आयुर्वेद रत्नाकर के प्रथम रत्न मंथन का संदेश लेकर जिनका अवतार हुआ, सतत गतिशीलता और सुनियोजन से लक्ष्य प्राप्ति के देवता आदि धन्वंतरि को नमन
आयुर्वेद रत्नाकर के प्रथम रत्न मंथन का संदेश लेकर जिनका अवतार हुआ
सतत गतिशीलता और सुनियोजन से लक्ष्य प्राप्ति के देवता आदि धन्वंतरि को नमन
यद्यपि वैद्यक शास्त्र के जन्मदाता के रूप में धन्वंतरि जी का नाम जनसाधारण में प्रचलित है। इतिहास में धन्वंतरि नाम के तीन आचार्यों का वर्णन प्राप्त होता है । सर्वप्रथम धनवंतरी प्रथम देवलोक में जो स्थान मधु कलश लिए हुए अश्विनीकुमारों को प्राप्त होता है उसी प्रकार मृत्यु लोक में अमृत कलश लिए हुए आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि को प्राप्त है। पुराणों में विवरण प्राप्त होता है कि क्षीरसागर के मंथन से अमृत कलश लिए हुए धन्वंतरि उत्पन्न हुए।
धन्वंतरि समुद्र से निकले हुए 14 रत्नों में गिने जाते हैं
श्री मणि रंभा वारुणी अमिय शंख गजराज कल्पद्रुम शशि धेनू धनु धनवंतरी विष वाजि
देवता और असुर समुद्र के मंथन का निश्चय करके वासुकि नाग को रज्जू बनाकर व मंदराचल पर्वत को मथनी बनाकर पूर्ण शक्ति लगाकर समुद्र मंथन किए। तत्पश्चात धर्मात्मा आयुर्वेदमय पुरुष दंड और कमंडल के साथ प्रगट हुए। मंथन के पूर्व समुद्र में विविध प्रकार की औषधियां डाली गई थी और मंथन से उनके संयुक्त रसों का स्राव अमृत के रूप में निकला फिर अमृत युक्त श्वेत कमंडल धारण किए धन्वंतरी प्रगट हुए । इस प्रकार धनवंतरी प्रथम का जन्म अमृत उत्पत्ति के समय हुआ। इनका काल समुद्र मंथन काल है।
वास्तव में समुद्र मंथन एक युक्ति प्रमाण का उदाहरण है। जब औषध रोगी परिचारक और वैद्य अपने गुणों से युक्त होती हैं तब रोग का निर्मूलन होता है। आयुर्वेद के प्रथम अंग शल्यशास्त्र में पारंगत भगवान धनवंतरी का आविर्भाव निरोग सुख के लिए रोग-शोक के निवारण के लिए दैवीय शक्ति का विस्तार है।
धनवंतरी द्वितीय से तात्पर्य उस धनवन्तरी से है जिन्होंने काशी के चंद्रवंशी राजकुल में सुनहोत्र की वंशावली में चौथी और पांचवी पीढ़ी में जन्म ग्रहण किया था । भागवत पुराण और गरुण पुराण में दीर्घतपा के पुत्र को धनवंतरी माना जाता है।
शल्य प्रधान आयुर्वेद परंपरा की जनक के रूप में धनवंतरी तृतीय काशीराज दिवोदास धन्वंतरि का नाम लिया जाता है । धन्वंतरी संप्रदाय की प्रतिष्ठा इनकी क्रिया कुशलता का ही परिणाम है। ये शल्य कर्म विशेषज्ञ के रूप में चिकित्सा जगत में प्रतिष्ठित है । दिवोदास वाराणसी नगर के संस्थापक थे । काशी राज के कुल में आयुर्वेद की परंपरा रही है। उन्होंने अपने यहां विद्यापीठ के रूप में आयुर्वेद की शिक्षा दीक्षा देना प्रारंभ किया। दिवोदास धनवंतरी अष्टांग आयुर्वेद के विद्वान महा ओजस्वी शास्त्रों के अर्थ विषयक संदेह को दूर करने वाले, वह अनेक शास्त्रों के ज्ञाता के रूप में माने जाते हैं। यह पूर्व में देव वैद्य थे। सुश्रुत संहिता में स्पष्ट वर्णन आता है कि, इन्होंने देवताओं की जरा रुजा मृत्यु को दूर कर अजर अमर तथा निरोगी किया। मृत्यु लोक में शल्य प्रधान आयुर्वेद के जनक के रूप में मानव रूप में अवतरण हुआ। उनके यहां दूरस्थ देशों के शिष्य विद्या अध्ययन के लिए आते थे। दिवोदास के शिष्यों में सुश्रुत के अतिरिक्त औपधेनव.