यह जानकारी राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री सुन्दरलाल जोशी ने देते हुए बताया कि राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि श्री हरेराम वाजपेयी अध्यक्ष हिन्दी परिवार इन्दौर, विशिष्ट अतिथि डॉ. शहाबुद्दीन शेख राष्ट्रीय मुख्य संयोजक पुणे, मुख्य वक्ता डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा कुलानुशासक विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, अध्यक्षता श्री ब्रजकिशोर शर्मा, अध्यक्ष राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, विशिष्ट वक्ता श्रीमती सुवर्णा जाधव राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष पुणे एवं डॉ. प्रभु चौधरी राष्ट्रीय महासचिव होंगे। संगोष्ठी में काव्य पाठ श्री महेश सनाढ्य नाथद्वारा, श्रीमती शैली भागवत इन्दौर, श्री राकेश छोकर दिल्ली, श्रीमती संगीता केसवानी इन्दौर, सुश्री प्रतिमा सिंह सरदारपुर, श्रीमती कृष्णा श्रीवास्तव मुम्बई, डॉ. नीना शर्मा राजस्थान, डॉ. मनीषा दुबे दमोह, श्रीमती किरण पोरवाल उज्जैन, पूजा भारद्वाज दिल्ली, डॉ. मंजू रूस्तगी चेन्नई, शीतल राघव इन्दौर, डॉ. शालिनी शर्मा बरेली, डॉ. कृष्णा जोशी इन्दौर, नूतन शर्मा दिल्ली, डॉ. मुक्ता कौशिक रायपुर, ज्योति जलज हरदा आदि कविता प्रस्तुत करेंगे। समारोह की स्वागताध्यक्ष डॉ. रश्मि चौबे एवं संचालक श्वेता मिश्र पुणे होगी। संगोष्ठी की प्रस्तावना डॉ. शहनाज शेख नांदेड, आयोजक डॉ. अपराजिता शर्मा रायपूर, संयोजक डॉ. संगीता पाल रहेगी।
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ | Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी - आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं। उनके उपन्यास और कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं। उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है। मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...
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