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प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा डॉ शिवमंगलसिंह सुमन सारस्वत सम्मान से अलंकृत

सुमनजी के काव्य से गुजरना सम्पूर्ण रागात्मक प्रवृत्ति को अनुभव करना है - प्रो शर्मा 

उज्जैन। डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन स्मृति शोध संस्थान द्वारा आयोजित पद्मभूषण डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन स्मृति सम्मान समारोह में समालोचक विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा को सुमनजी के गीतों की  सांगीतिक अनुगूंज के साथ सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा का संस्थान द्वारा शॉल, श्रीफल, स्मृति चिन्ह,  पुष्प माला, मणि माला के साथ पट्टाभिषेक साफा बांधकर एवं सम्मान पत्र अर्पित कर सारस्वत अभिनन्दन किया गया। सदन में विराजित सुधीजनों ने भी भाव भरा अभिनन्दन किया।

मुख्य आतिथ्य प्रदान कर रहे प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि वाल्मीकि की वाणी का नव संस्करण हैं सुमनजी। कालिदास, भास, भवभूति, माघ आदि का दिग्दर्शन करता है सुमनजी का काव्य। डॉ. शर्मा ने कहा कि नागपंचमी शाश्वत मूल्य प्रणाली है जिससे जातीय चेतना एवम कई मिथक जुड़े है किंतु यह दिन हमारे युग के ऐसे युगपुरुष पद्मभूषण सुमनजी को अर्पित होता है। सुमनजी को याद करना एक युग को याद करना है। सुमनजी की मानस पुत्री शोभना का यहाँ होना , सुमनजी की पुत्री का यहाँ होना है। सुमनजी को याद करना एक शताब्दी से रूबरू होना है।  सुमनजी के काव्य में छायावाद की प्रेरणा पाथेय बनी है। सुमनजी का पथ चेतना का पथ है , प्रगति का पथ है। सुमनजी का अनुभव सम्पूर्ण रागात्मक प्रवृत्ति को अनुभव करना है। वे निवृत्ति मार्ग के दर्शन के विरुद्ध खड़े दिखाई देते हैं। सुमनजी की सांसों का हिसाब  कविता जीवन की सार्थकता की कसौटी के क्रम में सम्पूर्ण युग प्रवाह से हमें जोड़ती है।

समारोह का शुभारंभ अजय मेहता एवम संस्कृति सुमन सौरभ समूह की ओर से  सुमनजी के गीतों की  सस्वर सांगीतिक प्रस्तुति  कर किया गया। मैं क्षिप्रा सा ही तरल सरल बहता हूं, तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार, कई बार टूटे जुड़े तार सारे तुम्हारे हमारे, ये हार एक विराम है जीवन महा संग्राम है, तुमने मेरे अभिनन्दन की ठानी, यह दिन बार बार आए, आदि गीतों की सांगीतिक अनुगूंज ने उपस्थित जनों को मंत्र मुग्ध किया।  

इस अवसर पर समारोह की अध्यक्षता कर रहे डॉ. मुरलीधर चाँदनीवाला एवम् विशिष्ट आतिथ्य प्रदान कर रहे आशीष दशोत्तर एवम् अजय मेहता का भी उनकी साहित्यिक यात्रा पर सारस्वत अभिनंदन मणि माला एवम स्मृति कि चिह्न भेंटकर डॉ दिनेश तिवारी ने एवम डॉ शैलेंद्र कुमार शर्मा ने मारवाड़ी पगड़ी पहना कर अभिनन्दन किया। 

समारोह के प्रथम सत्र में संस्कृति सुमन सौरभ अजय मेहता एवम् समूह ने सुमनजी के मैं क्षिप्रा सा ही तरल सरल बहता हूं, तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार, तुमने मेरे अभिनन्दन की ठानी, कई बार टूटे जुड़े तार तुम्हारे हमारे, वरदान मांगूगा नहीं ,यह दिन बार बार आये आदि गीतों की सांगीतिक प्रस्तुति की। 

विशिष्ट आतिथ्य प्रदान कर रहे सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार आशीष दशोत्तर ने कहा कि हमारा विश्वास सुमनों के प्रति है , कांटों के प्रति नहीं। सुमनजी प्रकृति प्रेम एवम रस के कवि हैं सुमनजी स्वभाव के कवि हैं ,वे अपने समय के प्रभाव के कवि हैं। 

समारोह की अध्यक्षता कर रहे डॉ. मुरलीधर चाँदनी वाला ने कहा कि अपने युग की चेतना के संरक्षक थे सुमनजी। सुमनजी ने मंच को जीता।  महाकवि कालिदास के बाद प्रगतिशील धारा के कवि सुमनजी के आगे ही कवि कुलगुरु लगा। आपने सुमनजी की स्वर्ण जयंती समारोह के संस्मरण को याद करते हुए कई संस्मरण सुनाए। 

पंडित मुस्तफा आरिफ ने सुमनजी के संस्मरणों से अभिभूत करते हुए इस अवसर पर डॉ शोभना तिवारी का सम्मान किया। संस्थान द्वारा संस्कृति सुमन सौरभ के कलाकारों का भी सम्मान किया गया।

सदन में उपस्थित डॉ. सुलोचना शर्मा डॉ. मंगलेश्वरी जोशी डॉ. अर्चना सक्सेना आर एस केसरी ऋषि शर्मा अखिल स्नेही सीमा राठौर रश्मि उपाध्याय आदि ने डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा का स्वागत किया।  साहित्य सुधीजनों में विष्णु बैरागी, अब्दुल सलाम खोखर सिद्धिक रतलामी, डॉ. सौरव गुर्जर, डॉ. मोहन परमार, प्रिया  उपाध्याय, कृतिका पंवार, नूतन भट्ट निर्मला उपाध्याय, सविता तिवारी,  अनुराधा खरे, आभा गौड़, उषा व्यास  आदि सहित अनेक गणमान्य सुधीजन उपस्थित थे।  

संचालन डॉ. शोभना तिवारी ने किया। आभार अखिल स्नेही ने माना। 

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