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उज्जैन पुस्तक मेले में 3 दिवसीय मालवा माच महोत्सव का आयोजन होगा

उज्जैन। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नई दिल्ली द्वारा मध्यप्रदेश शासन, मध्यप्रदेश हिंदी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल और विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के सहयोग से 1 से 6 सितंबर तक स्थानीय दशहरा मैदान उज्जैन में "उज्जैन पुस्तक मेला" का आयोजन किया जा रहा है। इस मेले में भारत की समस्त क्षेत्रीय और हिंदी भाषा में अनेकों प्रकाशकों की पुस्तकें प्रदर्शन एवं बिक्री के लिए उपलब्ध है। इस मेले में नगर की कई सांस्कृतिक संस्थाएं भी मंच पर अपनी प्रस्तुतियां दी रही है. इसी शृंखला में मालवा के लोकप्रिय लोक नाट्य माच परंपरा के लोक व्यापीकरण हेतु 2, 3 एवं 4 सितंबर को सायं 6 बजे से मालवा के लोक नाट्य माच का प्रदर्शन किया जा रहा है। विक्रम विश्वविद्यालय और अंकुर रंगमंच के सहयोग से आयोजित इस समारोह में माच के 3 पारंपरिक घराने शिरकत कर रहे है। जिनके नाम है "गुरु सिद्धेश्वर सेन माच मंडल", "गुरु बालमुकुंद माच मंडल" और "गुरु राधाकिशन माच मंडल।

2 सितंबर को सायं 6 बजे मेला प्रांगण में गुरु सिद्धेश्वर सेन द्वारा लिखित माच "राजा हरिश्चंद्र" की प्रस्तुति श्री बाबूलाल देवड़ा एवं श्री हफीज खान के संचालन में की जाएंगी। जिसका विवरण इस प्रकार है :-

राजा हरिशचन्द्र कथासार

सत्यवादी राजा हरिशचन्द्र यज्ञ के 99 वें सफल आयोजन कर चुके है। सौवे यज्ञ के आयोजन के समय ऋषि विश्वामित्र ने सोचा कि यदि यज्ञ पूर्ण हो जाता है तो इन्द्र का आसन हरिशचन्द्र छीन लेंगे। हरिशचन्द्र की सत्यता को परखने हेतु ऋषि विश्वामित्र साधु का वेष धारण करते है और कन्या के विवाह के नाम पर भिक्षा में राजकोष की चाबी और घोड़े की लगाम माँग लेते है। हरिशचन्द्र चूँकि वचन से बंधे रहते है। विश्वामित्र को चाबी व लगाम दान में दे देते है। कुटिलता से विश्वामित्र राजपाट छीन कर उन पर साठ भार सोने का कर्ज भी निकाल देते है। इस कर्ज को उतारने के लिये राजा हरिशचन्द्र अपनी पत्नी तारा और बेटे रोहित को ब्राह्मण के हाथों बेच देते है और स्वयं चण्डाल के हाथों बिक जाते है। बेटे रोहित की साँप के काटने से मौत हो जाती है। माता तारावती उसके कफन के लिये आघी साड़ी दे देती है। श्मशान में हरिश्चन्द्र चाण्डाल के सेवक है। रोहित के संस्कार हेतु तारा से कर माँगते है। चाण्डाल भी तारा पर डाकन होने का लांछन लगा देता है। बनारस के राजा चाण्डाल को तारा का सिर धड़ से अलग करने का आदेश देते हैं। चाण्डाल अपने सेवक हरीशचन्द्र को यह आदेश देता है। हरिश्चन्द्र तलवार से तारा पर वार करते हैं। यह करूण दृश्य देखते हुए भगवान विष्णु प्रकट होते है । हरिशचन्द्र को उनका राज पाट, सत्ता सब वापिस मिल जाता है।

मंच पर

राजा हरिश्चंद्र- बाबूलाल देवड़ा, रानी - विष्णु चंदेल, विश्वामित्र- सुधीर सांखला, फर्रासन - टीकाराम, तेजू सोलंकी, चोबदार - राजू भाटी, भिश्ती और शेरमारखां - सेवाराम, रोहित - दिलीप चौहान, चांडाल -  बाबू भाटी, विष्णु - विष्णु चंदेल, सखी - सीमा एवं वर्षा शर्मा.

मंच पर

हारमोनियम - रमेश असवार

ढोलक - पप्पू चौहान

प्रकाश - ईवान खान

ध्वनि - इस्माइल खान

मंच व्यवस्था - इरशाद खान, ऋषि योगी

रूपसज्जा - अलीशा खान, निखिल घावरी

वस्त्र विनियास - शाहनवाज खान, रोहन बाथम

टेक - सोनू बोडाना, लखन देवड़ा, बाबूलाल देवड़ा, हफीज खान, हीरामणि, ओवेस खान

"आधुनिक काल के शिखर माच गुरु स्व. श्री सिध्देश्वर सेन"

"मालवा के आधुनिक काल के लोक नाट्य माच के शिखर पुरुष स्व. श्री सिद्धेश्वर सेन सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रतिभा सम्पन्न माचकार थे। आपका जन्म सन् 1921 में ग्राम रंगवासा जिला- इन्दौर में हुआ। था। बाल्यकाल से ही माच के प्रति आकर्षण और तद् नुसार वातावरण ने उनके अवचेतन मन में माच रचना की आकांक्षा उत्पन्न कर दी और 19 वर्ष की अवस्था में ही श्री सेन ने लिखना आरंभ कर- दिया। युवावस्था में ही उनका प्रथम माच" राजा रिसालू" ने उन्हें पहचान दी। उन्होंने 31 माचो की रचना की जिनमें मालवी भाषा का माधुर्य स्थान-स्थान पर छलकता है। आपने सन् 1956 में मालवा लोकनाट्य मण्डल नामक संस्था की स्थापना की। इस संस्था ने मालवा के असंख्य शहरों और गांवों में समय-समय पर माच का प्रदर्शन कर इस प्रथा को आज तक जीवित रखा। मालवा लोक नाट्य "माच" के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान एवं आजीवन सक्रिय रहकर इस लोकरंग शैली को राष्ट्रीय ख्याति दिलाने वाले श्री सेन को 6 दिसम्बर 1994 संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार नई दिल्ली, में सम्मानित किया गया। सन् 1999 में सन 1996-97 का शिखर सम्मान" श्रेष्ठ उपलब्धियों, उत्कृष्ट रचनात्मकता और दीर्घ सम्मान के लिए दिया गया। 83 वर्षों की आयु में रण यात्रा का पड़ाव आया और वे हमसे विदा ले गए। हम उनकी याद में यह आयोजन करते हुए गर्व और आनंद से भरे हुए है।

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