प्रेमचंद के कथा साहित्य में गहरी मानवीयता है – शशिमोहन श्रीवास्तव
प्रेमचंद का साहित्य : समकालीन वैश्विक संदर्भ में पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
प्रेमचंद जयंती पर 31 जुलाई 2023 को हुआ प्रेमचंद के अवदान पर मंथन
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला, पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला तथा प्रेमचंद सृजन पीठ, उज्जैन के संयुक्त तत्वावधान में 31 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन वाग्देवी भवन में किया गया। यह संगोष्ठी प्रेमचंद का साहित्य : समकालीन वैश्विक संदर्भ में विषय पर केंद्रित थी। आयोजन के प्रमुख अतिथि पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री शशिमोहन श्रीवास्तव एवं ओस्लो, नॉर्वे के वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक थे। अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की। आयोजन में फिलाडेल्फिया, यूएसए की वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मीरा सिंह, प्रो हरिमोहन बुधौलिया, कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रो गीता नायक, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, श्री संतोष सुपेकर, श्री जीवन सिंह ठाकुर, देवास आदि ने प्रकाश डाला।
पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री शशिमोहन श्रीवास्तव ने कहा कि संवेदनशील व्यक्ति ही साहित्य सर्जन कर सकता है। प्रेमचंद के कथा साहित्य में गहरी मानवीयता निहित है। उनमें गहरी संवेदना थी, इसलिए उनकी रचनाओं का गहरा प्रभाव पड़ता है।
कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि प्रेमचंद परिवार और समाज की संकल्पना को साकार करते हैं। वर्तमान दौर में गांव की संरचना बदल रही है, ऐसे में प्रेमचंद बहुत अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। परिवार बिखराव और टूटन के शिकार हो रहे हैं। किसानों के समक्ष कई चुनौतियां हैं। ऐसे में प्रेमचंद का कथा साहित्य आज अधिक प्रासंगिक सिद्ध हो रहा है।
कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद का कथा साहित्य कालजयी है। समकालीन विश्व की अनेक समस्याओं और चुनौतियों का समाधान उनके साहित्य में मौजूद है। वर्तमान दुनिया के लिए उनके देखे सपने, आशाएँ और आकांक्षाएँ अभी समाप्त नहीं हुई हैं। इसलिए प्रेमचंद का प्रासंगिक होना स्वाभाविक है। वे अपनी सर्जना और विचारों के साथ आज के संघर्षों और विसंगतियों के मध्य सार्थक दिशा देते हैं।
श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि प्रेमचंद नई पीढ़ी के लिए आदर्श हैं। उनके माध्यम से हम सामाजिक - सांस्कृतिक विरासत से जुड़ सकते हैं। उनके साहित्य को देश विदेश तक प्रसारित करने की जरूरत है। उनके साहित्य में सभी का मन रम जाता है। प्रेमचंद आज भी विदेशों में भी चर्चित और सामयिक हैं। हम नार्वे में अनेक दशकों से प्रेमचंद जयन्ती मनाते हैं। भारतीय - नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम अन्तर्राष्ट्रीय प्रेमचंद पुरस्कार प्रदान करता है।
अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य प्रवाह अमेरिका की संस्थापक डॉ मीरा सिंह, यूएसए ने प्रेमचंद पर केंद्रित अपनी कविता सुनाई, जिसकी पंक्तियाँ थीं, शब्द सहज झर - झर झरते, प्रेमचंद जी की भाषा में। संवेदनाओं को गढ़ – गढ़, गढ़ते, सम्राट सिपाही जन परिभाषा में। जन्म सन् अट्ठारह सौ अस्सी, शुभ घड़ी मास जुलाई में। अभाव को वे पीछे फेंके, साहित्य सिपाही बनने में। नारी - विवशता खलती थी, कर्मभूमि, निर्मला,सेवासदन लिखे, जन- जन को वे आगाह किए, जन-जनहित समाज भलाई में। करती हूँ नमन हृदय तल से, मन पुष्पांजलि अर्पितकर। भरते रहें सदा बल लेखन में, कभी डिगे नहीं दृढ़ संकल्प।
प्रो गीता नायक ने कहा कि प्रेमचंद ने तत्कालीन दौर से जुड़े हुए किसी भी विषय को नहीं छोड़ा। समाज से जो कुछ भी लिया उसे उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया। वे जिस विषय में लिखते थे, मौलिकता के साथ लिखते हैं। उन्होंने जो लिखा वह आज सत्य सिद्ध हो रहा है।
प्रो जगदीश चन्द्र शर्मा ने कहा कि हिंदी के अनेक लेखकों ने प्रेमचंद से प्रेरणा लेकर सृजन किया। अज्ञेय और निर्मल वर्मा ने प्रेमचंद से भिन्न मार्ग को अपनाने के बाद भी उनके योगदान को महत्वपूर्ण माना। अज्ञेय की दृष्टि में प्रेमचंद की शुरुआत किस्सागोई की परंपरा से हुई, किंतु वे वहीं नहीं रुके। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक विषयों को भी छुआ। वे स्वयं को राजनीतिक होने से बचाते हैं और मानव की बात करते हैं।
प्रो हरिमोहन बुधौलिया एवं वरिष्ठ लघुकथाकार श्री संतोष सुपेकर ने प्रेमचंद के योगदान पर केंद्रित व्याख्यान दिए। डॉ अजय शर्मा ने प्रेमचंद की पत्रकारिता पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम में प्रो धर्मेंद्र मेहता, प्रो डी डी बेदिया, प्रेमचंद सृजन पीठ की निदेशक श्रीमती अनिता पंवार, डॉ सुशील शर्मा आदि सहित अनेक साहित्यकार, शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन श्री मोहन तोमर ने किया। आभार प्रदर्शन प्रेमचंद सृजन पीठ की निदेशक श्रीमती अनिता पंवार ने किया।
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