लोकनाट्य माच में भरपूर संभावनाएं हैं – प्रो शर्मा
उज्जैन। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं कालिदास संस्कृत अकादमी के सहयोग से अंकुर रंगमंच समिति, उज्जैन के तत्वावधान में कालिदास संस्कृत अकादमी के सूर्यनारायण व्यास संकुल के मंच पर 23 - 24 जनवरी को आयोजित दो दिवसीय मालवा माच महोत्सव का समापन हुआ।
समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा एवं प्रसिद्ध माचकार श्रीमती कृष्णा वर्मा विशेष रूप से उपस्थित थीं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली के वरिष्ठ रंगकर्मी श्री हफी़ज़ खा़न के संयोजन एवं निर्देशन में यह समारोह माच गुरु श्री सिद्धेश्वर सेन की याद में मनाया गया था। अपने उद्बोधन में प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि पारंपरिक माच में शकुंतला एवं कालिदास को रूपांतरित किया जाना एक अनूठा प्रयोग है। संस्कृत नाट्य परंपरा के महाकवि कालिदास के जीवन एवं उनकी रचना शकुंतला को लोकनाट्य में मंचित करके जनसामान्य से इसे जोड़ सकते हैं। यह तभी संभव है जब आधुनिक रंगकर्म, पारंपरिक रंगकर्म और माच लेखन एवं संगीतकार मिलकर एक साथ प्रयास करें और समय, समाज और सामाजिक मुद्दों के साथ इसे जोड़ें। इसके संरक्षण का यही एक उपाय है। माच लोकनाट्य में संभावनाएं भरपूर हैं और शकुंतला और कवि कालिदास की माच की कलात्मक प्रस्तुतियां इसका उदाहरण है।
समापन समारोह की पहली प्रस्तुति कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम् का स्वर्गीय सिद्धेश्वर सेन एवं भगवतीलाल राजपुरोहित द्वारा किया गया माच रूपांतरण है, जिसका निर्देशन श्री हफी़ज़ खा़न और बाबूलाल देवड़ा द्वारा किया गया। महाकवि कालिदास की रचना शाकुंतलम विश्व में सर्वाधिक चर्चित रचनाओं में से एक हैं। शकुंतला की कथा महाभारत के आदि पर्व में भी मिलती हैं।
मंच पर जिन कलाकारों ने शकुंतला को साकार किया उनमें फक्कड़ संत एवं कण्व ऋषि- सुधीर सांखला, राजा दुष्यंत- बाबूलाल देवड़ा, भिश्ती- बबलू देवड़ा, फर्रासन/तपस्वी /गौतमी- टीकाराम, प्रधान/कश्यप ऋषि- बाबू भाटी, तपस्वी-राजू भाटी, फूला दे- सीमा कुशवाहा, शकुंतला- हीरामणि, सहेली- दीपा सेन/ जज़ा सिद्दीकी/आयुषी चौहान, धीवर/ शेर- रोहन बाथम एवं भरत-जज़ा सिद्दीकी मुख्य रूप से चर्चित रहे।
समापन की दूसरी प्रस्तुति स्वर्गीय सिद्धेश्वर सेन द्वारा रचित एवं बाबूलाल देवड़ा द्वारा निर्देशित माच कवि कालिदास थी। महाकवि कालिदास को सर्वाधिक समर्थ, संस्कृत कवि और नाटककार के रूप में जाना जाता है। कुछ सूत्रों के मुताबिक कालिदास अनपढ़ थे लेकिन उन्हें देवी काली से ज्ञान का वरदान मिला था। वे उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के दरबारी कवि हो गए। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया था। उन्हें मानव स्वभाव का गहरा ज्ञान था। वे दुख के प्रति संवेदनशील, प्रकृति प्रेमी और आदर्शवादी थे। उन्होंने दो महाकाव्य कुमारसंभव और रघुवंश तथा दो छोटी काव्य रचनाओं मेघदूत और ऋतुसंहार की रचना की। मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीय और अभिज्ञान शाकुंतलम् उनके 3 नाटक हैं।
माच कवि कालिदास उनके प्रारम्भ में सामान्य व्यक्ति होने से महाकवि बनने तक की रचना प्रक्रिया है। कवि कालिदास को मंच पर साकार करने वाले कलाकारों में भिश्ती- बबलू देवड़ा, फर्रासन- टीकाराम, विष्णु- सोनू बोड़ाना, कालिदास- बाबूलाल देवड़ा, पुष्पा- हीरामणि, मालन- टीकाराम, माली-बाबू भाटी, राजकुमारी-सीमा कुशवाहा, सखी- दीपा सेन, सहेली-जज़ा सिद्दीकी एवं आयुषी चौहान चर्चित रहे। समारोह के चारों नाटकों के संगीत संचालन में हारमोनियम-रमेश असवार, ढोलक-पप्पू चौहान एवं मंच प्रबंधन सुधीर सांखला एवं ईवान खा़न का विशेष योगदान रहा।
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