रचनात्मकता को जीवित रखने के लिए पठन - पाठन के कार्य में सक्रिय रहने से शोध में नवीनता आ सकती है
झारखंड विश्वविद्यालय में फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम को संबोधित करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में भारत में प्राचीन काल से अभी तक हुए शोध एवं अनुसंधान पर प्रकाश डाला। दिनांक 17 मई 2023 को झारखंड विश्वविद्यालय द्वारा शिक्षकों के अकादमिक विकास हेतु 25 से अधिक राज्यों के शिक्षकों के लिए प्रायोगिक शोध एवं अनुसंधान विषय पर फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का आयोजन किया गया है जो दिनांक 9 से 20 मई तक आयोजित किया जाना है। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय को मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था।शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए माननीय कुलपति जी ने आधुनिक भारत में विज्ञान के क्षेत्र में शोध एवं अनुसंधान के विकास पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया की भारत में विज्ञान एवं उसमें शोध और अनुसंधान के उदाहरण प्राचीन काल जैसे सिंधु घाटी सभ्यता से प्रात होते है। सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही सभ्यता में विज्ञान और उसके उपयोग के प्रत्यक्ष प्रमाण मिलते थे। सभ्यता के विकास के साथ भारत ने अपने आपको एक प्रसिद्ध शिक्षास्थली के रूप में विकसित किया। भारत में तक्षशिला और नालंदा जैसे प्रसिद्ध विद्यापीठ स्थापित हुए, जहां दूर से दूर से विद्यार्थी अध्ययन करने आते थे। भारत देश की भूमि ने वराहमिहिर आर्यभट्ट, सुश्रुत, ब्रह्मगुप्त जैसे विज्ञान को नया रूप देने वाले सपूतों को जन्म दिया है, जिनके नाम विश्व विख्यात हैं।
अपनी बात को बढ़ाते हुए माननीय कुलपति जी ने कहा कि गुरुत्वाकर्षण जैसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों और हवाई यंत्रों की खोज भारत में पहले ही कर ली गई थी, परंतु दुर्भाग्यवश वे प्रचलित नही हो पाए। भारत देश में रसायन, भौतिकी, कृषि, चिकित्सा आदि विषय आदिकाल से ही प्रचलित रहे हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथ, वेद एवं पुराण में विज्ञान, विशेष कर जीव विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी जैसे विषय का प्रबल उल्लेख मिलता है। वहाँ से आज तक भारत वर्ष ने इन सभी क्षेत्रों में उच्च दर्जा हासिल किया है, जिसकी नीव हमें हमारी प्राचीन धरोहर से मिलती है।
शिक्षकों को संबोधित करते हुए माननीय कुलपति जी ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति को सदैव विद्यार्थी रहना चाहिए एवं उसे अपनी सृजनात्मकता को जीवित रखने के लिए पठन - पाठन के कार्य में संलिप्त रहना चाहिए। इसी से शोध एवं अनुसंधान में नवीनता आ सकती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि शीघ्र ही नई शिक्षा नीति के तहत प्राचीन भारत में विज्ञान को पाठ्यक्रम में जोड़ा जायेगा। इससे अधिक से अधिक विद्यार्थी लाभान्वित हो सकेंगे।
इस वक्तव्य से शिक्षकों और विद्यार्थियों को लाभान्वित करने पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर प्रशांत पुराणिक और कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कुलपति जी को बधाई दी।
Comments