वैश्विक परिदृश्य में हिंदी: साहित्य, जनसंचार और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
विदेश में हिंदी के व्यापक प्रसार को लेकर गौरव की अनुभूति होनी चाहिए – लोहनी
यूएन में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए व्यापक प्रयास जरूरी - प्रो शर्मा
वैश्विक परिदृश्य में हिंदी: साहित्य, जनसंचार और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला एवं पत्रकारिता और जनसंचार अध्ययनशाला द्वारा दिनांक 14 सितंबर को मध्याह्न में वाग्देवी भवन में अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की है। यह संगोष्ठी वैश्विक परिदृश्य में हिंदी: साहित्य, जनसंचार और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ मीरासिंह, यूएसए, प्रो नवीनचंद्र लोहनी, मेरठ एवं श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, नॉर्वे, ओस्लो थे। अध्यक्षता प्रभारी कुलपति प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने की। कार्यक्रम में प्रो राकेश ढंड, प्रो गीता नायक, प्रो जगदीश चंद्र शर्मा, डीएसडब्ल्यू प्रो सत्येंद्र किशोर मिश्रा, श्री दिनेश दिग्गज, डॉ मोहन बैरागी आदि ने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नवीन चंद्र लोहनी ने कहा कि विदेश में हिंदी के व्यापक विकास को लेकर गौरव की अनुभूति होनी चाहिए। हिंदी भारत के बाहर बसे लोगों के लिए भारतीय संपृक्ति की भाषा है। यूएनओ का हिंदी में कार्यक्रम प्रसारित होता है। विदेश से प्रकाशित ऑनलाइन हिंदी पत्रिकाओं की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। वर्तमान में चीन के लगभग 18 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। समन्वय हिंची पत्रिका के माध्यम से चीन में बसे विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को जोड़ा गया है, जो हिंदी को व्यवहार में लाते हैं।
प्रभारी कुलपति प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि हिंदी घर - आंगन से लेकर विश्वपटल पर स्थापित है। हिंदी भारतीय संस्कृति और परंपराओं से जुड़े विभिन्न पक्षों को संपूर्ण दुनिया तक पहुंचाने का द्वार है। विदेशों में विविध जनसंचार माध्यमों द्वारा हिंदी के सम्प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया जा रहा है। अनेक देश अपने उत्पादों को भारत तक पहुँचाने के लिए हिंदी को महत्व दे रहे हैं। यूएन में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए व्यापक प्रयास जरूरी है। व्यापार, व्यवसाय और विज्ञापनों में व्यापक स्तर पर प्रयोग हो यह जरूरी है।
नॉर्वे से जुड़े साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक ने कहा कि वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी जनसंचार एवं संस्कृति के माध्यम से न केवल फल फूल रही है, वरन हमको भारतीय संस्कृति से जोड़ती हुई न मिटने वाले संस्कार दे रही है। संचार माध्यम में वीडियो चैनल, ई पत्रिका, लघु फ़िल्म, विज्ञापन, वेबिनार, डिजिटल रेडियो आदि द्वारा हिंदी का प्रसार हो रहा है। हिंदी के जरिए संस्कृति की शिक्षा तथा रोजगार के विभिन्न अवसर भी मिलते हैं।
पूर्व डीएसडब्ल्यू प्रो राकेश ढंड ने कहा कि अपनी माता, मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं हो सकता। हमें भाषा से जुड़े हीनता के नजरिए से मुक्त होना होगा। हस्ताक्षर हमारी पहचान होते हैं उसे अपनी मातृभाषा में किए जाने की जरूरत है।
डीएसडब्ल्यू प्रोफेसर एसके मिश्रा ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के कारण हिंदी एवं भारतीय भाषाओं को लेकर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। हिंदी ने अपना स्वरूप विशाल कर लिया है।
प्रो गीता नायक ने कहा कि हिंदी के प्रचार प्रसार में अनेक संस्थाओं और लोगों की भूमिका है। विदेश में हिंदी निरंतर विस्तार ले रही है। भूमंडलीकरण के दौर में हिंदी का सम्मान बढ़ा है।
इस मौके पर वरिष्ठ कवि श्री दिनेश दिग्गज ने अपनी हिंदी कविता के माध्यम से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। फिलाडेल्फिया, यूएसए की डॉ मीरा सिंह ने हिन्द में हिंदी दिवस मनाएंगे कविता का पाठ किया। डॉ मोहन बैरागी ने बहुत खूबसूरत लिखा शब्दों को स्पंदित कर दिया रचना का पाठ किया।
कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका अक्षरवार्ता के विशेषांक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में डॉ सुशील शर्मा, डॉ नेत्रा रावणकर, डॉ अजय शर्मा, श्रीमती हीना तिवारी, चांद अंजुम जौहरी, विवेक पांचाल, राजश्री अग्निहोत्री, झलक शिकारी, मोहन आदि ने कार्यक्रम में काव्य पाठ और अपने विचार व्यक्त किए।
संगोष्ठी का संचालन श्यामलाल चौधरी ने किया। आभार प्रदर्शन डॉक्टर अजय शर्मा ने किया।
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