विक्रम विश्वविद्यालय के जैव-प्रौद्योगिकी के विद्यार्थियों ने कुलपति प्रोफेसर पाण्डेय के साथ बबूल के पौधे से 10 किलो वजन के मशरूम अध्ययन और संकलन
प्राचीन काल से ही मशरुम का प्रयोग दवाई तथा भोजन के रूप में किया जा रहा है। भारत का जलवायु तथा यहाँ का प्राकृतिक एवं भौगोलिक संरचना ऐसी है की पूरे वर्ष यहाँ मशरुम का उत्पादन किया जा सकता है। भारत में सामान्यतः सफेद बटन, आयस्टर, मिल्की, कृमिनी, शिटाके तथा पोटोबैल्लो प्रजातियां प्रमुख हैं। मशरूम की विभिन्न प्रजातियां पेड़ों के साथ अलग-अलग सहजीवी सम्बन्ध बना कर वास करती है, जिससे पेड़ और मशरुम दोनों का ही फायदा होता है।
विक्रम विश्वविद्यालय का परिसर मशरुम की जैव-विविधता से भरा हुआ है। यहाँ मशरुम की कई प्रजातियां जैसे लेटीपोरस, गैनोडर्मा, प्लूरोटस आदि प्रजाति विभिन्न पौधो में विकसित होते हुए पाई गए है। विश्वविद्यालय परिसर में जैव-प्रौद्योगिकी के विद्यार्थियों एवं विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय के द्वारा अभी हाल में मशरुम जैव-विविधता के अध्य्यन से यह स्पस्ट होता है कि इस परिसर में गैनोडर्मा जेनस की प्रजातियां अधिक उपस्थित है। बी.एससी (ऑनर्स) के विद्यार्थियों ने बबूल के पौधो को लगभग 10 किलो वजन का गैनोडर्मा एकत्र किया है। जैसा कि विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों से यह प्रमाणित होता है कि गैनोडर्मा का उपयोग विभिन्न प्रकार कि बीमारियां जैसे अल्ज़ाइमर, कैंसर, ब्रॉंकइटिस, हेपिटाइएटिस के उपचार के लिए किया जाता है। मशरुम की इस प्रजाति का इस्तमाल रक्त को पतला करने, ह्रदय रोग का उपचार करने, थकान एवं मानसिक रोग के इलाज में, रक्त में शुगर की मात्रा नियंत्रित करने एवं शरीर में एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा बढ़ाने में होता है।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय प्रातः कालीन भ्रमण के दौरान देवास रोड एवं विश्वविद्यालय परिसर में कई मशरुम की विकसित हो रही कॉलोनियों को देख कर प्राणिकी एवं जैव-प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला में पहुंच कर वहाँ उपस्थित बी. एससी. (ओनर्स) जैवप्रौद्योगिकी एवं एम. एससी. प्राणिकी एवं जैव-प्रौद्योगिकी के विद्यार्थियों को लेकर मशरुम जैव-विविधता के अध्ययन हेतु निकल पड़े। इसी विभाग के शिक्षक डॉ अरविन्द शुक्ल एवं डॉ शिवि भसीन एवं विद्यार्थियों के साथ विश्वविद्यालय परिसर में किये गए लगभग 3-4 घंटे के अध्ययन से बबूल, शीशम, पीपल, बांस आदि के पौधों में विकसित हो रहे मशरुम की विभिन्न प्रजातिओं का अध्ययन किया। कुलपति प्रोफेसर पाण्डेय ने विद्यार्थियों से अलग-अलग पौधों में विभिन्न प्रजातियों में पाए जाने वाले मशरुम के लक्षण, वास स्थान, माइसीलियम, की संरचना तथा स्लाइड का निर्माण, विभिन्न प्रजातियों के मशरुम का औषधीय महत्त्व का अध्य्यन करते हुए प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने के लिए निर्देशित किया है। प्राणिकी एवं जैव-प्रौद्योगिकी अध्य्यनशाला में मशरुम के सैंपल का विस्तृत अध्ययन एवं पहचान के समय कुलपति जी के साथ प्राणिकी एवं जैव-प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सलिल सिंह एवं शिक्षक गण डॉ अरविन्द शुक्ल, डॉ संतोष कुमार ठाकुर, डॉ शिवि भसीन, डॉ स्मिता सोलंकी एवं डॉ गरिमा शर्मा उपस्थित है।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया की विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर पाण्डेय देश के प्रसिद्ध कवक वैज्ञानिक है। विद्यार्थियों को इनके द्वारा दिया गया प्रायोगिक मार्गदर्शन उनके स्वर्णिम भविष्य के लिए लाभदायक होगा। कुलपति जी के प्रेरणा से ही जैव-प्रौद्योगिकी के विद्यार्थियों ने कई महत्वपूर्ण उत्पादों को निर्मित करने में सफलता प्राप्त की है।
विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने बताया कि अध्ययन एवं अनुसन्धान में नवाचार हेतु विश्वविद्यालय दृढ़संकल्पित है। जैव-प्रौद्योगिकी के विद्यार्थियों द्वारा मशरुम जैवविविधता का अध्ययन एवं उनके द्वारा निर्मित उत्पाद नवाचार एवं आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को पूर्ण करने में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके लिए विद्यार्थी एवं शिक्षक गण बधाई के पात्र हैं।
प्राणिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ सलिल सिंह ने बताया कि विभाग में अध्य्यनरत विद्यार्थियों को सदैव नवाचार हेतु प्रेरित किया जाता है एवं उन्हें समय-समय पर औद्योगिक इकाइयों, फ़ील्ड वर्क, जैवविविधता पार्क, वाटर ट्रीटमेंट प्लांट तथा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट आदि में अध्य्यन हेतु भ्रमण कराया जाता है, जिससे विद्यार्थियों में शोधपरक विचारों की भावना निर्मित हो सके। विभाग के शिक्षक डॉ अरविन्द शुक्ल, डॉ शिवि भसीन एवं डॉ गरिमा शर्मा ने बताया कि माननीय कुलपति जी की प्रेरणा से विद्यार्थियों को आर सी ए आर द्वारा अनुशंसित लैब टू लैंड योजना के अंतर्गत ग्रामीण किसानों से भी मिलाया जाता है, जिससे प्रयोगशालाओं के निष्कर्ष किसानों तक पहुंच सके। इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने कृषि अपशिष्ट जैसे भूसा, पैरा आदि का उपयोग मशरुम उत्पादन के लिए करने हेतु किसानों को मार्गदर्शित किया तथा कृषि अपशिस्ट पदार्थों से आर्गेनिक खाद का निर्माण एवं पारली न जलाने हेतु जन-जागृति अभियान चलाया।
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