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विविध क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग पर्यावरण हितैषी और भारतीय संस्कृति के अनुरूप है – कुलपति प्रो पांडेय

प्राकृतिक संसाधनों द्वारा डाई प्रोसेसिंग पर रसायन एवं जैवरसायन अध्ययनशाला में दो दिवसीय महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन हुआ


उज्जैनI विक्रम विश्वविद्यालय की रसायन एवं जैव रसायन अध्ययनशाला में दिनांक 18 एवं 19 अप्रैल को दो दिवसीय महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय कार्यशाला का आयोजन विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पाण्डेय के निर्देशन में किया गयाI उद्घाटन सत्र में डॉ अर्पण भारद्वाज, अतिरिक्त संचालक, उच्च शिक्षा, उज्जैन, डॉ. उमा शर्मा, डीन विज्ञान संकाय, आचार्य एवं अध्यक्ष, रसायन एवं जैवरसायन अध्ययनशाला तथा अध्ययनशाला के पूर्व वरिष्ठ छात्र श्री अनिरुद्ध भागवत तथा संस्था ‘आकार’ की निर्देशिका सुश्री अक्षिता गंगवाल की उपस्थिति में हुआI कार्यशाला के समापन समारोह में मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय तथा कुलानुशासक डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा, डॉ. जीवन सोलंकी, समन्वयक, फार्मारसायन विभाग, माधव विज्ञान महाविद्यालय, उज्जैन एवं विभागाध्यक्ष प्रो उमा शर्मा की उपस्थिति में हुआ I

कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि विविध क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग पर्यावरण हितैषी और भारतीय संस्कृति के अनुरूप है। प्रकृति के तत्त्वों द्वारा डाई प्रोसेसिंग पर कार्यशाला विद्यार्थियों के कौशल विकास में सहायक होगी। इस कार्यशाला में सीखे गए नवाचार को रिसर्च पेपर के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित करवाना चाहिएI इस तरह की कार्यशाला निश्चित ही विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में सहायक सिद्ध होगीI कार्यशाला की रूपरेखा डॉ. उमा शर्मा द्वारा प्रस्तुत की गईI आपने कार्यशाला की मुख्य विशेषता बताते हुए कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग से कार्यशाला में गाय के गोबर से ‘प्रोसेसिंग ऑफ़ नेचुरल डाई’ की गई जो कि सुरक्षित, नॉन-एलर्जी, जैव-अपघटनीय, नॉनटॉक्सिक तथा टिकाऊ होने के साथ ही प्राकृतिक रंगों का उपयोग पर्यावरण की दृष्टि से भी अनुकूल हैI भारत में हजारों वर्षों से प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता रहा है, जो हमारे पूर्वजों के प्रकृति प्रेम एवं आस्था से भी जुड़ा हुआ हैI साथ ही यह जल प्रदूषण को रोकने, कार्बन उत्सर्जन को कम करने एवं अपशिष्ट पदार्थों के निदान में भी सहायक हैI रंग निर्माण में उपयोग होने वाले जैव अपशिष्टों जैसे फूल, पत्तियों, कलियों इत्यादि में विभिन्न औषधीय गुण जैसे एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल आदि होते हैंI यह त्वचा के माध्यम से शरीर में अवशोषित होकर विभिन्न आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति करते हैंI

संस्था ‘आकार’ की निर्देशिका सुश्री अक्षिता गंगवाल ने कार्यशाला में सहभागियों को प्रयोग द्वारा विभिन्न बिन्दुओं जैसे स्काऊरिंग (गाय के गोबर से प्रोसेसिंग एवं रगड़ना), मॉरडेंट, और डाइंग हेतु प्राकृतिक रंगों के लिए गेंदे के फूलों, अनार के छिलके तथा मंजिष्ठा की छाल द्वारा रंगने की पद्धति बताई गईI कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारत में प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक युग तक प्रकृति के उपादानों का प्रयोग करते हुए विभिन्न प्रकार की कलाओं और वास्तु का विकास हुआ है। नए दौर में युवाओं के मध्य इनके प्रयोग और जागरूकता के लिए यह कार्यशाला महत्वपूर्ण उपलब्धि है। प्रतिभागियों ने अपनी फीडबैक में बताया कि यह कार्यशाला अपने भविष्य में रोजगार हेतु उपयोगी सिद्ध होगी। उन्होंने कार्यशाला के दौरान सीखे गए नवाचारों को साझा भी किया। उन्होंने विश्वास जताते हुए बताया कि यह कार्यशाला वास्तव में उनके जीवन में नई दिशा लाएगीI रसायन अध्ययनशाला द्वारा सर्टिफिकेट कोर्स इन प्रिंटिंग टेक्सटाइल केमिस्ट्री (अवधि 6 माह) का संचालन किया जाता है I कार्यक्रम का संचालन डॉ. दर्शना मेहता तथा आभार प्रदर्शन अंशुमाला वाणी द्वारा किया गयाI कार्यक्रम में शिक्षकगण डॉ. मीनल छजलानी, डॉ. प्रदीप पालीवाल, डॉ. प्रज्ञा गोयल, जयश्री जाधम तथा 50 से अधिक विद्यार्थी और शोधार्थी सहभागी रहे I

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