उज्जैन। माधव भवन, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से ठोस अपशिष्ट पदार्थों (कचरा) से सम्बंधित परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें ब्लू प्लेनेट स्किल कम्पनी के सदस्यों ने सहभागिता करते हुए कचरा प्रबंधन एवं उसके पुनः उपयोग की अवधारणा प्रस्तुत की।
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा पर्यावरण के क्षेत्र में अनेक नवाचार किए जा रहे हैं। हाल के दो वर्षों में परिसर में 10,000 से अधिक पौधों का वृक्षारोपण, वनविभाग के सहयोग से सांस्कृतिक वन का निर्माण एवं जल प्रबंधन आदि अनेक सराहनीय कार्य किये जा रहे है। पर्यावरण के क्षेत्र में नवाचार करते हुए प्लेनेट स्किल प्राइवेट कम्पनी के सहयोग से ठोस अपशिष्ट पदार्थों (कचरा) के प्रबंधन हेतु उनसे उपयोगी समग्री निर्माण हेतु प्रयास किया जा रहा है। ब्लू प्लेनेट द्वारा कचरा प्रबंधन हेतु विक्रम विश्वविद्यालय में अध्ययनरत पर्यावरण विज्ञान के प्रायोगिक एवम् सैद्धान्तिक दोनों पक्षों की व्यवस्था की जाएगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि वर्तमान समय मे पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए रिड्यूस, रीयूज व रीसायकल के सिद्धांतों का पालन किया जाना आवश्यक है। अतः कचरा प्रबंधन करने के लिए उनसे उपयोगी सामग्री जैसे जैविक खाद, प्लास्टिक स्टूल, केरोसिन आदि का निर्माण किया जा सकता है। प्लेनेट स्किल प्राइवेट कम्पनी के उपाध्यक्ष कृष्ण कुमार गौर ने बताया कि विश्वविद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों को कचरा प्रबन्धन की प्रायोगिक जानकारी प्लेनेट स्किल प्राइवेट लिमिटेड द्वारा प्रदान जाएगी।
विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने परिचर्चा में बताया कि ठोस अपशिष्ट पदार्थों का विघटन स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से आवश्यक है। अतः विद्यार्थियों को इसका प्रायोगिक ज्ञान उपयोगी होगा । यदि आवश्यक होगा तो विश्वविद्यालय द्वारा ब्लू प्लेनेट से द्विविपक्षी समझौता (एमओयू) भी किया जाएगा।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि कचरा प्रबंधन द्वारा फर्नीचर, ईंधन आदि का निर्माण पर्यावरण के क्षेत्र में नवाचार होगा तथा विद्यार्थियों का कौशल विकास भी होगा।
प्रोफेसर डी एम कुमावत, संकाय अध्यक्ष, जीव विज्ञान संकाय ने बताया कि पर्यावरण में ठोस अपशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन आवश्यक होता है क्योंकि इसमें हानिकारक तत्व उपस्थित रहते हैं। अतः यदि ठोस अपशिष्ट पदार्थों द्वारा उपयोगी सामग्री निर्माण का प्रायोगिक ज्ञान हमारे विद्यार्थियों को दिया जाए तो यह विद्यार्थियों के लिए उपयोगी होगा।
कार्यक्रम में प्रोफेसर उमा शर्मा, विभागाध्यक्ष, रसायन विज्ञान, प्रो उमेश कुमार सिंह, विभागाध्यक्ष, कंप्यूटर विज्ञान, प्रो स्वाति दुबे, विभागाध्यक्ष, भौतिकी अध्ययनशाला, डॉ अरविंद शुक्ला, डॉ सन्तोष ठाकुर, डॉ शिवी भसीन, डॉ स्मिता सोलंकी, डॉ जगदीश शर्मा, डॉ मुकेश वाणी, डॉ पराग दलाल, डॉ निहाल सिंह, डॉ गरिमा शर्मा, डॉ पूर्णिमा त्रिपाठी, डॉ शीतल चौहान आदि सहित अनेक विभागों के शिक्षकगण उपस्थित थे।
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