Skip to main content

दुनिया की सार्वदेशीय और विश्व की प्रथम लिपि है देवनागरी - प्रो शर्मा

महात्मा गांधी का हिंदी भाषा और नागरी लिपि के प्रसार में योगदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों ने विचार व्यक्त किए


राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, हिंदी परिवार इंदौर, उज्जैन इकाई तथा नागरी लिपि परिषद मध्य प्रदेश इकाई द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। ऐतिहासिक श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति के शिवाजी भवन में 25 मई को राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली की मध्यप्रदेश इकाई द्वारा आयोजित संगोष्ठी में महात्मा गांधी का हिंदी भाषा और नागरी लिपि संदर्भ योगदान विषय पर विद्वानों ने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। मुख्य अतिथि हिंदी परिवार इंदौर के अध्यक्ष हरेराम बाजपेई थे। अध्यक्षता श्री यशवंत भंडारी, झाबुआ ने की। विशेष अतिथि डॉ अशोक कुमार भार्गव आईएएस भोपाल, अलका भार्गव, इंदौर, श्रीमती पदमा राजेंद्र, ब्रजकिशोर शर्मा, डॉ प्रभु चौधरी, श्री त्रिपुरारी लाल शर्मा थे।

संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि नागरी लिपि का सीधा संबंध ब्राह्मी लिपि से है जो सांस्कृतिक रूप से विश्व को जोड़ती है यह भाषा राष्ट्रभाषा हिंदी के अलावा कई भाषाओं को स्वरूप देती है। नागरी लिपि में सभी भाषाओं को आकार देने की क्षमता है। यह दुनिया की सार्वदेशीय विश्व की प्रथम लिपि है । श्री हरेराम वाजपेयी ने समिति में गांधीजी की दोनों यात्राओं क्रमश 1918 एवं 1935 का स्मरण दिलाते हुए कहा कि यही गांधी जी ने हिंदी को भारत की भावी राष्ट्रभाषा बनाने का और देवनागरी लिपि अपनाने पर जोर दिया था।
अध्यक्षता कर रहे झाबुआ के मध्य प्रदेश अध्यक्ष श्री यशवंत भंडारी जी ने कहा कहा नागरी लिपि परिषद से भारत की भाषा और साहित्य को समझने में मार्गदर्शन मिलता है । इस अवसर पर डॉ अशोक कुमार भार्गव आईएएस भोपाल अलका भार्गव श्रीमती पदमा राजेंद्र एवं श्री त्रिपुरारी लाल शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए । विषय की प्रस्तावना संस्था के राष्ट्रीय महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। स्वागत उद्बोधन राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्रजकिशोर शर्मा ने दिया । कार्यक्रम के प्रथम चरण में राष्ट्रीय शिक्षक सं चेतना ने अपने नवीन पदाधिकारियों को पद व कर्तव्यनिष्ठा की शपथ राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने दिलाई।

संचालन क्रमश संगीता केसवानी एवं शैली भागवत ने किया आभार डॉक्टर अरुणासराफ ने व्यक्त किया कार्यक्रम में श्री राकेश शर्मा संपादक वीणा वाणीजोशी श्री उमेश पारी ख,मनीषा दुबे मनीषा खेडेकर आदि के अलावा इंदौर उज्जैन झाबुआ दमोह धार आदि शहरों के सदस्य साहित्यकारों ने सहभागिता की।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...