गांधी जयंती के अवसर पर चार विधाओं में होंगी जिला स्तरीय प्रतियोगिताएं
उज्जैन। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति एवं हिंदी भवन न्यास, भोपाल के सौजन्य से प्रतिभा प्रोत्साहन प्रतियोगिता 2022 का आयोजन विक्रम विश्वविद्यालय की हिंदी अध्ययनशाला में किया जाएगा। यह जानकारी देते हुए समिति के जिला संयोजक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने बताया कि उज्जैन जिला स्तर की उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए अंतरविद्यालयीन प्रतियोगिताएँ 1 अक्टूबर को दोपहर 2:00 बजे हिंदी अध्ययनशाला में होंगी, जिसमें कक्षा नवीं से बारहवीं कक्षा के विद्यार्थी भाग लेंगे। प्रतियोगिता में विजयी विद्यार्थियों को कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय द्वारा सम्मान राशि, शील्ड एवं प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया जाएगा। प्रतियोगिता संयोजक डॉ शिवी भसीन एवं डॉ अरविंद शुक्ला ने बताया कि जिला स्तर की मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के सौजन्य से आयोजित प्रतिभा प्रोत्साहन प्रतियोगिता 2022 के अंतर्गत विभिन्न प्रतियोगिताएँ - वादविवाद, काव्यपाठ, एकल लोकगीत एवं चित्रांकन से शब्दांकन हिंदी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (सर्किट हाउस के सामने देवास रोड) गांधी जयंती के एक दिवस पूर्व होंगी। वादविवाद का विषय रहेगा, इस सदन की राय में छात्रों को इतिहास का सही ज्ञान कराना आवश्यक है। संयोजक इंजी अंजलि उपाध्याय ने प्रतिभा प्रोत्साहन प्रतियोगिताओं में अधिकाधिक संख्या में सम्मिलित होने का अनुरोध विद्यार्थियों से किया है।आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ | Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी - आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं। उनके उपन्यास और कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं। उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है। मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...
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