विक्रम विश्वविद्यालय में बदलते हुए परिवेश और परिस्थितियों में जैव प्रौद्योगिकी से जुड़े नए पाठ्यक्रम दे रहे हैं युवाओं को नई दिशा
प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हैं रोजगार की अपार संभावनाएं
उज्जैन। बदलते परिवेश एवं बदलती हुई परिस्थितियों में स्थानीय और अन्तराष्ट्रीय ज़रूरतों के अनुरूप पाठ्यक्रमों का संचालन, उनमें परिवर्धन तथा विद्यार्थियों द्वारा रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रमों का चयन बहुत आवश्यक है। इसी दिशा में सार्थक प्रयास करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय ने पिछले डेढ़ वर्ष में लगभग दो सौ नवीन पाठ्यक्रम प्रारम्भ किए हैं। इनके सहित स्नातक, स्नातकोत्तर, डिप्लोमा, पीजी डिप्लोमा और प्रमाण पत्र स्तर के पाठ्यक्रमों की संख्या 243 से अधिक हो गई है। इन पाठ्यक्रमों के माध्यम से विद्यार्थियों के कौशल विकास के साथ-साथ रोजगार प्राप्त करने की संभावनाओं में वृद्धि होगी। प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय का प्राचीनतम एवं उच्च अध्ययन एवं शोध का केंद्र है। यह सन् 1962 में विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर डॉ हरस्वरूप जी द्वारा प्रारम्भ किया गया था। इस विभाग में कई पाठ्यक्रम जैसे बी. एस. सी. ऑनर्स बायोटेक्नोलॉजी, एम. एससी. प्राणिकी, एम. एससी. जैवप्रौद्योगिकी, पीएच. डी. प्राणिकी/ जैवप्रौद्योगिकी, डिप्लोमा इन एक्वाकल्चर टेक्नोलॉजी, फिश प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी, डेयरी टेक्नोलॉजी, इकोनॉमिक एंटोमोलोजी एंड पेस्ट मैनेजमेंट, सर्टिफिकेट इन एक्वाकल्चर टेक्नोलॉजी, डेयरी टेक्नोलॉजी, इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन एंड वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट टेक्नोलॉजी, वर्मीकम्पोस्टिंग, लेबोरेटरी टेक्नोलॉजी एंड इंस्ट्रूमेंटशन आदि संचालित किया जाता है। विद्यार्थीगण स्नातक एवं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के साथ-साथ सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश ले कर अनेक क्षेत्रों में कौशल विकास करते हुए भविष्य में रोजगार प्राप्त करने की संभावनाओं में वृद्धि कर सकते हैं। इस अध्ययनशाला में संचालित होने वाला बी एससी (ऑनर्स) बायोटेक्नोलॉजी मध्य प्रदेश का एक मात्र संचालित पाठ्यक्रम है, जो विद्यार्थियों को रोजगार प्राप्त करने में सहायक है। इस पाठ्यक्रम में पूर्णतः बायोटेक्नोलॉजी के सभी विषयों का अध्ययन कराया जाता है। बी. एससी. (ऑनर्स) बायोटेक्नोलॉजी, एम एससी बायोटेक्नोलॉजी, एम एससी प्राणीशास्त्र पाठ्यक्रम उत्तीर्ण करने के पश्चात् विद्यार्थी कई क्षेत्र में कार्यरत हो सकते हैं, जैसे
- -भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के वैज्ञानिक
- -वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् में वैज्ञानिक
- -जैवप्रौद्योगिकी अनुसंधान परिषद् की प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिक
- -भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान/ चिकित्सा संस्थान में वैज्ञानिक
- -जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की प्रयोगशाला में वैज्ञानिक
- -मत्स्य निरीक्षक/ मत्य अधिकारी/ रेशम निरीक्षक
