Skip to main content

इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर निर्माण उद्योगों के लिए जनशक्ति को कुशल बनाना समय की मांग हे - प्रो. सी.सी. त्रिपाठी

भोपाल। एनआईटीटीटीआर भोपाल में ऑउटसौर्सेड सेमीकंडक्टर असेंबली एंड टेस्ट (ओसेट)  के लिए स्किलिंग सेंटर प्रारम्भ करने जा रहा हे। इस सेंटर में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री से रिलेटेड हर तरह की ट्रेनिंग प्रदान की जाएगी। जिससे इस क्षेत्र में स्किल्ड मेन पावर तैयार हो सके। ओसेट ऐसी कंपनियां हैं जो थर्ड पार्टी आईसी-पैकेजिंग और परीक्षण सेवाएं प्रदान करती इस केंद्र में असेंबली ,टेस्टिंग, मार्किंग एंड  पैकेजिंग जैसी क्षमताओं का विकास  किया जायेगा। हाल के दिनों में भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत की दृष्टि से और भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिजाइन और निर्माण के लिए वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करते हुए, भारत में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले निर्माण  के विकास के लिए एक व्यापक कार्यक्रम को मंजूरी दी थी। 

इस अवसर पर बोलते हुए निटर निदेशक प्रो सी सी त्रिपाठी ने कहा कि आज दुनिया सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भारत की और देख रही हे। यह क्षेत्र आज भारत सरकार  की प्राथमिकता में हे। हमारे डिज़ाइन इंजीनिअर्स तो दुनिया  में उत्कृस्ट हैं। भारतीय सेमीकंडक्टर मिशन का लक्ष्य घरेलू निर्माण और नवाचार को बढ़ावा देकर भारत को सेमीकंडक्टर निर्माण और डिजाइन का केंद्र बनाना है। जापान के उद्योगपति डॉ देवेंद्र मोहन्तो ने कहा की भारत में बहुत पोटेंशियल हे स्किल्ड मेंन पावर तैयार कर इस दिशा में अग्रणी बन सकते हैं। वे निटर भोपाल को स्किलिंग सेंटर बनाने में सहायत  प्रदान कर रहे हैं।  

अमेरिका के श्री नरेश चंद ने कहा कि भारतीय संस्कृति हर  जगह सम्मान पाती हे। कभी कभी हम अपनी शक्ति को भूल जाते हैं। सारी दुनिया आज सेमीकंडक्टर की फील्ड  में इन्वेस्ट करना चाह रही हे भारत के पास यह बहुत बड़ा अवसर हे।

इस कार्यक्रम में  प्रो सुब्रत रॉय , प्रो आशीष देशपांडे , प्रो एम ए रिज़वी, प्रो पी के पुरोहित, प्रो ए एस वाल्के , प्रो आर पी खंबायत, प्रो एस एस केदार उपस्थित थे।

Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...