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शरद पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक व आयुर्वेदिक महत्व


हिंदू पंचांग के अनुसार शरद पूर्णिमा हर वर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को आती है। प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष शरद पूर्णिमा 9 अक्टूबर दिन रविवार को मनाई जाएगी। शरद पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक व आयुर्वेदिक महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन चंद्रमा 16 कलाओं से पूर्ण होता है। इस कारण यह तिथि विशेष महत्व रखती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी विचरण करती हैं, इसलिए माता लक्ष्मी की पूजा करने से उनका विशेष आशीर्वाद मिलता है तथा जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती है। हिंदू मान्यता के अनुसार लोग उपवास पूजन करते हैं।

आयुर्वेद और शरद पूर्णिमा

आयुर्वेद के अनुसार ऋतु विभाजन के क्रम में विसर्ग काल का विभाजन वर्षा शरद हेमंत ऋतु में होता है। विसर्गकाल में सूर्य दक्षिणायन में गति करता है। विसर्ग काल में चंद्रमा पूर्ण बल वाला होता है। समस्त भूमंडल पर चंद्रमा अपनी किरणों को फैलाकर विश्व का निरन्तर पोषण करता रहता है, इसलिये विसर्ग काल को सौम्य कहा जाता है। आयुर्वेद मत के अनुसार वर्षा ऋतु में पित्त का संचय होता है तथा शरद ऋतु में पित्त का प्रकोप होता है। प्राचीन काल से ही पूर्णिमा का लोगों के जीवन में काफी महत्व रहा है क्योंकि दूसरी रातों के मुकाबले इस दिन चंद्रमा ज्यादा चांदनी बिखेरता है। इस धरती पर चंद्रमा की किरणों की तीव्रता बेहद कम होती है। आयुर्वेद के आचार्य चरक ने शरद ऋतु चर्या के क्रम में स्पष्ट किया है कि शरद ऋतु में उत्पन्न फूलों की माला स्वच्छ वस्त्र और प्रदोष (रात्रि के प्रथम प्रहर) काल में चंद्रमा की किरणों का सेवन हितकर होता है।

श्वास रोगी और शरद पूर्णिमा

आयुर्वेद के आचार्यों ने श्वास रोग रोग को पित्त स्थान से उत्पन्न व्याधि माना है। श्वास रोग में शरद पूर्णिमा को खीर खाने की परंपरा है। खीर दूध में चावल से बनाई जाती है। आचार्य चरक ने क्षीर को जीवनीय बताया है। दुग्ध रस में मधुर शीतल वीर्य शीतल गुण स्निग्ध गुरु मंद प्रसन्न गुणों से युक्त होता है। चावल शीतल वीर्य मधुर स्निग्ध त्रिदोष शामक होता है। दूध व चावल से बनी हुई खीर मधुर रस वाली होती है, जो पित्त का शमन करती है। शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखी हुई खीर में चंद्रमा की सौम्य किरणों के प्रभाव से शीतल गुण की वृद्धि होती है। आचार्य चरक ने लोक पुरुष साम्य सिद्धांत के संदर्भ में वर्णन किया है कि लोकगत भाव सोम पुरुष गत भाव प्रसाद गुण की वृद्धि करता है। अत: शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खाने का विधान पौराणिक काल से चला आ रहा है। श्वास रोगियों को विशेषत: आयुर्वेदिक औषधियों से सिद्ध खीर का सेवन करना चाहिए।

-डॉक्टर प्रकाश जोशी

शासकीय धन्वंतरी आयुर्वेद महाविद्यालय, उज्जैन

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