल्पसंख्यक भाषाओं को महत्त्व दिया गया है, जो लगातार अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही हैं। कई मातृभाषाएँ आज अपने साहित्य के माध्यम से पहचान बना रही हैं।

डॉ डी डी बेदिया ने कहा कि नई शिक्षा नीति के कारण भारतीय शिक्षा प्रणाली आज सम्पन्न अनुभव कर रही है। नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषाओं पर फोकस किया है। यह नीति गुरुकुल शिक्षा के आदर्शों के अनुरूप है। 

इस अवसर पर कुलपति प्रोफेसर खेमसिंह डहेरिया को अतिथियों द्वारा शॉल, श्रीफल, साहित्य एवं मौक्तिक माल अर्पित कर उन्हें विशिष्ट हिंदी सेवा सारस्वत सम्मान से अलंकृत किया गया।

डॉ शशि जोशी ने कहा कि नई शिक्षा नीति के प्रावधानों ने मातृभाषा को प्राथमिक स्तर पर लागू किया है। इससे भाषा के प्रति स्वबोध जाग्रत होगा। अगर भाषा मरती है तो संस्कृति मर जाती है। भाषा से ही किसी व्यक्ति की विचारधारा का बोध होता है।

डॉ अजय शर्मा ने कहा कि न्यायालय के निर्णय आज भी अंग्रेजी भाषा में आते हैं, जिससे हर कोई नागरिक वह निर्णय नहीं समझ सकता है। नई शिक्षा नीति से भाषा के क्षेत्र में बदलाव आएगा। उन्होंने देश की मीडिया को धन्यवाद दिया जो बहुभाषी देश में सरल भाषा में समाचारों का सम्प्रेषण करता है।

श्रीमती हीना तिवारी ने कहा कि नई शिक्षा नीति स्टार्टअप संस्कृति को प्रोत्साहित कर रही है, जिससे देश में बढ़ रही बेरोजगारी दर कम होगी। विद्यार्थी अपनी पसंद की भाषा में स्वयं की रुचि के विषय के पढ़ेगा, तो वह आसानी से अपनी आजीविका पाने में सफल होगा।

कार्यक्रम में वाणिज्य अध्ययनशाला से डॉ नेहा माथुर, डॉ परिमिता सिंह, डॉ अनुभा गुप्ता, दयाराम नर्गेश आदि सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित थे।

संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ शशि जोशी ने किया।

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