एक शिक्षक अपने शिष्य को ज्ञान देता है किन्तु एक गुरु अपने शिष्य की क्षमताओं को निखार कर उसके व्यक्तित्व को सम्पूर्णता प्रदान करता है- कुलपति प्रो पांडेय
शिक्षकों का सम्मान समारोह सम्पन्न
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर शिक्षकों का सम्मान समारोह आयोजित किया गया। विश्वविद्यालय क़े विभिन्न शिक्षकों का सम्मान किया गया एवं विश्वविद्यालय की वर्तमान शैक्षणिक गतिविधियों और भावी योजनाओं पर चर्चा की गई।
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय में शिक्षकों का सम्मान समारोह रखा गया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय क़े विभिन्न शिक्षकों का सम्मान किया गया एवं विश्वविद्यालय की वर्तमान शैक्षणिक स्थिति और भावी योजनाओं पर चर्चा की गई। कार्यक्रम की शुरुआत विश्वविद्यालय के शिक्षकों द्वारा माननीय कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय के स्वागत से हुई। उसके उपरांत विश्वविद्यालय के विभिन्न अध्ययनशालाओ के वरिष्ठ शिक्षकों का सम्मान किया गया। सम्मान की इस बेला के उपरांत विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पाण्डेय ने समस्त शिक्षकों को सम्बोधित करते हुए बताया कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही वेदों के रचयिता महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, सबसे पहले वेदों की शिक्षा महर्षि वेदव्यास ने दी थी। इसलिए उन्हें प्रथम गुरु का दर्जा दिया गया है और उन्ही के सामन में गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। अपनी बात को बढ़ाते हुए माननीय कुलपति जी ने कहा कि भारत भूमि ने गुरु सांदीपनि, द्रोणाचार्य एवं चाणक्य जैसे महान गुरुओं को जन्म दिया है और गुरु-शिष्य परम्परा भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रही है। हमारी हर पीढ़ी को गुरु के आदर और सम्मान करने का संस्कार अपनी पिछली पीढ़ी से परस्पर मिलता आया है। उन्होंने कहा कि गुरु का महत्त्व एवं गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वाह करने की भावना अपने विद्यार्थियों में रोपित करना सदैव से विक्रम विश्वविद्यालय की प्राथमिकता रही है। इसी भावना को पुख्ता करने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा कई परंपरागत पाठ्यक्रम जैसे रामचरितमानस में विज्ञान, कर्मकांड, ज्योतिष विज्ञान आदि प्रारम्भ किए गए हैं, जिनके माध्यम से विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता से जोड़ने का प्रयास किया जाता है।
माननीय कुलपति जी ने विश्वविद्यालय की शैक्षणिक व्यवस्था का जायज़ा लेते हुए कहा कि पिछले कुछ समय में विश्वविद्यालय के शैक्षणिक स्तर में सकारात्मक परिवर्तन आया है। अतः अब यह हम शिक्षकों का दायित्व है कि वह विद्यार्थियों को उच्चतम शिक्षा देने का प्रयास करें, उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के आचार्य केवल शिक्षक बनकर न रहें, वरन गुरु बनकर अपने विद्यार्थी की क्षमताओं को विकसित करते और उनके व्यक्तित्व को निखारते हुए उसे सम्पूर्णता प्रदान करें।
उन्होंने प्रवेश की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करते हुए कहा कि सी. यू. ई. टी. के माध्यम से विश्वविद्यालय में गत वर्ष की तरह ही इस वर्ष भी बड़े पैमाने पर विद्यार्थियों द्वारा प्रवेश मिलेगा। शिक्षकों का यह दायित्व है कि वे प्रवेशार्थियों की हर संभव मदद करें।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू प्रो. एस के मिश्रा, प्रोफेसर उमेश सिंह, प्रोफेसर अनिल जैन, प्रो बी के आंजना, डॉ शैलेंद्र भारल, डॉ संग्राम भूषण आदि सहित अनेक शिक्षकगण उपस्थित थे।
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