- -स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षक
- -महाविद्यालय/ विश्वविद्यालय में प्राध्यापक/ सहायक प्राध्यापक
- -पर्यावरण एवं वन विभाग में वैज्ञानिक
- -प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में वैज्ञानिक एवं तकनीकी सहायक
- -फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री/ फ़ूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री/ एग्रीकल्चर इंडस्ट्री आदि में क्वालिटी कंट्रोल में, अन्य इंडस्ट्री जैसे वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट तथा सॉलिड वेस्ट ट्रीटमेंट की इंडस्ट्री में वैज्ञानिक के रूप में।
इस विभाग से पूर्व में उत्तीर्ण छात्र राज्य एवं केंद्र शासन की विभिन्न शासकीय एवं अशासकीय इकाई में पदस्थ किये जा चुके हैं, जैसे डॉ अनूप स्वरुप (आई. आर. एस.), डॉ शोभा ढाणेकर (पोलुशन कण्ट्रोल बोर्ड), डॉ शुब्रा बनर्जी एवं डॉ अनिल सिंह (फॉरेंसिक लेबोरेटरी), डॉ एस सी चतुर्वेदी (डायरेक्टर, सेरीकल्चर बोर्ड), डॉ आर के सिंह (डायरेक्टर, आई. सी. ए. आर.), डॉ रवींद्र भदौरिया (वैज्ञानिक आई. सी. ए. आर.), डॉ हरीश चतुर्वेदी (सेरीकल्चर बोर्ड), श्री शैलेन्द्र चतुर्वेदी (आई. सी. ए. आर.), हाजेन्द्र सिंह टुटेजा (आई. सी. एम. आर.), श्री मोहम्मद शाहीन खान (फारेस्ट कंजरवेटर), श्री एच. एस. त्रिपाठी (फार्मास्यूटिकल एग्जीक्यूटिव ऑफिसर) श्री एन. के. जोशी, डॉ जयश्री तिलक (जूलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया), डॉ नंदिनी शर्मा (मलेरिया अधिकारी) श्रीमती अजिता केलवा (फिशरीज) और डॉ अनिरुद्ध भाटी (मेक जीनोम) एवं कई छात्र स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में शिक्षक, व्याख्याता एवं प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है। प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय ने बताया कि इस विभाग द्वारा संचालित समस्त पाठ्यक्रम छात्रों के लिए रोजगार दिलाने में सहायक होंगे। साथ ही स्किल डेवलपमेंट और आत्मनिर्भर भारत की संकल्पनाओं को पूर्ण करते हैं। प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में सुव्यवस्थित पुस्तकालय, एनिमल संग्रहालय, लिमंनोलॉजी एंड एनवायर्नमेंटल बायोटेक्नोलॉजी, एंडोक्राइनोलॉजी, साइटोलॉजी, इंडस्ट्रियल बायोटेक्नोलॉजी, इम्म्यूनोलॉजी, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, सेरीकल्चर, फिश कल्चर आदि क्षेत्रों में विकसित प्रयोगशालाएँ उपलब्ध हैं। पिछले एक वर्ष में प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में विद्यार्थियों ने कौशल विकास के दृष्टिगत अनुसंधान परक शैक्षणिक व्यवस्था का नवाचार प्रारम्भ किया है, जिसके फलस्वररूप बी एस सी (ऑनर्स) के छात्रों ने हर्बल क्रीम, हर्बल टोनर, हर्बल टी, हर्बल चॉकलेट, इम्यून पाउडर, प्रोटीन पाउडर आदि उत्पाद विकसित किये हैं। विद्यार्थियों के इन उत्पादों को मिंटो हॉल भोपाल में प्रदर्शित किया गया था, जिसकी बहुत प्रशंसा की गई थी। एम एस सी की छात्र द्वारा वर्मीकम्पोस्टिंग की इकाई प्रारम्भ की गई है, विद्यार्थियों को फिश कल्चर का ज्ञान विक्रम सरोवर में दिया जा रहा है, एकवाकल्चर के विद्यार्थियों द्वारा तालाब की घुलित ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिए