यह जानकारी राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री सुंदरलाल जोशी ने देते हुए बताया कि श्री भण्डारी ने गत 201 9 में अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर भव्य समारोह एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी मांडव गढ़ में शिक्षक संचेतना के साथ सम्पन्न करवाया। तत्पश्चात् आप लगातार अनेक दायित्वों में सक्रिय है। श्री भण्डारी चेयरमेन आईआईटी जोबट, जिला संयोजक भाजपा सहकारिता मोर्चा, अध्यक्ष दहेज सलाहकार बोर्ड, संयोजक श्री मालवा जैन महासंघ, अध्यक्ष सनातन सत्संग समिति, पूर्व अध्यक्ष रोटरी क्लब झाबुआ, पूर्व पार्षद नगर पालिका परिषद झाबुआ। आप वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार के रूप में देश के अनेक पुरस्कार सम्मान प्राप्त है। आपकी 10 प्रमुख पुस्तके आनंद अश्रु, आदि है। श्री भण्डारी को शिक्षक संचेतना के संरक्षक डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, श्री हरेराम वाजपेयी, डॉ. शहाबुद्दीन शेख, सुवर्णा जाधव, डॉ. हरिसिंह पाल, डॉ. अनसूया अग्रवाल, डॉ. दीपिका सुतोदिया, डॉ. शिवा लोहारिया, डॉ. संगीता मण्डल, डॉ. अशोक कुमार भार्गव, ब्रजकिशोर शर्मा, डॉ. ओमप्रकाश प्रजापति, श्वेता मिश्र, सुंदरलाल जोशी, राकेश छोकर, डॉ. सुनीता मंडल, डॉ. ज्योति जैन, शैली भागवत, संगीता केसवानी, डॉ. प्रभु चौधरी, श्री राजेन्द्र कांठेड़, श्री हरचरणसिंह चावला, डॉ. लक्ष्मीनारायण सत्यार्थी, डॉ. अरूणा सराफ, डॉ. कृष्णा जोशी, प्रभा बैरागी, डॉ. शहेनाज शेख, प्रतिभा सिंह, दिव्या मेहरा, डॉ. बालासाहेब तोरस्कर, डॉ. चेतना उपाध्याय, धर्मेन्द्र बम, डॉ. रेणू सिरोया, रजनी प्रभा, प्रगति बैरागी, संगीता तिवारी, कृष्णा श्रीवास्तव, डॉ अर्चना दुबे, राजकुमार यादव, विनोद दुबे, डॉ. रजिया शेख, डॉ. मनीषा दुबे, विनोद वर्मा आदि ने हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं प्रदान की है।
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन
आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ | Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी - आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं। उनके उपन्यास और कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं। उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है। मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...
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