वैतरण औरभृ पौषकलावत करवीय. गोपुररक्षित भी थे। काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरि जब वानप्रस्थ आश्रम में थे तब उनके शिष्य कहने लगे ।
हे भगवान शारीरिक मानसिक आगंतुक व्याधियों से पीड़ित तथा परिजनों के रहते हुए भी व्याकुल मनुष्यों को देखकर हमारे मन में पीड़ा हो रही है। आतुर जनों की पीड़ा के प्रतिकार के लिए तथा जिससे इहलौकिक तथा पारलौकिक दोनों ही प्रकार का कल्याण प्राप्त हो सकता है। अतः हमें उपदेश दीजिए हम शिष्य बनने के लिए आपकी सेवा में उपस्थित हुए हैं ।
धन्वंतरी जी का उपदेश आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है यह अष्टांग है। इन अंगों में से किस अंग का उपदेश करें। शिष्यों ने फिर भगवान धनवंतरी से कहा कि, हम सबको शल्य प्रधान आयुर्वेद का उपदेश करें। धन्वंतरि जी ने एवमस्तु कहकर उपदेश का प्रारंभ किया ।
आयुर्वेद का प्रयोजन है रोगियों के रोग की मुक्ति, स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना । यह शास्त्र शास्वत और नित्य है, पवित्र है, स्वर्ग दायक सुखदायक है और आयुका वर्धक जीविका का संचालक है ।आदि काल में ब्रह्मा ने इस शास्त्र का प्रवचन किया था । उसे प्रजापति ने प्राप्त किया, उससे अश्विनीकुमारों ने प्राप्त किया, उनसे इंद्र ने ग्रहण किया और इंद्र से मैंने इस शास्त्र को प्राप्त किया और मेरा यह पवित्र कर्तव्य है कि, मैं विद्यार्थियों को इस शास्त्र का उपदेश दूं क्योंकि मैं आदिदेव धन्वंतरि हूं स्पष्ट होता है कि, आयुर्वेद का संबंध तृतीय धन्वंतरि से सर्वाधिक है। आगम प्रमाण से भगवान धनवंतरी के अवतरण दिवस को आयुर्वेदिक समाज धन्वंतरि जयंती के रुप में मनाते चले आ रहे हैं ।
भारत सरकार ने धन्वंतरि जयंती को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस (National Ayurveda Day) की शुरुआत साल 2016 में हुई थी। इस साल देश सातवां राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मना रहा है। इस बार राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस हर घर आयुर्वेद हर दिन आयुर्वेद रखी गई है। इसका उद्देश्या आयुर्वेद क्षेत्र से जुड़े हितधारकों और उद्यमियों को कारोबार के नए अवसरों के प्रति जागरूक करना है। इस वर्ष भी सम्पूर्ण भारतवर्ष में धन्वंतरि जयंती बड़े उत्साह से मनाई जाऐगी।
॥ धनवंतरी जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं ॥
✍️डॉ जितेंद्र कुमार जैन, व्याख्याता, संहिता सिद्धांत विभाग
✍️डॉ प्रकाश जोशी, व्याख्याता, रचना शारीर विभाग
शासकीय धनवंतरी आयुर्वेदिक महाविद्यालय एवं चिकित्सालय उज्जैन
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