Skip to main content

शिक्षा में भारतीय ज्ञान - विज्ञान को पढाया जाना अत्यंत आवश्यक - कुलपति प्रो पांडेय

वैश्विक नेतृत्व और रोजगार कौशल के लिए विज्ञान पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस - 28 फरवरी 2023 के अवसर पर मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय, भोपाल में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें विक्रम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किए गए थे।
दिनांक 28 फरवरी 2023 राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका विषय था वैश्विक नेतृत्व और रोजगार कौशल के लिए विज्ञान।


संगोष्ठी के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि उज्जैन संस्कृति और कला की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। उज्जैन शिक्षा की भी नगरी है। यहीं पर सांदीपनि आश्रम में भगवान कृष्ण ने 16 कलाओं और 64 विद्याओं को सीखा था। उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में उज्जैन ही वह स्थान है जो सूर्य के ठीक नीचे स्थित है। यहां पर वेधशाला भी है। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में भारत विश्व गुरु था और यहां पर नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय हुआ करते थे। बाद में मुगलों और अंग्रेजों ने भारत की आर्थिक और बौद्धिक संपदा को लूटा। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में उद्यमिता पर अधिक जोर दिया गया है।


उन्होंने एक उदाहरण देकर बताया कि किस प्रकार आज सर्कुलर इकोनामी पर काम किया जा रहा है। एक भारतीय वैज्ञानिक ने बेंगलुरु में मशरूम उत्पादन का कार्य शुरू किया उसने मशरूम से न केवल सब्जियां और सूप बनाए, बल्कि मशरूम से ही शाकाहारी चमड़ा, मशरूम के जैकेट, मशरूम की पॉलिथीन, मशरूम से पैकिंग मैटेरियल, मशरूम से इंसुलेटर, मशरूम से पॉलीमर, यहां तक कि मशरूम से ईंट भी बनाई है। यह तभी संभव है जब हमारे पास बहुविषयक ज्ञान हो, तभी ऐसी तरक्की संभव हो सकती है। उन्होंने कहा कि आज शोध के विषय हमें अपने आसपास ही ढूंढना चाहिए। हमें अपनी विरासत को जानना चाहिए और शिक्षा में भारतीय ज्ञान-विज्ञान को पढ़ाया जाना अति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमारे पाठ्यक्रम में राजा भोज के वैज्ञानिक योगदान पर अध्ययन सामग्री अवश्य शामिल किया जाना चाहिए।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...