Skip to main content

करियर की संभावनाओं को लेकर कुलपति जी ने परिसंवाद में छात्राओं को प्रोत्साहित करते हुए दिए सफलता के गूढ़ मंत्र

विश्वविद्यालय चलो अभियान के अंतर्गत हुआ करियर मार्गदर्शन परिसंवाद

उज्जैन विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विश्वविद्यालय चलो अभियान के अंतर्गत उज्जैन के विजयाराजे शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में करियर की संभावनाओं पर एक महत्वपूर्ण सेमिनार का आयोजन किया गया।


मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित विक्रम विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने छात्राओं से संवाद करते हुए उन्हें सफलता के गूढ़ मंत्र दिए। विक्रम विश्वविद्यालय ने हाल में ही विश्वविद्यालय चलो अभियान की शुरुआत की है, जिसके चलते विश्वविद्यालय के शिक्षक विभिन्न विद्यालयों एवं महाविद्यालय में जाकर विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय में संचालित होने वाले पाठ्यक्रमों की जानकारी एवं करियर से सम्बंधित मार्गदर्शन प्रदान कर रहे है।

इसी क्रम में उज्जैन के विजयाराजे शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में डॉ शिवि भसीन, डॉ अंजलि उपाध्याय, डॉ अरविन्द शुक्ला, डॉ मोहित प्रजापति एवं डॉ सागर जैस्वाल द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय में संचालित होने वाले मुख्य पाठ्यक्रमों की जानकारी प्रदान की गई। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए 25 जून को विजयाराजे शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में एक विशिष्ट करियर काउन्सलिंग सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसमें विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय को विद्यार्थियों के मार्गदर्शन हेतु मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। प्रोफेसर पाण्डेय एक अत्यंत सरल स्वभाव के धनी हैं। प्रायः देखा गया है कि वे एक कुशल प्रशासक में छुपे एक उत्कृष्ट शिक्षक को रोक नहीं पाते और तुरंत ही छात्र कल्याण के कार्यों में जुट जाते हैं। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि विद्यार्थी अपने भविष्य के निर्धारण हेतु कर्तव्यनिष्ठा एवं ईमानदारीपूर्वक परिश्रम करें तो उन्हें सफलता अवश्य मिलेगी। उन्होंने स्वामी विवेकानंद एवं डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलIम का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए विद्यार्थियों को अपने लक्ष्य निर्धारण हेतु मार्गदर्शन दिया। कुलपति जी ने कई विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं का बहुत ही सहज ढंग से समाधान किया।

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि विद्यार्थियों को अपने लक्ष्य के निर्धारण हेतु बड़े सपने देखना चाहिए तथा उसे प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम करना चाहिए। व्यक्तित्व का निर्माण स्वभाव और संस्कार के साथ हमारी साधना, प्रवृत्ति और परिश्रम से होता है। विद्यार्थी अपने श्रेष्ठ विचारों के साथ उनके त्वरित क्रियान्वयन से सफल हो सकते हैं। विक्रम विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप प्रायः सभी अध्ययन क्षेत्रों से जुड़े उच्च स्तरीय पाठ्यक्रमों के प्रारम्भ होने से प्रतिभा पलायन रुका है।

डॉ संदीप तिवारी, विभागाध्यक्ष गणित अध्ययनशाला ने कहा कि उत्कृष्ट भविष्य निर्धारण हेतु शिक्षा का माध्यम कोई भी हो सकता है। ऐसे कई उद्हारण हैं जहाँ कि हिंदी माध्यम से अध्यनरत विद्यार्थी भी कई शीर्ष पदों पर पहुंचे हैं।
विजया राजे शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्राचार्य श्री शरद कुमार व्यास द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। श्रीमती कृतिका पराड़कर द्वारा अतिथि परिचय दिया गया। इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय से डॉ शिवि भसीन, डॉ अंजलि उपाध्याय, डॉ अरविन्द शुक्ल एवं डॉ मोहित प्रजापति उपस्थित थे।

कार्यक्रम का संचालन श्रीमती कमलजीत कौर ने किया एवं आभार श्रीमती सुनीता मिश्रा ने माना।









Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...