Skip to main content

सड़क यातायात निगरानी के लिए डीप-लर्निंग आधारित तकनीक में विक्रम विश्विधालय के इंजीनियरिंग संस्थान को मिला पेटेंट


उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय एवं स्कूल ऑफ इंजिनियरिंग एण्ड टेक्नोलाजी संस्थान के निदेशक डॉ डी. डी. बेदिया के मार्गदर्शन में इंजिनियरिंग संस्थान के इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग विभाग के प्राध्यापक रितेश नागर ने अन्य विश्वविद्यालय के शिक्षको के साथ मिलकर संयुक्त रूप से इंडियन पेंटेट जनरल में प्रकाशित किया।

पेटेंट के अन्तर्गत :- डीप लर्निंग की मदद से आधुनिक कंप्यूटर तकनीक के इस्तेमाल से ट्रैफ़िक की समस्याओं को दूर करने में मदद मिलेगी. साथ ही, जिससे ट्रैफिक को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया जा सके। वीडियो प्रोसेसिंग के उपयोग के बाद, डीप फीडफॉर्वर्ड नेटवर्क (DFN), कनवॉल्यूशनल न्यूरल नेटवर्क (सीएनएन) टेक्निक से वाहनों की गिनती की जाती है और किसी विशेष लेन की गिनती के आधार पर, इसे वाहनों के घनत्व के तीन वर्गों जैसे निम्न, मध्यम और उच्च में वर्गीकृत किया जाता है और उन लेनों में मौजूद वाहनों की संख्या के आधार पर ग्रीन सिग्नल टाइमर गतिशील रूप से सेट किया जाता है। मॉडल किसी विशेष वाहन की श्रेणी की पहचान भी करेगा। जिससे ट्रैफिक को नियंत्रित करने में इस नयी तक्नीक के उपयोग से बहुत मदद मिलेगी।

विभाग की इस उपलब्धि पर कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पाण्डेय, कुलसचिव डॉ प्रशांत पौराणिक, कुलानुशासक प्रौ शैलेन्द्र शर्मा, प्रोफ व्हाई. एस. ठाकुर, डॉ गणपत अहिरवार व विभाग के शिक्षक मोहीत प्रजापति, अमित मरमट, द्वारिका जायसवाल, सचिन सिरोनिया, संजय शर्मा व समस्त शिक्षक, कर्मचारी व अधिकारीयो द्वारा शुभकामनाएं दी गई।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...