कृत्रिम फव्वारे का निर्माण किया गया। विभाग के शिक्षक डॉ अरविन्द शुक्ल, डॉ शिवि भसीन एवं डॉ गरिमा शर्मा ने बताया कि छात्रों ने अपने द्वारा बनाये उत्पादों का विक्रय कर आपने लिए धन अर्चित करते हुए "विश्वविद्यालय की लर्न बाय अर्न" स्कीम को भी सार्थक किया है और भविष्य में विभाग के छात्र एवं शिक्षक मिलकर कई और उत्पादों का निर्माण करेंगे,साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि जल्द ही विभाग तालाब निर्माण एवं जल परीक्षण की कंसल्टेंसी लेगा। विभाग के शिक्षक डॉ संतोष कुमार ठाकुर एवं डॉ स्मिता सोलंकी ने बताया कि विद्यार्थियों के विकास के लिए विभाग द्वारा अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी, वेबिनार, तथा विशिष्ट व्याख्यान का समय-समय पर आयोजन किया गया है।
शैक्षणिक व्यवस्था वही सार्थक होती है, जो लोगों को रोजगार, स्वरोजगार, कारोबार या आविष्कार के लायक बना सके गत एक वर्ष में प्राणिकी एवं जैव प्रोद्यौगिकी अध्ययनशाला ने कई महत्वपूर्ण रोजगारपरक एवं रोजगारजनक पाठ्यक्रम खोले हैं, कई राष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन किया है एवं पूरे वर्ष निरंतर गतिविधियाँ करते हुए अन्य विभागों के आगे एक उत्कृष्ट उदहारण रखा है। इस विभाग द्वारा संचालित पाठ्यक्रमों से रोगजार की अनेक संभावनाएं हैं, जैसे मत्स्य पालन, जैव-ऊर्जा, दुग्ध व्यापार, जैविक खाद, रेशम आदि क्षेत्रों में अपार सम्भावनाएँ हैं। इनके द्वारा छात्र स्वयं का व्यवसाय प्रारम्भ कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न शासकीय एवं औद्योगिक क्षेत्रों में वैज्ञानिक, मैनेजर, टैक्नीशियन, शिक्षक एवं प्राध्यापक के रूप में पदस्थ हो सकते हैं। इस विभाग के द्वारा कई नवीन डिप्लोमा एवं सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम भी स्किल डेवलपमेंट के उद्देश्य से प्रारम्भ किये गए हैं जो छात्रों के लिए लाभकारी है एवं छात्र अपनी डिग्री के साथ-साथ डिप्लोमा एवं सर्टिफिकेट का कोर्स भी कर सकते हैं। इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने वाले छात्रों को एक प्रमाण पत्र निःशुल्क दिया जायेगा। -प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय, कुलपति, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन
इस विभाग द्वारा संचालित समस्त पाठ्यक्रम छात्रों के लिए रोजगार दिलाने में सहायक होंगे एवं स्किल डेवलपमेंट एवं आत्मनिर्भर भारत की संकल्पनाओं को पूर्ण करते हैं।
- सलिल सिंह, विभागाध्यक्ष, प्राणिकी एवं जैवप्रौद्योगिकी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन
प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय का प्राचीनतम संस्थान है, जो कि प्रोफेसर हरस्वरुप (विश्वविख्यात वैज्ञानिक एवं प्रोफेसर) के द्वारा प्रारम्भ किया गया था। यह विभाग उच्च गुणवत्ता की शिक्षा एवं अनुसन्धान के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर पर्याप्त लाइब्रेरी एवं लेबोरेटरी सुविधाएं, मॉर्डन इंस्ट्रूमेंट्स सहित उपलब्ध है, विभाग में एकवाकल्चर फील्ड लेबोरेटरी भी स्थापित की गयी है।
- शैलेन्द्र कुमार शर्मा, कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन
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